एलएसी पर क्‍या है चरागाहों का सच, क्‍यों होता है विवाद? राजनाथ ने क‍िया ज‍िक्र

4 weeks ago
एलएसी के पास के गांव वाले भारत-चीन के बीच सहमत‍ि से काफी खुश.एलएसी के पास के गांव वाले भारत-चीन के बीच सहमत‍ि से काफी खुश.

चीन-भारत के बीच वास्‍तव‍िक नियंत्रण रेखा (LAC) को लेकर सहमत‍ि बनी, तो सबसे ज्‍यादा एलएसी पर बसे गांवों के लोग खुश हुए. क्‍योंक‍ि अब वे अपने पशुओं को पारंपर‍िक चरागाह तक ले जा सकेंगे. इन लोगों के ल‍िए पशु लाइफ लाइन हैं. लेकिन जब भी विवाद होता है, तो इनका आना जाना बंद क‍र दिया जाता है. इन चरागाहों को लेकर भी आए द‍िन विवाद सामने आते रहते हैं. तो आख‍िर क्‍या है चरागाहों का सच और क्‍यों होता है इसे लेकर विवाद?

सबसे ज्‍यादा विवाद डेमचौक के इलाके में सामने आते हैं. लेक‍िन कई चरागाह ऐसे हैं, जहां साल 2020 में विवाद के बाद सेना ने सुरक्षा के चलते पशुओं को चराने पर रोक लगा दी थी. मगर जैसे-जैसे बातचीत का दौर आगे बढ़ा और तनाव कम हुआ तो सेना ने कई चरागाहों तक चरवाहों को जाने की इजाजत दी. हालांक‍ि, डेमचौक में विवाद अब भी बना हुआ है. अब LAC के पेट्रोलिंग एग्रिमेंट पर दिए अपने पहले बयान में रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पेट्रोलिंग के साथ-साथ ग्रेजिंग ग्राउंड पर सहमति की भी बात कही है. दिल्ली में आयोजित चाणक्य डिफेंस डायलॉग के दौरान रक्षामंत्री ने कहा कि भारत और चीन के बीच LAC पर बनी सहमति ग्लोबल स्टेज में डिफेंस डायलॉग की अहमियत दिखाता है.

पेट्रोलिंग और ट्रेडिशनल ग्रेजिंग एरिया को लेकर सहमत‍ि
भारत और चीन दोनों एलएसी पर कुछ एरिया में मतभेद को दूर करने के लिए लगातार डिप्लोमैटिक और मिलिट्री स्तर पर बातचीत कर रहे थे. बातचीत की वजह से ही यह सहमति बनी कि समान सिक्योरिटी और म्युचुअल सिक्योरिटी के सिद्धांत पर सिचुएशन को रिस्टोर किया जाए. सहमति पेट्रोलिंग और ट्रेडिशनल ग्रेजिंग एरिया को लेकर बनी है.  ये लगातार बातचीत की ताकत है, क्योंकि बातचीत से ही जल्दी या देर में समाधान निकलते हैं. सूत्रों के मुताबिक, देपसांग और डेमचौक में पेट्रोलिंग पर सहमति बनी है. चूंक‍ि देपसांग में तो कोई ग्रेजिंग ग्राउंड है नहीं, तो इस सहमति के तहत तो ये साफ है कि चरवाहे अगले सीजन से डेमचौक के पारंपरिक ग्रेजिंग ग्राउंड में जा सकेंगे.

क्या है चरागाहों का सच?
तिब्बत के पठार और लद्दाख के इन ठंडे मरुस्थल में सदियों से यहां के जनजातीय लोग रहते हैं. पशु इनकी आजीविका का सबसे बड़ा साधन हैं. पशुओं का मांस, दूध और ऊन, इन्हीं के जरिए लंबे समय से ये लोग  अपना जीवन यापन करते हैं. मगर 2020 में शुरू हुए विवाद के बाद से इन चरवाहों को अपने पशुओं को चराने में दिक्‍कतें आ रही थीं. वजह थी भारत और चीन के बीच एलएसी पर विवाद और तनाव. सेना ने दूसरे चरागाह को चिंहित किया था, जहां ये ले जाकर अपने पशु चरा सकते थे, लेकिन वे चरागाह इतनी दूर थे इन्‍हें पशुओं को ले जाने में द‍िक्‍कत हो रही थी.

