पॉलिटिक्स की पहली परीक्षा पास कर गए PK, बाई इलेक्शन में परखेंगे अपनी असल ताकत

1 month ago

पटना. जन सुराज को राजनीतिक दल बनाकर प्रशांत किशोर ने पॉलिटिक्स की पहली परीक्षा पास कर ली है. पार्टी की लांचिग के लिए उन्होंने बुधवार को पटना में अधिवेशन बुलाया. वेटनरी कालेज ग्राउंड में जन सुराजियों की जुटी भीड़ उनके दावे के अनुरूप तो नहीं दिखी, लेकिन बाढ़ और महालया के त्योहारी दिन के बावजूद जितने लोग आए, उसे कम नहीं कहा जा सकता. खासकर तब, जब उन्होंने जन सुराज का संगठन खड़ा करने के लिए अभी तकरीबन डेढ़ दर्जन जिलों में ही अपनी पदयात्रा पूरी की है. इससे अधिक जिलों में अभी उनकी पदयात्रा होनी है.

मनोज भारती भीड़ खींच पाएंगे?
प्रशांत किशोर ने कहा था कि पार्टी का नेतृत्व दलित समाज का कोई नेता करेगा. उसके बारे में जैसा संकेत प्रशांत किशोर ने दिया था, ठीक वैसी ही खोज उनकी रही. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएफएस) के अधिकारी रहे मनोज भारती को उन्होंने कार्यकारी अध्यक्ष नामित किया है. भारती अनुसूचित जाति से आते हैं. उनका ज्यादातर समय बिहार से बाहर ही बीता है, लेकिन जड़ें बिहार में ही रही हैं. वे पढ़े-लिखे व्यक्ति हैं. बिहार के मिजाज को समझते हुए उनका आकलन करने वाले लोग कहते हैं कि बिहार की राजनीति में उनका चेहरा नया और बेदाग तो है, लेकिन वे चुनावी जंग में अपना प्रभाव दिखा पाएंगे, इसमें संदेह है. जिन्हें लोग जानते तक न हों, उनके प्रति लोगों का आकर्षण कैसे बढ़ेगा. यानी वे भीड़ खींचने वाला चेहरा नहीं हैं, जैसी छवि प्रशांत किशोर की रही है.

रोटेशन पर बदलते रहेंगे प्रेसिडेंट
बहरहाल, मनोज भारती जन सुराज पार्टी के स्थायी अध्यक्ष नहीं हैं. पार्टी में कोई स्थायी या दूसरे दलों की तरह तीन साल के कार्यकाल वाला अध्यक्ष नहीं बनना है. पार्टी के संविधान के मुताबिक साल दर साल पार्टी प्रेसिडिंट बदलते रहेंगे. दलित, अति पिछड़े, पिछड़े के बाद सवर्ण को भी अध्यक्ष बनने का मौका मिलेगा. पारंपरिक सियासत में प्रशांत की पार्टी का यह नया प्रयोग है. इसकी सफलता-विफलता के बारे में अभी कोई अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन इतने कम समय का कार्यकाल किसी को अपनी योग्यता साबित करने के लिए पर्याप्त तो नहीं ही माना जा सकता है.

दावे के मुताबिक नहीं दिखी भीड़
प्रशांत किशोर का दावा था कि एक लाख लोगों की भीड़ अधिवेशन में जुटेगी. हालांकि पहले जिस तरह उन्होंने वैशाली और पटना गांधी मैदान की जगह प्रशासन से मांगी थी, उससे लगता था कि वे भारी भीड़ जुटाने की तैयारी कर चुके हैं. यह तो संयोग ही रहा कि प्रशासन ने उन्हें दोनों जगहें नहीं दीं. तब उन्हें वेटनरी कैलेज ग्राउंड का चयन करना पड़ा. इसकी क्षमता ही लगभग लाख लोगों की है, लेकिन लोग उतने नहीं आए. हालांकि जितनी उपस्थिति रही, उसे कम भी नहीं कहा जा सकता. इस बारे में पार्टी के प्रवक्ता संजय ठाकुर दो वजहें बताते हैं. वे कहते हैं कि अव्वल तो उत्तर बिहार के 14 जिले बाढ़ की विभीषिका झेल रहे हैं. प्रशांत किशोर की पदयात्रा भी इन्हीं जिलों में अभी तक हुई है. दूसरा कि महालया का त्योहारी दिन भी था. इसलिए लोगों की उपस्थिति थोड़ी कम रही. इसके बावजूद जितने लोग पहुंचे, वह जन सुराज की लोकप्रियता का परिणाम है.

prashant kishor passed first political exam will test jan Suraj party strength in assembly by poll

प्रशांत किशोर अब तक 15 जिलों में पदयात्रा निकाल चुके हैं.

