60 के दशक के AVRO की जगह ले रहा मॉडर्न C-295 एयरक्राफ्ट, जानें कितना खास है

3 weeks ago
पहला सी-295 विमान सितंबर 2026 में वडोदरा प्लांट में तैयार होने की संभावना है.पहला सी-295 विमान सितंबर 2026 में वडोदरा प्लांट में तैयार होने की संभावना है.

नई दिल्ली. भारतीय वायुसेना टू फ़्रंट वॉर की संभावनाओं के मद्देनजर अपनी तैयारियों को अमली जामा पहनाने में बडी तेज़ी से जुटा है. पुराने विमानों को नए विमानों से बदला जा रहा है, जिसमें सबसे पहले है 60 के दशक से भारतीय वायुसेना में सेवाएं दे रहे एवरो, जो किए एक छोटे ट्रांसपोर्टर विमान हैं और उसकी जगह लेनी शुरू कर चुका है C-295MW मीडियम लिफ्ट टैक्टिकल एयरक्राफ्ट. भारत सरकार ने स्पेन से 56 नए C-295MW विमानों की खरीद का करार साल 2021 किया था. ख़ास बात तो ये है कि इसका निर्माण गुजरात के वडोदरा में किया जा रहा है और इसका पहला स्क्वाड्रन भी वहीं स्थापित किया गया है.

इस फैसेलिटी का शिलान्यास भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और उद्घाटन भी. इस मौके पर स्पेन के राष्ट्रपति भी मौजूद थे. भारत में एयरबस का पार्टनर टाटा कंसॉर्टियम है. पहली बार कोई भारतीय प्राइवेट कंपनी मिलिटरी एयरक्राफ्ट भारत में बनाएगी. डील के मुताबिक स्पेन से कुल 56 विमान भारतीय वायुसेना के लिए लेने हैं, जिसमें से 16 विमान स्पेन से पूरी तरह से तैयार होकर फ़्लाई-वे कंडीशन यानी की स्पेन से सीधे उड़ान भरकर भारत आने हैं जिनमें में 6 आ चुके हैं. इसके अलावा बाकी 40 को लाइसेंस के तहत भारत में बनाया जाएगा.

एवरो और C-295 की ख़ासियत का आकलन
60-70 के दशक में भारत ने अपने वायुसेना के बेड़े को मज़बूत करने के लिए AVRO की ब्रिटेन से ख़रीद की गई थी. एवरो एयरक्राफ्ट का पूरा नाम AVRO Hawker Siddeley HS748, ये एक ट्विन इंजन टर्बो प्रोपेलर मिलेट्री एयरक्राफ्ट है. ये उस वक्त के सबसे बेहतरीन डिजाइन वाला एयरक्राफ्ट था जो कि पैसेंजर कंफ़रटेबल और स्टेबल एयरक्राफ्ट था और आज भी है. भारतीय वायुसेना के पास तकरीबन 100 ऐसे जहाज़ थे जिसमें 56 को C-295 से बदला जा रहा है. भारतीय वायुसेना के पूर्व अधिकारी एयर मार्शल संजीव कपूर जिनका AVRO में उड़ान का 4000 घंटे का अनुभव है वो इस विमान के ट्रेनर भी रहे हैं. उनका कहना है कि ये अपने समय का सबसे बेहतरीन और स्टेबल एयरक्राफट रहा है. आज भी भारतीय वायुसेना 20 से 25 एयरक्राफ्ट को फ्लाई कर रहा है. ये उबड़-खाबड़ वाले रनवे पर आसानी से लैंड भी कर सकता है और टेकऑफ भी ले सकता है.