दो क‍िलोमीटर दूर ले जाने की अनुमत‍ि‍ 
लद्दाख ऑटोनॉमस हिल काउंसिल के सदस्य की ओर से भी रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को एक मेमोरेंडम सौंपा गया था और पारंपर‍िक चरागाहों तक जाने देने की गुजारिश भी की थी. लेकिन जैसे LAC पर हालात दुरुस्त हो रहे हैं फिर से भारतीय चरवाहे अपने पारंपर‍िक चरागाहों तक अपने पशुओं को लेकर जा रहे हैं.  सेना ने डेमचौक बॉर्डर के गांव के लोगों को अपने पशुओं को टी जंक्शन से दो किलोमीटर दूर तक आगे जाने की अनुमति दी थी.

क्‍यों होता है चरागाहों को लेकर विवाद
लद्दाख एक ठंडा रेगिस्तान है और यहां पर किसी भी तरह का वेजिटेशन नहीं होता. वजह है यहां का वातावरण. अक्टूबर से लेकर अप्रैल तक पूरा लद्दाख भूतहा शहर बन जाता है. ठंड इतनी क‍ि उसकी कोई इंतेहा नहीं. अप्रैल के बाद से जब हल्‍की घास उगनी शुरू होती है तो चीन और भारत के चरवाहे अपने अपने इलाके से पशुओं को चराने का काम शुरू करते हैं. जैसे-जैसे घास खत्म होती है, धीरे-धीरे ये चरवाहे आगे बढ़ते रहते हैं और तकरीबन सितंबर अक्टूबर तक दोनों देशों के चरवाहे उस इलाके में पहुंच जाते हैंं, जहां घास बची होती है और फिर शुरू होता है, चरवाहों के बीच विवाद. जिसे सुलझाने के लिए दोनों देशों की सेना के कमांडरों को बातचीत करनी पड़ती है.

कांग्रेस ने भी उठाया था सवाल
चीनी पीएलए और भारतीय चरवाहों के बीच विवाद को लेकर कांग्रेस के सांसद राहुल गांधी ने अपने लद्दाख दौरे के दौरान भी लोगों की चिंताओं को लेकर बयान दिया था. वहां के लोगों ने कहा कि उनके चरागाह अब चीन के कब्‍जे में हैं.

चरागाहों पर चरवाहों की वापसी
अगर आंकड़ों की बात करें तो 2020 में विवाद से पहले यानी 2019 में पूर्वी लद्दाख में चरवाहे तकरीबन 56000 पशुओं को अलग-अलग चरागाहों में चराते थे लेकिन विवाद के शुरू होने के बाद इसमें कमी आई.  2020 में यह संख्या घटकर 48000 के करीब पहुंच गई . 2021 में ये घटकर और नीचे 28000 तक रह गई लेकिन साल 2022 के आंकड़ों की बात करें तो ये संख्या बढ़कर 58000 के करीब पहुंच गई थी. ..और अब ये और बढ़ रही है. लद्दाख में दस के करीब ऐसे चरागाह हैं जिनमें चुशुल, तारा, न्योमा, फुकचे, ज़ुरसर, कागजुंग, चुमार, डेमचौक के लुंगर टोपको, चारटस् और मार्कमिकला शामिल हैं.  कुछ साल पहले ही पूर्वी लद्दाख के डेमचौक इलाके में चीनी पीएलए ने भारतीय चरवाहों को पशुओं को चराने से रोका था  और ऐसा विवाद आए दिन होता रहता है.

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FIRST PUBLISHED :

October 24, 2024, 20:57 IST

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