इलाहाबाद की उन तवायफ को क्यों कहते थे 'छप्पन छुरी', क्या थी असल कहानी

1 week ago

हाइलाइट्स

छप्पन छुरी इलाहाबाद की ऐसी तवायफ थीं, जिनका डंका 19वीं सदी के शुरू में खूब बजा, जार्ज पंचम के स्वागत में भी गायावह ऐसा गाती थीं कि उन्हें सुनने वाले लोग मंत्रमुग्ध हो जाते थे. बहुत से लोगों ने उनकी आवाज के जरिए उन्हें एकतरफा प्यार कियाउन्होंने रीवा के महाराजा को जब चेहरा दिखाने से मना किया तो वह बहुत नाराज हुए लेकिन बाद में उपहारों से लाद दिया

भारत में तवायफों की ऐसी ऐसी कहानियां हैं कि सुनकर हैरान रह जाएं. कुछ सच्ची कहानियां उनके प्यार की. कुछ असल कहानियां उनके धन दौलत और वैभव की. कुछ किस्से उनके नाजो अदा के. ऐसी ही एक तवायफ इलाहाबाद में हुईं, जिनका नाम था जानकी बाई, लेकिन लोग उन्हें छप्पन छुरी के ही नाम से जानते हैं, वो दिलों पर छुरियां तो जरूर चलाती थीं लेकिन ये वजह उनका नाम छप्पन छुरी रखे जाने की वजह नहीं था.

इलाहाबाद विश्व विद्यालय में साहित्य की प्रोफेसर नीलम सरन गौर ने उन तवायफ के जीवन पर एक किताब लिखी, “रेक्विम इन रागा जानकी” (Requiem in raga janki), इस पर उन्हें अंग्रेजी कैटेगरी में साहित्य अकादमी के पुरस्कार से नवाजा गया. ये किताब उनके जीवन को बयां करती है. हालांकि जानकी बाई उर्फ छप्पन छुरी का जिक्र कपिल पांडे की किताब “फूलसुंघी” में भी हुआ है. इसके अलावा भी छप्पन छुरी को लेकर और भी कहानियां हैं.

छप्पन छुरी की कहानी
बॉलीवुड में तो कई फिल्मों के डॉयलाग्स में छप्पन छुरी विशेषण का ऐसा इस्तेमाल हुआ जिससे लगता था कि बात ऐसी स्त्री हो रही है, जो नजरों से लेकर अदाओं से दिल पर इतनी छुरियां चला देती हैं कि पूछिए ही मत. खैर अब चलिए तवायफ जानकी बाई की असल कहानी पर आते हैं और ये जानते हैं कि उन्हें छप्पन छुरी क्यों कहा गया.

सबसे पहले बात नीलम सरन गौर की किताब के जरिए ही, जिसमें उनकी कहानी के साथ बयां किया गया कि वो कैसी थीं, कैसा गाती थीं और कैसे छप्पन छुरी बन गईं.

मां-बेटी को कोठे पर बेच दिया गया
जानकी बाई का जन्म 1880 में वाराणसी में हुआ. मां का नाम मानकी देवी था. पिता का नाम पहलवान सिंह. पिता ने बेटी के जन्म के बाद मां-बेटी दोनों को छोड़ दिया. उनके सामने ऐसे हालात पैदा हुए कि उन्हें इलाहाबाद में एक कोठे में बेच दिया गया. मानकी गोद में छोटी बेटी को लिए उस कोठे पर आ गईं. और वहां की जिंदगी में ऐसी रमीं कि एक दिन उसकी मालिकिन ही बन गईं.

तवायफ छप्पन छुरी यानि जानकी बाई इलाहाबादी (illustration by Anand)

जानकी पर कांस्टेबल रीझ गया लेकिन…
जानकी बाई की संगीत और गायन में बचपन से रुचि थी लिहाजा उसे हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में दक्ष किया गया. जानकी ना केवल बला की खूबसूरत थीं बल्कि सुरीली आवाज से जादू करती थीं. जब वह महज 12 साल की थीं तो एक पुलिस कांस्टेबल रघुनंदन उन पर रीझ गया. उसने जानकी को प्रेम प्रस्ताव भेजा जो ठुकरा दिया गया. फिर उसने यौन संबंध बनाना चाहा तो उसमें भी नाकाम हो गया.

