खून से सने अतीत वाली वो सराय, जहां हुई मुगलों के उत्तराधिकार की निर्णायक जंग

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Last Updated:July 19, 2025, 17:52 IST

Sarai Jajau: आगरा के पास स्थित जजाऊ सराय में 1707 में औरंगजेब के निधन के बाद उत्तराधिकार की खूनी जंग हुई थी. यह मुगलकाल में बनी एक कारवां सराय थी जहां आज युद्ध के कोई निशान नहीं बचे हैं, लेकिन उस जगह पर एक दर्ज...और पढ़ें

खून से सने अतीत वाली वो सराय, जहां हुई मुगलों के उत्तराधिकार की निर्णायक जंग

जजाऊ सराय का भव्य प्रवेश द्वार.

हाइलाइट्स

जजाऊ सराय में 1707 में मुगलों के उत्तराधिकार की जंग हुई थीआगरा से 30 किमी दूर इस जगह आज दर्जन भर परिवार रह रहे हैंयहा दो भव्य दरवाजे, तीन गुंबदों वाली एक मस्जिद और एक हौज है

 Sarai Jajau & The Battle of Succession: आगरा के पास यमुना नदी के किनारे बसा सराय जजाऊ एक मुगलकालीन सराय है. यह जगह गवाह बनी थी उस निर्णायक युद्ध की जो 20 जून 1707 को औरंगजेब की मृत्यु के बाद उसके बेटों के बीच लड़ा गया.  औरंगजेब ने अपने किसी उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की थी. बल्कि अपनी वसीयत में कहा था कि बेटों को साम्राज्य आपस में बांट लेना चाहिए. परंतु सत्ता के लोभ ने सब रिश्ते भुला दिए. इसके बाद औरंगजेब के बेटों मुहम्मद आजम शाह और मुअज्जम (बाद में बहादुर शाह प्रथम) के बीच उत्तराधिकार का खूनी युद्ध हुआ. यह युद्ध इतिहास में दर्ज हो गया. जजाऊ में उत्तराधिकार की निर्णायक जंग में आजम शाह और उनके तीनों बेटे मारे गए.

हालांकि जजाऊ की लड़ाई से एक दिन पहले 19 जून 1707 को 63 वर्ष की उम्र में मुअज्जम का राज्याभिषेक किया गया था. जंग जीतने के बाद उन्होंने बहादुर शाह प्रथम बनकर गद्दी संभाली. यह जगह देश की उन दुर्लभ सरायों में से एक है जहां लोग अब भी रहते हैं और इतिहास को जीवित रखे हुए हैं. सराय जजाऊ की विरासत इस सराय में दो भव्य दरवाजे, तीन गुंबदों वाली एक मस्जिद और एक हौज है. आज भी स्थानीय लोग इसका इस्तेमाल करते हैं. हालांकि यह कहानी किसी के मुगल सल्तनत का वारिस बनने की नहीं, बल्कि उस युद्धभूमि की है जहां उन्होंने इस विवाद को सुलझाया था. ‘जजाऊ’ नाम भले ही अजीब लगे, लेकिन यही वह जगह है जो मुगल इतिहास की इस महत्वपूर्ण घटना का मंच बनी. 

आगरा से 30 किमी दूर है जजाऊ 
फर्स्टपोस्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक आज जजाऊ में किसी बड़े युद्ध के होने का कोई निशान नहीं है. आगरा से लगभग तीस किलोमीटर दक्षिण में ग्वालियर और उससे आगे जाने वाले हाईवे पर स्थित जजाऊ एक ऐसा छोटा सा गांव है जहां बहुत कम लोग आते हैं. हालांकि यह अपेक्षाकृत नया हाईवे लग सकता है. वैसे यह मुगल साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने वाले पुराने सड़क नेटवर्क का उत्तराधिकारी है. उस मध्ययुगीन राजमार्ग का एक अवशेष आज भी 2025 के जजाऊ की पहचान है. मुगलकाल में राजमार्गों पर जगह-जगह कारवां सराय हुआ करती थीं. यानी ऐसी जगहें जहां थके हुए व्यापारी और उनके सामान ढोने वाले जानवर आराम कर सकते थे, तरोताजा हो सकते थे और आगे बढ़ सकते थे. 

जजाऊ सराय के अंदर मस्जिद.