सोशल मीडिया तक ही है जलवा
कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि प्रशांत किशोर की जमीनी हकीकत कुछ और है. अभी तक वे सोशल मीडिया पर ही छाए हुए हैं. जनता का जुड़ाव उनसे नहीं हो पाया है. दावे के मुताबिक भीड़ का न जुटना इसका संकेत है. पर, सच यह है कि जितनी भीड़ जुटी, उसे पहले प्रयास में कम भी नहीं कहा जा सकता. प्रशांत किशोर के कार्यक्रम को सोशल मीडिया पर जितनी संख्या में लोगों ने देखा, उसे कम कूतना भूल होगी. इसलिए कि आज सोशल मीडिया का ही जमाना है. हर हाथ में मोबाइल पहुंच गया है. शिक्षा और रोजगार पर पार्टी का फोकस उन नौजवानों को खूब भाया, जिन्होंने उनके कार्यक्रम को लाइव देखा. अच्छी बात यह रही कि प्रशांत ने दूसरे दलों की तरह मुफ्त की रेवड़ियां बांटने का कोई वादा या संकल्प नहीं बताया. वे शराबबंदी खत्म कर उससे मिलने वाले राजस्व को शिक्षा पर खर्च करने की बात कहते हैं. वे लोगों से अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा और रोजगार के लिए वोट करने की अपील करते हैं. वे बेहतर और विश्वस्तरीय शिक्षा की जरूरत बताते हैं. इसका ब्लूप्रिंट बताते हैं.

केंद्र का पैसा मनमर्जी कैसे बांटेंगे!
प्रशांत किशोर ने जितनी बातें कहीं, उनमें कुछ के पूरा होने पर थोड़ा संदेह है. उन्होंने कहा कि वे मनरेगा के पैसों को किसानों के खाते में डालेंगे, जिससे वे खेती के लिए मजदूर का बंदोबस्त कर सकें. यह बात इससे पहले भूतपूर्व केंद्रीय मंत्री और आरजेडी के नेता रघुवंश प्रसाद सिंह भी कहते रहे थे. चूंकि मनरेगा का पैसा केंद्र से मिलता है, इसलिए इसके खर्च का प्रशांत किशोर का तरीका आसान नहीं है. इसके लिए केंद्र सरकार को भरोसे में लेना होगा. सियासी तौर पर अपने विरोधी का वादा केंद्र सरकार कैसे और क्यों पूरा करेगी!

बिहार में भूमि सुधार टेढ़ी खीर है
प्रशांत किशोर ने बिहार में भूमि सुधार लागू करने की बात कही है. यह प्रयोग बिहार में अब तक असफल रहा है. कर्पूरी ठाकुर ने भी इसके लिए प्रयास किया था, पर वे कामयाब नहीं हो पाए. प्रशांत किशोर का दावा है कि बिहार में 60 प्रतिशत के पास जमीन नहीं है. संभव है कि उनके रिसर्च विंग ने यह आंकड़ा जुटाया हो. पर, इसके लिए प्रशांत कौन-सा फार्मूला अपनाएंगे, यह समय पर ही पता चलेगा. अभी सुनने में तो यह बात लुभावनी लगती है.

कास्ट पोलिटिक्स से कैसे निपटेंगे
प्रशांत किशोर को पहली कामयाबी मिल जाने के बाद भी इस बात को लेकर शंका जताई जा रही है कि बिहार की जातिवादी राजनीति में वे गैर जातिवादी व्यवस्था कायम करने में क्या कामयाब हो पाएंगे. नीतीश कुमार लव-कुश (कुर्मी-कोइरी) समीकरण के सहारे राजनीति में स्थापित हुए. लालू यादव एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण के सहारे अभी तक आरजेडी का अस्तित्व बचाए हुए हैं. जीतन राम मांझी और चिराग पासवान दलितों की राजनीति करते हैं. भाजपा सवर्ण और वैश्य वोटों पर अपना अधिकार मानती रही है. ऐसे में प्रशांत किशोर कितने कामयाब होंगे, यह समय पर पता चलेगा.

उपचुनाव में परखेंगे अपनी शक्ति
जन सुराज अभियान के पार्टी में तब्दील होने के पहले प्रशांत किशोर सारण क्षेत्र से एक एमएलसी बना चुके हैं. वैसे रुपौली विधानसभा उपचुनाव में भी उनकी भूमिका बताई जाती रही है. अब वे अपनी ताकत बिहार में चार सीटों पर होने वाले उपचुनाव में आजमाएंगे. बिहार में चार विधायकों के सांसद बन जाने के बाद ये सीटें रिक्त हुई हैं. इन चुनावों में जन सुराज के उम्मीदवारों को मिलने वाले जन समर्थन और वोट से प्रशांत किशोर की असली ताकत का पता चलेगा.

Tags: Bihar politics, Prashant Kishor

FIRST PUBLISHED :

October 4, 2024, 16:31 IST

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