विदेश मंत्री एस जयशंकर 15-16 अक्टूबर को पाकिस्तान दौरे पर जाने वाले हैं. वह यहां शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे. यह एक दशक में किसी भारतीय विदेश मंत्री की पहली पाकिस्तान यात्रा है. पाकिस्तान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सम्मेलन में आमंत्रित किया था, लेकिन उनकी जगह अब विदेश मंत्री जयशंकर भारतीय दल का नेतृत्व करेंगे.
ऐसे में कई लोगों में मन में उठ रहा है कि आखिर यह एससीओ क्या है और भारत ने इस सम्मेलन के लिए विदेश मंत्री जयशंकर को इस्लामाबाद भेजने का फैसला क्यों किया? आइए समझते हैं.
क्या है यह एससीओ?
वर्ष 1996 में चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान ने ‘शंघाई फाइव’ का गठन किया था. 1991 में यूएसएसआर या सोवियत संघ के पतन ने 15 स्वतंत्र देशों को जन्म दिया. हालांकि, इससे चरमपंथी धार्मिक समूहों और जातीय तनावों को लेकर चिंताए भी पैदा हुईं. इन मुद्दों को हल करने और सुरक्षा मामलों पर सहयोग करने के लिए समूह का गठन किया गया था.
एससीओ की स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई में की गई थी, जिसमें पांच पिछले सदस्यों के साथ-साथ उज्बेकिस्तान को भी शामिल किया गया था. भारत और पाकिस्तान वर्ष 2017 में इस समूह में शामिल हुए. इनके अलावा, ईरान और बेलारूस भी एससीओ के सदस्य देश हैं. वहीं अफ़गानिस्तान और मंगोलिया पर्यवेक्षक देश हैं. यह संगठन मध्य एशिया में सुरक्षा और आर्थिक मामलों पर चर्चा करता है. इस समूह पर हावी रूस और चीन एससीओ को ‘पश्चिमी’ अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के जवाब के रूप में पेश करते हैं.
इस बार एससीओ की बैठक पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में हो रही हैं और जयशंकर इसी बैठक में शामिल होने के लिए वहां जा रहे हैं. जयशंकर की यात्रा की घोषणा ऐसे समय में हुई, जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध काफी तनावपूर्ण हैं.
SCO बैठक में क्यों शामिल हो रहे विदेश मंत्री जयशंकर
एससीओ शिखर सम्मेलन या राष्ट्राध्यक्षों की बैठक में आम तौर पर पीएम मोदी ही भाग लेते हैं, लेकिन इस बार वह इसमें शामिल नहीं होंगे. भारत ने पिछले महीने वाणिज्य मंत्रियों की बैठक सहित पाकिस्तान में एससीओ सम्मेलनों में किसी भी मंत्री को नहीं भेजा है. ऐसे में सवाल यह है कि विदेश मंत्री जयशंकर इस बैठक में शामिल होने के लिए क्यों जा रहे हैं.
द हिंदू ने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से बताया कि विदेश मंत्री की यात्रा ‘पारस्परिकता’ पर आधारित है, क्योंकि पिछले साल मई में गोवा में हुई एससीओ विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी यहां आए थे.
रिपोर्ट के अनुसार, विदेश मंत्रालय ने कहा कि यह यात्रा ‘मुख्य रूप से’ एससीओ बैठक के लिए होगी, क्योंकि भारत का ध्यान ‘क्षेत्रीय सहयोग तंत्र’ पर है. हालांकि विदेश मंत्रालय ने यह साफ नहीं किया है कि एस जयशंकर वहां अपने पाकिस्तानी समकक्ष इसहाक डार के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे या नहीं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि एससीओ सम्मेलन से इतर द्विपक्षीय बैठकों के बारे में ‘इस समय कोई साफ आइडिया नहीं है’.
जयशंकर से पहले बतौर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान का आखिरी बार दौरा किया था. वह 2015 में हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन में शामिल होने के लिए वहां गई थी. वहीं अगस्त 2016 में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (SAARC) की बैठक के लिए पाकिस्तान की अंतिम उच्चस्तरीय मंत्रिस्तरीय यात्रा का नेतृत्व किया था.
भारत के लिए क्यों अहम है SCO?
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बावजूद विदेश मंत्री जयशंकर का पाकिस्तान जाने का फैसला दर्शाता है कि भारत एससीओ समूह को कितना महत्व देता है. यह तब हुआ है, जब भारत ने 2016 के बाद से पाकिस्तान में होने वाले किसी सार्क शिखर सम्मेलन में भाग नहीं लिया.
SCO नई दिल्ली को संसाधन संपन्न मध्य एशियाई देशों के साथ सहयोग बढ़ाने के लिए एक मंच प्रदान करता है. 1991 में इन देशों के गठन के बाद से भारत के इन देशों के साथ घनिष्ठ संबंध नहीं रहे हैं. ऐसे में भारत ने इस कदम से एससीओ समूह को दिए जाने वाले महत्व को भी प्रदर्शित किया है.
टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) की रिपोर्ट में बताया गया कि जुलाई में कजाकिस्तान में 24वें शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी के शामिल न होने के बाद यूरेशियन ब्लॉक के प्रति नई दिल्ली की प्रतिबद्धता पर अटकलें लगाई जाने लगीं थी. अखबार के अनुसार, भारत के लिए SCO क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों को संबोधित करने और अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है. इस समूह में भारत एकमात्र ऐसा देश है जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का समर्थन नहीं करता है.
एससीओ का क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी ढांचा (आरएटीएस) आतंकवाद से निपटने के लिए भारत की विदेश नीति में भी मदद करता है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, यह सदस्य देशों को आतंकवाद विरोधी अभ्यास तैयार करने और उन्हें आयोजित करने, सदस्य देशों से महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी की जांच करने और आतंकवादी गतिविधियों और मादक पदार्थों की तस्करी पर इनपुट साझा करने में मदद करता है.
एक अधिकारी ने द हिंदू को बताया कि सरकार के प्रमुखों की बैठक भारत के लिए कई मध्य एशियाई देश के प्रधानमंत्रियों और समूह के दूसरे सदस्यों के उच्च-स्तरीय अधिकारियों के साथ बातचीत करने का एक शानदार अवसर है. यह इस महीने के अंत में रूस में होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की भागीदारी के लिए भी आधार तैयार करेगा, क्योंकि कई देश दोनों समूहों के सदस्य हैं.
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FIRST PUBLISHED :
October 6, 2024, 09:27 IST