बनासकांठा: गुजरात के बनासकांठा जिले के बुकौली गांव में एक अनोखी परंपरा है. यहां दीपोत्सव मनाने के लिए दिवाली के पांच दिनों तक घुड़दौड़ का आयोजन किया जाता है. बुकौली राज्य का एकमात्र गांव है जहां पांच लगातार दिनों तक घुड़दौड़ का आयोजन किया जाता है. यहां कोई प्रतियोगिता नहीं होती, बल्कि यह त्योहार धार्मिक परंपरा के तहत त्योहार मनाया जाता है. दिवाली के पांच दिनों में बुकौली सहित चारों ओर से लोग घुड़दौड़ देखने आते हैं.
घुड़दौड़ की शुरुआत ढोल की थाप पर
बुकौली गांव में कोटडिया वीर का मंदिर स्थित है. ग्रामीणों का विश्वास कोटडिया वीर दादा पर है, इसलिए वे पांच दिनों तक घुड़दौड़ का आयोजन करते हैं. यहां कोई प्रतियोगिता नहीं होती. इस घुड़दौड़ में बुकौली सहित आसपास के घुड़सवार शामिल होते हैं. इस घुड़दौड़ में 100 से अधिक घुड़सवार भाग लेते हैं.
बता दें कि दिवाली के पांच दिनों के दौरान, गांव के लोग ढोल-नगाड़ों की धुन पर इकट्ठा होते हैं. ढोल की आवाज़ पर घुड़सवार और ग्रामीण एकत्र होने लगते हैं. इसके बाद, बड़ी संख्या में लोग और घुड़सवार कोटडिया वीर के मंदिर में पूजा करने जाते हैं. मंदिर के दर्शन के बाद, लोग घुड़दौड़ देखने के लिए सड़क के दोनों तरफ खड़े हो जाते हैं, जो लगभग 12 बजे होती है. फिर ढोल-नगारों की थाप शुरू होती है. घोड़ों के प्रस्थान बिंदु से, घुड़सवार एक-दूसरे का हाथ पकड़कर दो की पंक्ति में दौड़ लगाते हैं. घुड़दौड़ में कुछ घुड़सवार दौड़ते घोड़े पर खड़े होकर करतब भी दिखाते हैं. कुछ लोग तलवारबाजी का अभ्यास भी करते हैं. इस घुड़दौड़ में 20 से 25 गांवों के हजारों लोग आते हैं, लेकिन आज तक यहां पुलिस की उपस्थिति नहीं रही है.
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कोटडिया वीर दादा की कहानी
एक लोक-साहित्य (folklore) के अनुसार, कोटडिया वीर दादा घुड़सवारी के शौकीन थे. वे गाय चराते समय गांव में आए थे. सालों पहले, गांव के नागरिकों ने रात में घोड़ों की कदमों की आवाज़ सुनी. ग्रामीण दादा के पास गए और बोले, “अगर आप घोड़ों के शौकीन हैं, तो ग्रामीण घोड़ों को दौड़ाएंगे.” तब से, धनतेरस से भाईदूज तक गांव में घुड़दौड़ की परंपरा चल रही है. आज भी इस परंपरा का पालन कर दिवाली मनाई जाती है.
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FIRST PUBLISHED :
October 28, 2024, 15:03 IST