छुरी से घाव पर घाव करता गया
गुस्से में रघुनंदन ने उन पर छुरी से हमला किया. शरीर से लेकर चेहरे तक घाव ही घाव करता चला गया. जानकी की हालत गंभीर हो गई. बचने की सूरत नहीं थी लेकिन वह बच तो गईं लेकिन चेहरे की सुंदरता की जगह घाव के दाग ले चुके थे. चूंकि उन पर छुरी से 56 घाव किए गये थे लिहाजा उन्हें छप्पन छुरी कहा जाने लगा. इसी वजह से वह ताजिंदगी अपना चेहरा छिपाकर पर्दे से पीछे से ही गाती रहीं.

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हमेशा पर्दे के पीछे से ही गाती थीं
जानकी बाई अपना पूरा नाम जानकी बाई इलाहाबादी बताती थीं लेकिन जनता के लिए वो छप्पन छुरी बन गईं. आवाज ऐसी कि कोई भी दीवाना बन जाए. वह गाने के लिए बाहर भी जाती थीं और जहां भी उनकी महफिल सजती थीं, वहां वह जनता की मांग के बावजूद पर्दे में गाती थीं और जब पर्दे के पीछे से उनकी सुरीली आवाज और उसका अंदाज लोगों के गानों तक पहुंचता था तो जादू सा हो जाता था. कहा जाता था बहुत से लोग केवल इसलिए उनसे एकतरफा प्रेम कर बैठे थे, क्योंकि उनकी आवाज उनका सुध-बुध छीन लेती थी.

ईर्ष्यालु प्रेमी को डांटा तो…
विक्रम संपत की किताब, ‘माई नेम इज गौहर जान!’ – द लाइफ एंड टाइम्स ऑफ ए म्यूजिशियन’ में भी उनका जिक्र हुआ है. जिसमें कहा गया कि इलाहाबाद की तवायफ़ जानकी बाई का एक ईर्ष्यालु प्रेमी था, जो उसके प्यार में पागल था, जब उन्होंने उसे डांटा तो उसने उनके पर 56 (छप्पन) वार कर उसे घायल कर दिया.

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एक और किस्सा
कपिल पांडे की किताब ‘फूलसुंघी’ में भी जानकी बाई इलाहाबादी का किस्सा है. जानकीबाई बहुत प्रसिद्ध तवायफ थीं. गौहर जान तक उनकी कद्र करती थीं. ऐसा कहा जाता है कि जानकीबाई का एक समर्पित प्रशंसक उनके गीतों से इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उसने अपनी सारी संपत्ति उन पर लुटा दी. हालांकि, उसने कभी उसका चेहरा नहीं देखा था. एक झलक भी नहीं, क्योंकि वह हमेशा घूंघट में होती थीं.

ये प्रेमी एक दिन इतना मदहोश हो गया कि जानकी बाई के करीब आकर उसने बगैर सोचे समझे उनका घूंघट उठा दिया. तब उसकी नज़र जानकी बाई के काले और दागदार चेहरे पर पड़ी. वह सोच भी नहीं सकता था जो महिला इतना सुरीला मदहोश करने वाला गाना गाती है, वो ऐसी होगी. वह विचलित हो गया. इसी गुस्से में बार बार चाकू से वार किया. जानकीबाई छप्पन वार से चमत्कारिक ढंग से बच गईं. उन्हें एक रंगीन नया उपनाम मिला – छप्पन चूरी या छप्पन चाकू.

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हजारों रुपए लेती थीं
उन्होंने ‘दीवान-ए-जानकी’ नामक उर्दू कविताओं की एक किताब भी लिखी. जानकी बाई ने 100 से ज़्यादा गीतों और गजलों को रिकॉर्ड किया था. उस समय एक गीत के लिए हज़ारों रुपये लिया करती थीं. कुछ लोगों का कहना है कि उन्हें फ्रेडरिक विलियम गेसबर्ग ने उन्हें पहले पहल रिकॉर्ड किया था. वे रिकॉर्ड या तो खो गए थे या नष्ट हो गए.

