देश में आयकर भरने वाले करोड़पति लोगों की संख्या दस साल में पांच गुना बढ़ गई है. वित्त वर्ष 2012-13 (असेसमेंट ईयर 2013-14) में 44,078 लोगों ने इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) में अपनी कमाई एक करोड़ रुपये या इससे ज्यादा दिखाई थी. वित्त वर्ष 2023-24 में यह संख्या करीब 2.3 लाख पर पहुंच गई. इस बीच रिटर्न फाइल करने वालों की संख्या भी दोगुनी से ज्यादा (3.3 करोड़ से 7.5 करोड़) हो गई है.
आईटीआर में एक करोड़ से ज्यादा कमाई दिखाने वालों में आधे से ज्यादा (करीब 52 प्रतिशत) नौकरीपेशा लोग हैं. इस आंकड़े में दस साल में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. 100-500 करोड़ रुपये की आय घोषित करने वाले कुल 262 रहे. इनमें से नौकरीपेशा केवल 19 हैं. असेसमेंट ईयर 2013-14 में केवल एक व्यक्ति ने 500 करोड़ रुपये से ज्यादा आय दिखाई थी. 2023-24 में ऐसे 19 धनकुबेर हैं.
तो क्या 500 करोड़ रुपये कमाने वालों की संख्या में दस साल में 19 गुना वृद्धि देख कर यह माना जाए कि देश तरक्की कर रहा है और लोग खुशहाल हो रहे हैं? नहीं. ये आंकड़े असंतुलित विकास की तस्वीर दिखा रहे हैं.
80% की तरक्की की रफ्तार ठहरी हुई
भारत की अर्थव्यवस्था कई मायनों में अच्छा कर रही है. लेकिन, मुश्किल यह है कि 20 प्रतिशत समृद्ध लोग ही और ज्यादा समृद्ध हो रहे हैं. बाकी 80 फीसदी की तरक्की की रफ्तार या तो ठहरी हुई है या बड़ी धीमी है. अर्थव्यवस्था के आंकड़े भी इस तस्वीर की तसदीक करते हैं. उदाहरण के लिए, वित्तीय वर्ष 2024 में जीडीपी बढ़ने की दर आठ फीसदी रही, लेकिन घरेलू खपत में बढ़ोतरी केवल चार फीसदी ही दर्ज की गई. आय में असमानता की तस्वीर दिखाने वाला यह सबसे अहम आंकड़ा है.
कमाई बचा पाने वाले बहुत कम लोग
जो समृद्ध लोग हैं वे अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा बचत करते हैं, जबकि बाकी लोग पूरी आय खर्च करके भी अपनी जरूरत पूरी नहीं कर पा रहे हैं. 20 फीसदी सबसे अमीर लोगों के पास 50 फीसदी आय है, लेकिन देश की कुल बचत में उनकी हिस्सेदारी 92 प्रतिशत है. पैसों से पैसे बना कर यह तबका लगातार अपनी आर्थिक हैसियत मजबूत करता जा रहा है. बाकी बचे लोग ऐसा नहीं कर पा रहे. वे अपनी जरूरतें पूरी करने में ही खर्च हुए जा रहे हैं.
अंग्रेजों के जमाने से ये असमानता
वर्ल्ड इनइक्वलिटी लैब के एक अध्ययन में बताया गया है कि आज के भारत में अंग्रेजों के जमाने से भी ज्यादा आर्थिक असमानता है. इसमें बताया गया कि देश के सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास आज जितनी संपत्ति है, उतनी ब्रिटिश राज में भी नहीं हुआ करती थी.
1930 के दशक में राष्ट्रीय आय का 20 प्रतिशत महज सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों के पास था. 1947 में यह आंकड़ा 12.5 प्रतिशत था. 2014 में 20 प्रतिशत से कुछ ज्यादा हुआ. लेकिन, 2022-23 में 22.6 प्रतिशत हो गया. अगर सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों को शामिल कर लें तो देश में 60 फीसदी कमाई उन्हीं के पास है.
