हाल के दिनों में नवनिर्मित मंदिरों के गर्भगृह में कुछ स्थानों पर विद्युत दीपक (Electric Light) लगाए जा रहे हैं. लेकिन प्राचीन मंदिरों में आज भी देवता के गर्भगृह में विद्युत दीपकों का उपयोग नहीं किया जाता. भक्तों को केवल तेल के दीपकों की रोशनी में ही देवता के दर्शन करने का अवसर मिलता है. कुछ लोगों को ही यह जानकारी है कि देवता के गर्भगृह में विद्युत दीपक क्यों नहीं लगाए जाते. आइए जानते हैं, इसके पीछे का उद्देश्य क्या है.
मंदिरों में दिव्य शक्ति का महत्व
चाहे करोड़ों रुपये खर्च कर विशाल मंदिर बनाया गया हो, या सीमित संसाधनों के साथ एक छोटा सा मंदिर, दोनों में एक समान दिव्य शक्ति होती है. मंदिरों के गर्भगृह में स्थित देवता की मूर्ति की महत्ता सर्वोपरि होती है. प्राचीन समय से ही गर्भगृह में देवता के विग्रह को केवल तेल के दीपक की रोशनी में देखने की परंपरा है.
नए मंदिरों में कैमरा और विद्युत दीपों का प्रयोग
हाल के वर्षों में कुछ नए मंदिरों में गर्भगृह में विद्युत दीपों के साथ-साथ कैमरा द्वारा देवता के दर्शन की व्यवस्था भी की गई है. लेकिन धार्मिक समुदाय में यह मान्यता है कि देवता की मूर्ति पर तेज विद्युत दीपक का प्रकाश या कैमरे की रोशनी नहीं पड़नी चाहिए. इस विषय पर धार्मिक स्तर पर कई चर्चाएं हुई हैं.
गर्भगृह में पूजन का कैमरा द्वारा प्रसारण
गर्भगृह में होने वाली पूजा विधि का कैमरा या वीडियो द्वारा प्रसारण प्राचीन मंदिरों में कभी नहीं किया गया है. इसलिए गर्भगृह में होने वाली पूजा का कैमरे द्वारा प्रसारण करना या विद्युत दीपकों से रोशनी करना अनुचित माना जाता है, और इस पर लगातार चर्चाएं होती रहती हैं.
देवता की सानिध्यता और ऊर्जा का महत्व
तकनीकी व्यवस्था से देवता की मूर्ति का लाइव दर्शन कराने से देवता की सानिध्यता में कमी आ जाती है. ऋषि-मुनियों के समय में यह मान्यता थी कि देवता को केवल दीपक की रोशनी में ही देखा जाना चाहिए. हालांकि आज कुछ स्थानों पर विद्युत दीपक का प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन कई मंदिरों में अभी भी इसका उपयोग नहीं होता. धार्मिक नेता मानते हैं कि ऐसा करने से देवता की सानिध्यता और ऊर्जा भक्तों को मिलती है.
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FIRST PUBLISHED :
October 25, 2024, 23:15 IST
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