नई दिल्ली. पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक में जिस भी गली में जाएंगे, आपको हवेलियां ही हवेलियां नजर आएंगी. यहां की कई हवेलियों को एएसआई ने ( भारतीय पुरातात्विक विभाग) ने संरक्षित कर लिया है, तो कई में अभी भी लोग रहते हैं. हर हवेली का अलग डिजाइन, अलग खासियत और अलग कहानी है. आज बात करते हैं कि कोकलमल की हवेली की. जिनका सोने चांदी का कारोबार था.
सीताराम बाजार से कूंचा पातीराम में करीब 200 मीटर चलने के बाद दाएं ओर एक हवेली नजर आएगी. यह काफी दूर से दिख जाती है, क्योंकि जमीन से 7 से 8 फुट ऊंचाई पर बनी है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बगल में बनी इमारत दूसरी मंजिल की छत इस इमारत के पहली मंजिल लगभग बराबर है. करीब 17 से 18 फिट की ऊंचाई पर छत है.
ऊंचाई पर बनी हवेली का मुख्य गेट करीब 10 फुट ऊंचा
यह ग्राउंड समेत दो मंजिल की हवेली है. जमीन से हवेली की ऊंचाई के बाद मुख्य द्वार के गेट की ऊंचाई करीब 10 फुट है. ग्राउंट फ्लोर में एक आफिस है. जहां पर निशांत गुप्ता से मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि वे कोकलमल की चौथी पीढ़ी हैं. इमारत को 100 साल से ज्यादा पुरानी बताई. उन्होंने बताया कि यहां पर अब कोई रहता नहीं है. परिवार के ज्यादातर लोग आगरा में शिफ्ट हो गए हैं. निशांत गुड़गांव में रहते हैं. वे बताते हैं कि इमारत की पहली मंजिल बंद है. इसलिए अंदर की फोटो नहीं की जा सकती हैं.
जहां पर आज दुकान दिख रही है, बताया जा रहा है कि कभी बग्गी या गाड़ी खड़ी करने के लिए स्थान बनाया गया था.
यहीं से होता सोने चांदी का कारोबार
उन्होंने बताया कि कोकलमल का सोने चांदी का कारोबार पूरे देश में फैला था. लेकिन आफिस इसी हवेली से चलता था. वे प्रमुख कारोबारियों में शुमार थे. जौहरी यहां पर लाइन लगाते थे. एक तरह से कोकलमल के सोने चांदी के कारोबार का यह ‘कंट्रोल रूम’ था.
वास्तुकला का बेजोड़ नमूना
हवेली वास्तुकल का बेजोड़ नमूना है. हर कमरे में झरोखे बने हैं, जिससे वेंटीलेशन होता रहे. हवेली के बाहर पत्थर का चबूतरा जैसा बना है, जिससे इंतजार करने वाले जौहरी आराम से बैठ सकें. इमारत के ग्राउंड फ्लोर के नीचे मौजूदा समय एक कोने दुकान खुली है. अनुमान है कि कोकलमल के पास बग्गी और गाड़ी रही होगी. यह स्थान उसी के लिए बनाया गया होगा. क्योंकि रोड पर दोनों घर बने हैं, इसलिए गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं है.
हवेलियों को संरक्षित करने के लिए उठाया गया यह कदम
यहां की हवेलियों का ऐतिहासिक महत्व बना रहे. इस वजह से कई हवेलियों को एएसआई ने संरक्षित कर लिया है. इनकी देखरेख का काम भी एएसआई करती है.
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FIRST PUBLISHED :
October 26, 2024, 06:06 IST