कमाई में असमानता के साथ-साथ स्वाभाविक है कि संपत्ति की असमानता भी होगी ही. यह खाई तो और अधिक चौड़ी है. 1961 में जहां सबसे अमीर एक प्रतिशत लोगों का देश की 15 फीसदी संपत्ति पर कब्जा था, वहीं अब यह आंकड़ा 40 फीसदी के पार जा चुका है. सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों को शामिल करें तो उनके पास 65 फीसदी से ज्यादा संपत्ति है.
इनकी तो कमाई बढ़ने के बजाय घट गई
बीच के 40 फीसदी लोगों की कमाई बढ़ने के बजाय घटी है. 1980 के दशक में इनके पास देश की कुल कमाई का 45 प्रतिशत आता था. 2022 में यह आंकड़ा मात्र 27 फीसदी रह गया. जाहिर है, गरीबों की हालत भी बदतर हुई है. सबसे कम पैसे वाले 50 फीसदी लोगों की आय 23 प्रतिशत से घट कर 15 प्रतिशत रह गई.
अरबपति की संपत्ति 280% बढ़ी
2014 से 2022 के बीच भारत के अरबपतियों की संपत्ति में 280 फीसदी इजाफा हुआ. दूसरी ओर देखें तो 2019 से 2021 के बीच तीन करोड़ भारतीयों के पास पेट भरने तक को खाना नहीं था. 80 करोड़ लोग सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुफ्त अनाज से पेट भर रहे हैं. करीब 45 फीसदी लोग खेती के काम में लगे हैं, जहां न सही काम मिल रहा है और न ही दाम. सरकार जानती है कि इन्हें यहां से निकाल कर किसी ज्यादा मुनाफे वाले काम में लगाना होगा, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है.
तो आखिर कैसे दूर होगी असमानता?
सरकार मानती है कि आय और संपत्ति बंटवारे की यह असमानता अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती है. उसका यह भी कहना है कि इसे दूर करने के लिए वह कदम उठा रही है. सरकार कहती है कि रोजगार के अवसर बढ़ा कर संगठित और गैर संगठित सेक्टर्स के बीच तालमेल बढ़ाकर, वर्क फोर्स में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर यह असमानता दूर करने की कोशिश कर रही है.
100 में से 56 के पास काम
सरकार का दावा है कि आबादी के हिसाब से कामकाजी लोगों का अनुपात (वर्कर पॉपुलेशन रेश्यो – डब्ल्यूपीआर) 2017-18 में 46.8 प्रतिशत था, जो 2022-23 में 56 हो गया. मतलब सौ में से 56 लोगों को काम मिला हुआ था. उसी तरह बेरोजगारी दर के बारे में सरकार दावा करती है कि 2017-18 में यह 17.8 प्रतिशत था, जो 2022-23 में 10 प्रतिशत पर आ गया.
लेकिन, सरकार के आंकड़ों पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं. सिटी ग्रुप ने भी कुछ समय पहले अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत सरकार उतनी नौकरियां नहीं पैदा कर पा रही है जितनी जरूरत है. इस तरह जरूरत और उपलब्धता का यह अंतर बढ़ता ही जा रहा है. हालांकि, सरकार ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया था.
आईएलओ की इंडिया इंप्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 में बताया गया कि भारत में 83 प्रतिशत युवाओं के पास काम नहीं है.
जमीनी हकीकत कुछ और ही…
आंकड़ों की लड़ाई को नजरअंदाज कर जमीनी हकीकत पर गौर करें तो भी यह साफ दिखता है कि सरकार के उपायों का प्रभावी असर अभी दिखना बाकी है. सरकार का जोर लोगों को मुफ्त खाना या नकद पैसे देने पर काफी देखा जा रहा है. इससे सत्ताधारी दल का राजनीतिक फायदा तो हो सकता है, लेकिन लोगों के लिए आर्थिक संकट से निपटने का सपाट रास्ता तैयार नहीं होगा. इनकम टैक्स से जुड़े ताजा आंकड़ों से भी यही सबक लेने की जरूरत है, न कि पीठ थपथपाने की.
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FIRST PUBLISHED :
October 24, 2024, 19:44 IST