हाइलाइट्स
सेक्शन 6A दरअसल बांग्लादेश से भारत आए लोगों की नागरिकता को तय करता हैसुप्रीम कोर्ट सेक्शन 6A की वैधता को बरकरार रखा है, उसे संविधानिक तौर पर सही बताया हैकुछ लोगों ने इसे आर्टिकल 14 को उल्लंघन करने वाला संविधान संशोधन बताकर चुनौती दी थी
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में इस बात पर मुहर लगा दी कि राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए संसद में बांग्लादेशी लोगों को ध्यान में रखते हुए नागरिकता अधिनियम में जो संशोधन करके सेक्शन 6ए के जरिए जो नया कानून बनाया गया था, वो एकदम सही है. क्या ये सेक्शन 6ए, ये क्या कहता है. अब असम में कौन से लोग भारत के नागरिक माने जाएंगे और कौन नहीं.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने यह फैसला सुनाया। फैसला पढ़ते हुए सीजेआई ने कहा कि जबकि उनके समेत चार जजों ने बहुमत वाले फैसले का हिस्सा थे, जस्टिस जेबी पारदीवाला ने असहमति जताई।
धारा 6A की शुरूआत को राजीव गांधी की सरकार द्वारा अवैध आव्रजन से उत्पन्न तनाव को हल करने के लिए एक व्यापक राजनीतिक रणनीति के हिस्से के रूप में देखा जाता है, जिससे क्षेत्र को राजनीतिक और सामाजिक रूप से स्थिर किया जा सके।
1955 में बने भारतीय नागरिकता अधिनियम को संशोधित करने के लिए 21 नवंबर, 1985 को संशोधन पारित किया गया. इसके एक हफ्ते बाद राज्यसभा ने भी 28 नवंबर 1985 को इसे पारित करते हुए हरी झंडी दिखा दी. यह संशोधन असम समझौते को लागू करने के व्यापक प्रयास का हिस्सा था, जिसका उद्देश्य असम में अवैध आव्रजन के मुद्दे को एड्रेस करना था.
सवाल – राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए नागरिकता अधिनियम में संशोधन धारा 6A के रूप में क्यों पेश किया गया?
– ये असम में अवैध अप्रवास के जटिल मुद्दे का जवाब था, खासकर बांग्लादेश से 1971 और इसके बाद आए लोगों को लेकर था. 15 अगस्त 1985 को राजीव गांधी ने प्रधान मंत्री रहते हुए असम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इस समझौते को हरकत में लाने के लिए जरूरी था कि इसके माकूल नागरिकता कानून में संशोधन किया जाए.
सवाल – क्या था ये असम समझौता, जिसके साथ असमिया लोगों की चिंताओं को दूर करने की कोशिश की गई?
– असम समझौता एक राजनीतिक समझौता था, जिसका उद्देश्य अवैध अप्रवास को लेकर स्थानीय असमिया लोगों की चिंताओं को दूर करना था, जिसे लेकर राज्य के लोगों को डर था कि बड़े पैमाने पर राज्य में बांग्लादेश से आए अप्रवासियों के चलते उनकी सांस्कृतिक पहचान और जनसांख्यिकीय संतुलन खतरे में आ रहा है. चूंकि काफी बड़ी संख्या में अवैध बांग्लादेश असम में आकर प्रवास कर रहे थे, लिहाजा कानून के जरिए उनकी भी पहचान करनी थी, लिहाजा इस समझौते ने उन लोगों की नागरिकता के लिए एक समय सीमा दी, जो एक खास समय में बांग्लादेश से असम आ गए थे.
सवाल – धारा 6A को नागरिकता अधिनियम में असम समझौता के अनुसार क्या समय सीमा तय की गई?
– सेक्शन 6A के तहत सुनिश्चित किया गया कि 1 जनवरी, 1966 से पहले असम में प्रवेश करने वाले व्यक्तियों को ही भारतीय नागरिक के रूप में मान्यता दी जाएगी, जबकि 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच प्रवेश करने वालों को विदेशी के रूप में पहचाने जाने के दस साल की अवधि के बाद नागरिकता प्रदान की जाएगी.
संशोधन को इस आधार पर उचित ठहराया गया था कि संसद के पास संविधान के अनुच्छेद 11 के तहत नागरिकता के मामलों को विनियमित करने का विधायी अधिकार है. सुप्रीम कोर्ट ने भी इस प्रावधान को बरकरार रखा.
