बिल्‍डर के प्रोजेक्‍ट में खरीदा है फ्लैट, कब्‍जे से पहले देखें ये डॉक्‍यूमेंट

1 month ago

नई दिल्‍ली. कम दाम पर संपत्ति हासिल करने की चाह में एक बड़ा वर्ग बिल्डर और डेवलपर के प्रोजेक्ट्स में तभी निवेश कर देता है, जब उनका निर्माण कार्य शुरुआती दौर में होता है या फिर उनकी लांचिंग ही हुई होती है. प्रोजेक्ट की लांचिंग से लेकर उसके निर्माण और परियोजना के ग्राहकों को मकानों का कब्जा एक लंबी प्रक्रिया होती है जिसमें नि:संदेह कई साल लग जाते हैं. रियल एस्टेट सलाहकार प्रदीप मिश्रा का कहना है कि आपने भी अगर किसी बिल्डर के प्रोजेक्ट में निवेश किया है या फिर करने की सोच रहे हैं तो नियमित अंतराल पर आपको खुद लोकेशन पर जाकर प्रोजेक्ट की प्रगति का अवलोकन करते रहना चाहिये.

एक्‍सपर्ट के अनुसार, ऐसे प्रोजेक्‍ट में विशेष तौर पर स्ट्रक्चर पूरा होने के बाद जब उसकी फिनिशिंग की बारी आती है तो उस मौके पर यह और अधिक जरूरी हो जाता है. जब प्रोजेक्ट पूरा हो जाय और बिल्डर ग्राहकों को कब्जा यानी पजेशन की पेशकश शुरू कर दे तो उस समय आपको किन कागजात और दस्तावेजों की जांच परख करनी चाहिए? यह दस्तावेज क्या है और इनका महत्व क्या है, इसकी पूरी जानकारी आपको देते हैं.

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कम्प्लीशन या ऑक्यूपेंसी सर्टीफिकेट
इन दोनों ही शब्दों का अर्थ एक ही है, बस फर्क इतना है कि कुछ शहरों में इसे कम्प्लीशन तो कुछ जगहों पर इसे ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट कहा जाता है. यह सर्टिफिकेट बिल्डर उस शहर की लोकल अथॉरिटी या फिर डेवलपमेंट एजेंसी से प्राप्त करता है, जहां से उसने परियोजना के निर्माण का नक्शा पास कराया है. यह दस्तावेज इस बात को स्पष्ट करता है कि परियोजना पूरी हो गई है. साथ ही प्राधिकरण के समक्ष प्रोजेक्ट बनाने से पहले जो नक्शे ​बिल्डर ने जमा करवाये, थे उसी के अनुरूप उसका निर्माण किया गया है. इसके साथ ही बिल्डर का प्राधिकरण के प्रति कोई बकाया नहीं है. यह बात आप समझ लें कि कई बार इस कागज के न होने पर रजिस्ट्रार ऑफिस में आपके नाम पर संपत्ति की रजिस्ट्री भी नहीं हो पाती है.

बिल्डिंग बाइलॉज का पालन
प्रोजेक्ट के निर्माण में बिल्डर ने बिल्डिंग बाईलॉज का पालन किया है या नहीं इसकी परख भी जरूर करें. कम्प्लीशन सर्टीफिकेट से ही इसका भी पता चल जाएगा. यह बात तो आप लोग भी जानते ही होंगे कि उत्तरी भारत का एक बड़ा हिस्सा सेस्मिक जोन-4 में गिना जाता है जो भूकंप के लिहाज से बेहद संवेदनशील क्षेत्रों में से एक माना जाता है. ऐसे में यह भी देख लें कि बिल्डर ने इमारतों का जो स्ट्रक्चर तैयार किया है, वह भूकंपरोधी मानकों पर भी खरा उतरता हो. कई बार इमारतों में कुछ जगहों पर दरारें दिखने लगती हैं या फिर टूटफूट हो जाती है तो उस स्थिति में मकान की पजेशन से पहले ही आप बिल्डर से उसे दुरुस्त कराने के लिए कह सकते हैं.

फायर फाइटिंग अप्रूवल
बीते तीन दशकों से मल्टीस्टोरी रूप में रिहाइशी इमारतों का प्रचलन बढ़ा है. ऐसे में वक्त के साथ ही इन इमारतों में आग से निपटने के लिए पानी का टैंक हर टॉवर में पाइप की व्यवस्था, कॉमन एरिया के साथ मकानों के भीतर भी स्मोक डिटेक्टर, फायर एक्सटिंग्विशर आदि की व्यवस्थाएं अब जरूरी हो गई हैं. प्रोजेक्ट पूरा हो जाने के बाद बिल्डर को अग्निशमन विभाग से भी संबंधित स्वीकृति लेनी होती है. संबंधित विभाग प्रोजेक्ट का अवलोकन करता है और उपकरणों की परख करने के बाद स्वीकृति देता है. ऐसे में कब्जा लेने से पहले यह भी जरूर देख लें कि वहां आग बुझाने संबंधी उचित इंजताम किए गए हों.

बिजली-पानी सीवेज कनेक्शन
इन दस्तावेजों को परखने के बाद यह भी देखें कि परियोजना में बिजली-पानी की सुचारू आपूर्ति शुरू हो गई हो और सीवेज का कनेक्शन भी मिल गया हो. निश्चय ही किसी भी जगह रहने के लिए यह बुनियादी जरूरतें हैं. कई बार परियोजनाओं में तय समय पर कब्जा देने में देरी होने पर बिल्डरों की तरफ से ग्राहकों को कहा जाता है कि वह अपने मकानों का कब्जा ले लें और शेष सुविधाएं कुछ ही दिनों में शुरू करवा दी जाएंगी. बिल्डर की तरफ से यह कदम पजेशन में होने वाली देरी पर ग्राहक को चुकाई जाने वाली पेनाल्टी से बचने के लिए उठाया जाता है. लिहाजा समझदारी इसी में है कि जब तक बुनियादी सुविधाएं न मिलें आप भूलकर भी कब्जा न लें.

Tags: Business news, Property investment, Property market

FIRST PUBLISHED :

October 6, 2024, 23:28 IST

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