यह थी अपने समय की कारवां सराय
छोटे किले की तरह बनी और एक चौकी द्वारा सुरक्षित यह जगह यात्रियों को सुरक्षा और कुछ हद तक आराम प्रदान करती थी. जजाऊ में ऐसी ही एक कारवां सराय थी और आश्चर्यजनक रूप से यह पुरानी इमारत काफी हद तक बची हुई है. उटांगन नदी के पास स्थित जजाऊ सराय की डिजाइन अपनी तरह के पारंपरिक स्वरूप के अनुरूप है. चौकोर, उत्तर और दक्षिण की ओर प्रवेश द्वारों से युक्त. यह एक ऊंची मजबूत दीवार से घिरी हुई है, जिसमें यात्रियों के आराम करने के लिए कमरे हैं. सराय के अंदर, इसके पश्चिम की ओर एक ऊंचे चबूतरे पर बनी एक मस्जिद है जहां श्रद्धालु नमाज अदा कर सकते हैं.

यहां रह रहे हैं दर्जनों परिवार
सराय केवल दिखने में ठीक है, लेकिन अंदर से गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त है. बस एक प्रवेश द्वार और एक छोटी मस्जिद ही बची है. सराय के अंदर अब दर्जनों परिवारों का एक बड़ा आवासीय क्षेत्र बन गया है, जिनमें से अधिकांश किसान हैं. अंदर से यह जगह इस क्षेत्र के किसी भी अन्य गांव जैसी ही है, जहां अधिकांश घरों के बगल में कृषि उपकरण रखे हैं और मवेशी बंधे हैं. अपने समय की सभी कारवां सरायों की तरह जाजऊ सराय में भी भीतरी हिस्से में यात्रियों के लिए कोठरियां बनी हुई थीं. चारों दीवारों पर लगभग 30 कोठरियां थीं. 

कारवां सराय भले ही संरक्षित सूची में हो, लेकिन आज यह बदहाल है.

औरंगजेब के शासन में बनी थी सराय
अब वे कोठरियां सराय के अंदर बने घरों के ढांचे में समा गई हैं. कुछ ने तो कई मंजिलें भी बना ली हैं. ज्यादातर निवासी पीढ़ियों से वहां रहने का दावा करते हैं. अगर ये बात करें कि जाजाऊ कारवां सराय की उम्र कितनी है. तो मस्जिद के किबले पर एक संगमरमर की पटिया पर पाया गया एक अरबी शिलालेख हमें इसकी तारीख 1674 ई. के बराबर बताता है. इससे यह सराय उस समय की मानी जा सकती है जब औरंगजेब का शासन था. औरंगजेब की मृत्यु के बाद के बढ़ते अराजकता भरे वर्षों में ग्रामीण समुदाय सुरक्षा के लिए यहां उपलब्ध चारदीवारी के अंदर रहने चले गए. अगर जजाऊ सराय 18वीं सदी के अंत तक अतिक्रमण से बच पायी तो शायद इसकी वजह आगरा के पास स्थित होना था. 19वीं सदी में जब मुगल सत्ता का अंतिम निशान भी मिट गया तो लोग सराय में आकर बस गए.

लाल बलुआ पत्थर से बनी बावड़ी
सराय से थोड़ी दूरी पर पूरी तरह से छिपी हुई एक बावड़ी है. यह लाल बलुआ पत्थर से बनी तीन मंजिला यह मध्ययुगीन बावड़ी उपेक्षित अवस्था में है. इसका उपयोग स्थानीय किसान भंडारण स्थल के रूप में कर रहे हैं. पास में ही एक पुराना मुगल पुल भी है. मध्यकालीन युग में यह पुल मुगल राजमार्ग नेटवर्क का हिस्सा था. जिससे यात्रियों को उटांगन नदी पार करने में मदद मिलती थी. आज पुल की खोज करनी पड़ती है. एक ब्रिटिश यात्री ने इसे 20 पत्थर के मेहराबों वाला एक बड़ा पुल बताया था. एक और यात्री ने इसके दोनों छोर पर दो मीनारों का भी उल्लेख किया था. जजाऊ की विरासत धीरे-धीरे उदासीनता का शिकार होकर ढह रही है. कारवां सराय भले ही संरक्षित सूची में हो, लेकिन यह आने वाली पीढ़ियों के लिए तभी बची रह सकती है जब इसे बचाने के लिए गंभीर और ठोस प्रयास किए जाएं.

Location :

New Delhi,Delhi

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