Zero-Food Harvard Study: भारत सरकार ने मंगलवार (12 मार्च) को हार्वर्ड के उस अध्ययन की आलोचना की जिसमें दावा किया गया था कि भारत में 6.7 मिलियन (67 लाख) 'जीरो फूड बच्चे (zero-Food Children) ' हैं. भारतीय केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने रिपोर्ट को 'फर्जी खबरों को सनसनीखेज बनाने वाली लॉबी' की जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण 'कोशिश' करार दिया.
फरवरी में JAMA नेटवर्क जर्नल में प्रकाशित हार्वर्ड अध्ययन का दावा है कि भारत में 19.3 प्रतिशत बच्चे 'जीरो फूड बच्चे' हैं.
भारत को तीसरे स्थान पर रखा गया
अध्ययन में 92 निम्न और मध्यम आय वाले देशों का मूल्यांकन किया गया है. 19.3 प्रतिशत बच्चों के साथ, अध्ययन में भारत को गिनी (Guinea ) (21.8 प्रतिशत बच्चे) और माली (20.5 प्रतिशत बच्चे) के बाद तीसरे स्थान पर रखा गया है.
हालांकि, यह दावा किया गया है कि 'इस अध्ययन में जीरो फूड बच्चों में से लगभग आधे बच्चे भारत में थे' और संख्या के मामले में, यह देश में सबसे अधिक 60 लाख है.
'जीरो-फूड बच्चे' क्या हैं
अध्ययन के मुताबिक 'जीरो-फूड बच्चे, वे बच्चे हैं जिन्होंने आखिरी 24 घंटों के दौरान किसी भी पशु के दूध, फॉर्मूला, सॉलिड या सेमी-सॉलिड फूड का सेवन नहीं किया है.'
भारतीय मंत्रालय ने क्या कहा
रिपोर्ट की आलोचना करते हुए, भारतीय केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कहा, 'जेएएमए लेख छह महीने से अधिक उम्र के शिशुओं के लिए स्तन के दूध के महत्व को स्वीकार नहीं करता है और इसके बजाय ऐसे शिशुओं को केवल पशु का दूध/फॉर्मूला, सॉलिड या सेमी सॉलिड देने पर ध्यान दिया गया है.'
मंत्रालय ने कहा, 'यह हैरानी की बात है कि आर्टिकल में छह से तेईस महीने के शिशुओं के लिए भोजन की परिभाषा से स्तन के दूध को बाहर करता है. अध्ययन में बताए गए तथाकथित 19.3 प्रतिशत जीरो फूड बच्चों में से 17.8 प्रतिशत बच्चे स्तनपान करते हैं और केवल 1.5 प्रतिशत बच्चे ही स्तनपान नहीं करते हैं.'
मंत्रालय ने कहा, 'भारत में 6 महीने से 6 साल की उम्र के लगभग 13.7 करोड़ बच्चों में से 8.9 करोड़ बच्चे आंगनवाड़ी केंद्रों में पंजीकृत हैं और उनमें से 95 प्रतिशत आधार पोषण ट्रैकर पर वेरिफाइड हैं. पोषण ट्रैकर के आंकड़ों के अनुसार, केवल लगभग 6.26 प्रतिशत कमोजर हैं और केवल 1.9 प्रतिशत गंभीर रूप से कुपोषित हैं.'