एवरो में एक बार में 40 पैराट्रूपर अपने फुल लोड के साथ आसानी से पैरा ड्रॉप कर सकता है तो C-295 की क्षमता 50 पैराट्रूपर की है. एवरो 4 टन तक का वज़न उठा सकता है, जबकि C-295 7 टन लोड को लेकर उड़ान भर सकता है. एवरो और C-295 दोनों एयरक्राफ़्ट से सैनिक और कार्गो को पैरा ड्रॉप करने के लिए रीयर रैंप डोर भी है जहां से पैरा ड्रॉप किया जाता है. इस एयरक्रफ्ट की खास बात ये है कि ये लो लेवल फ्लाइंग में माहिर है और ये एयरक्रफ्ट छोटे रनवे से लैंडिंग और टेकऑफ कर सकते हैं. तकनीक के मामले में C-295 एवरो से कही आधुनिक है. ये टैक्टिकल मिशन को अंजाम दे सकते हैं. इस एयरक्रफ्ट में स्वदेशी इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सूट लगा हुआ है. मेडिकल इवेक्यूएशन ऑपरेशन के दौरान इस एयरक्रफ्ट में 24 स्ट्रेचर लगाए जा सकते हैं, जबकि एवरो में इसकी संख्या कम है.

आकार में C-295 एवरो से बड़ा है. एक चीज में एवरो C-295 से बेहतर है और वो है स्टेबिलिटी यानी की स्थिरता. एयर मार्शल संजीव कपूर (रिटायर्ड) का कहना है कि इसकी सबसे खास बात तो ये है कि इसके विंग डाईहेड्रल यानी की विंग का एंगल ऊपर की तरफ है जो कि इसे ज्यादा स्थिरता देता है जबकि C-295 एनहैड्रल है. एनहैड्रल यानी की उसके विंग नीचे की तरफ़ एंगल में झुके होते हैं जो कि डाईहैड्रल से थोड़ा कम स्टेबल होता है. DC-3 डकोटा विमानों को इन एवरो से बदला था. इन एयरक्राफ्ट ने 1971 , श्रीलंका में IPKF (इंडियन पीस कीपिंग फोर्स) ऑपेरशन, मालदीव के ऑपरेशन कैक्टस के अलावा सुनामी और अन्य राहत बचाव के ऑपरेशन में हिस्सा लिया है. HAL कानपुर में इसकी असेंबली लाईन थी, जहां इसे असेंबल किया जाता था, लेकिन पार्ट की कमी होने के चलते इसके मेंटेनेन्स में दिक्कत होने लगी, तो उसके बाद से ही इसके फेज आउट की तलाश शुरू कर दी गई थी.

एवरो को फ्लाइंग कंडीशन में रखने के लिए कैन्नीब्लाइजेशन प्रोसेस से गुजरना पड़ा यानी की जो एयरक्राफ्ट किसी पार्ट की वजह से उड़ान भरने लायक नहीं थे लेकिन बाकी पार्ट सही थे तो उनके पार्ट दूसरे एयरक्राफ्ट में लगाकर उन्हें उड़ने लायक बनाया गया, लेकिन अब C-295 में ये दिक्कत नहीं आने वाली क्योंकि ये भारत में ही निर्माण हो रहा है तो पार्टस की कमी का कोई सवाल ही पैदा नहीं होगा.

ट्रांसपोर्ट फ्लीट को अपग्रेड करने में जुटी वायुसेना
आने वाले दिनों में जो एयरक्राफ्ट रिटायर होने वाले हैं, उनका विकल्प भी ढूंढना शुरू किया जा रहा है. फ़िलहाल भारतीय वायुसेना में एवरो के अलावा C-17 ग्लोबल मास्टर, C-130 सुपर हरक्यूलिस, AN-32 और IL-76 ट्रांसपोर्ट विमान हैं. AN-32 और IL-76 भी पुराने हो चले हैं. AN-32 साल 2032 के बाद सेना में रिटायर होने शुरू हो जाएंगे, जबकि IL-76 कुछ और साल अपनी सेवाएं देंगे और AN-32 के रिप्लेसमेंट के लिए मिडियम ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की रिक्वेस्ट फ़ॉर इंफ़ॉरमेशन भी वायुसेना की तरफ़ से जारी की गई है. भारतीय वायुसेना मौजूदा चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मल्टी रोल एयरक्राफ्ट जिसमें सैनिकों को ले जाने, सामान ले जाने, सामान ड्रॉप करने, घायलों को निकालने, कॉमबेट फ्री फॉल आदि जैसे सुविधाओं से लेस प्लेटफ़ॉर्म को शामिल कर रही है.

Tags: Indian air force, Indian army

FIRST PUBLISHED :

October 28, 2024, 16:53 IST

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