सवाल – असम समझौते विदेशियों की पहचान की कट-ऑफ तारीख क्या है?
– असम समझौते के खंड 5 में कहा गया है कि 1 जनवरी, 1966 “विदेशियों” की पहचान और सूची से उन्हें हटाने के लिए आधार कट-ऑफ तिथि होगी, लेकिन इसमें उस तिथि के बाद और 24 मार्च, 1971 तक राज्य में आने वालों के नियमितीकरण का प्रावधान भी शामिल है.
सवाल – सेक्शन 6ए के मामले को क्यों सुप्रीम कोर्ट में फिर ले जाया गया?
धारा 6A के खिलाफ़ याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह अन्य राज्यों की तुलना में असम में नागरिकता के लिए एक अलग कट-ऑफ तिथि की अनुमति देकर स्वदेशी असमिया लोगों के साथ भेदभाव किया गया है. ये दावा किया कि इससे जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा हुआ है. सांस्कृतिक अधिकार कमज़ोर हुए. ये मामला नागरिकता अधिनियम की धारा 6A की संवैधानिक वैधता के विरुद्ध चुनौतियों देते हुए गया.
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह प्रावधान कुछ समूहों के साथ भेदभाव करता है. बड़े पैमाने पर अवैध आप्रवासन को बढ़ावा देता है.याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि धारा 6A संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, जो कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है. उन्होंने दावा किया कि यह बांग्लादेश से आए अप्रवासियों के लिए नागरिकता के संबंध में विशेष उपचार के लिए असम को गलत तरीके से अलग करता है.
सवाल – किसने अपील दायर की?
– ये अपील विभिन्न याचिकाकर्ताओं द्वारा शुरू की गई थी. सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस ने धारा 6ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं दायर कीं.
सवाल – सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सेक्शन 6ए पर फैसला 4-1 से दिया. किस जज ने इसके खिलाफ असहमति दी और क्यों?
– न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला ने असहमति जताते हुए तर्क दिया कि धारा 6A असंवैधानिक है, जो पूरे भारत में नागरिकता अधिकारों के लिए इसके निहितार्थों के बारे में चिंताओं को उजागर करता है.
सेक्शन 6A और इससे संबंधित मुख्य बिंदू
– नागरिकता अधिनियम,1955 का सेक्शन 6A विशेष रूप से उन व्यक्तियों की नागरिकता की स्थिति को तय करता है, जो बांग्लादेश से असम आकर रहने लगे हैं.
– इसकी कटऑफ डेट सेक्शन 6A में 1 जनवरी, 1966 मानी गई, उन्हें राज्य का “सामान्य रूप से निवासी” और भारत का नागरिक माना गया
– 1 जनवरी, 1966 से 25 मार्च, 1971 अवधि के दौरान प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को नागरिक के रूप में मान्यता दी जाने का प्रावधान किया गया, इस शर्त के साथ कि उन्हें विदेशी के रूप में पहचाने जाने से दस साल तक मतदान करने की अनुमति नहीं होगी
– सेक्शन 6A को 15 अगस्त, 1985 को हस्ताक्षरित असम समझौते के हिस्से के रूप में पेश किया गया, जिसका उद्देश्य बांग्लादेश से अवैध अप्रवास पर चिंताओं को दूर करना और स्वदेशी असमिया लोगों की सांस्कृतिक पहचान की रक्षा करना था
– यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 11 द्वारा संसद को दिए गए प्राधिकार के तहत नोटिफाई किया गया
– धारा 6ए के तहत मान्यता प्राप्त व्यक्तियों को पूर्ण नागरिकता अधिकार (निर्दिष्ट अवधि के लिए मतदान के अधिकार को छोड़कर) प्राप्त होते हैं और यदि वे इस धारा द्वारा स्थापित मानदंडों को पूरा करते हैं तो उन्हें अवैध अप्रवासी के रूप में वर्गीकृत होने से बचाया जाता है.
– धारा 6ए के खिलाफ अपील करने वालों ने भेदभावपूर्ण बताया और कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है
– 17 अक्टूबर, 2024 को सर्वोच्च न्यायालय ने धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा
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FIRST PUBLISHED :
October 17, 2024, 14:41 IST