उनकी रिकॉर्डिंग्स में पूर्वी उत्तर प्रदेश या पूरब का विशिष्ट स्वाद मिलता है,, जिनमें अधिकांश तौर पर भजन, कजरी, चैती की अर्ध-शास्त्रीय शैलियों में गायन हैं और होरी जैसी प्रस्तुतियां भी.  ऐसा कहा जाता है कि उनके कई रिकॉर्ड की 25,000 से अधिक प्रतियां बिकीं, जो उनके सबसे निपुण समकालीनों के लिए भी अनसुना था.

शादी भी हुई लेकिन चली नहीं
जानकी बाई की शादी इलाहाबाद के एक वकील शेख अब्दुल हक से हुई लेकिन चल नहीं पाई. कुछ साल बाद ये रिश्ता खत्म हो गया क्योंकि उन्हें पता चला कि वह उन्हें धोखा दे रहे हैं.

उन्होंने अपने नाम पर एक धर्मार्थ ट्रस्ट की स्थापना की, जो आज भी इलाहाबादमें मौजूद है. उन्होंने जरूरतमंद छात्रों को वित्तीय सहायता देने, गरीबों को कंबल वितरित करने, मंदिरों और मस्जिदों को दान देने के साथ मुफ्त रसोई चलाने के उद्देश्य से अपनी सारी संपत्ति और अपने रिकॉर्ड और प्रदर्शन के माध्यम से अर्जित की गई अपार संपत्ति ट्रस्ट को सौंप दी.

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18 मई 1934 को उनकी मृत्यु इलाहाबाद में हुई. वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया. इलाहाबाद के आदर्शनगर के कालाहांडा कब्रिस्तान में उनकी कब्र मौजूद है लेकिन बदहाल हालत में.

रीवा के राजा को भी चेहरा दिखाने से मना कर दिया था
मध्य भारत में रीवा रियासत के दरबार में एक भव्य शाही दावत थी. महाराजा कला के पारखी थे. वह उस दावत में जानकी बाई के गाने और संगीत पर मंत्रमुग्ध हो गए. गायिका की मधुर आवाज और धुन ने तुरंत उनका ध्यान उसकी ओर खींचा. वह हैरान थे गायिका ने पर्दे के पीछे से प्रदर्शन करने का फैसला क्यों किया था. जब उन्होंने पूछताछ की, तो बताया गया कि वह उत्तर भारतीय शहर इलाहाबाद की सबसे लोकप्रिय तवायफों में एक थी – जानकी बाई.

एक तवायफ अपने संरक्षक, एक रियासत के महाराजा की नजरों से खुद को दूर रखने में क्यों शर्म आ रही है कि उसने खुद को पर्दे में रखा हुआ है. ये सोचकर राजा को गुस्सा आ गया. उन्होंने मांग की कि कलाकार खुद को चेहरे समेत उनके सामने पेश करे. लेकिन जानकी बाई ने ये कहते हुए इनकार कर दिया कि वह राजा के क्रोध का सामना करना पसंद करेगी और संगीत कार्यक्रम समाप्त कर देगी.

खैर प्रोग्राम के बाद उसने राजा को बताया कि पर्दे में रहने की असल वजह ये है कि उसके चेहरे पर चाकू के 56 वार किए गए हैं. लिहाजा वह खुद का चेहरा किसी को दिखाना नहीं चाहतीं. राजा ने उन्हें बहुमूल्य उपहारों से नवाज़ा गया और कहा गया कि उनके संगीत की शक्ति उन सभी चीज़ों पर भारी पड़ गई है जिन्हें वह अपनी असफलता मान सकती हैं.

एक तवायफ थीं ढेला
इसी तरह एक तवायफ थीं ढेला. ये भी असली नाम नहीं था. ये विशेषण भी उन्हें खास हालात पैदा करने के लिए दिया गया. असल में उनका नाम गुलजारीबाई था. नाम के अनुरूप गुलज़ार, मानो फूलों का खिलता हुआ बगीचा, जैसे चंद्रमा सी चमक, जैसे स्वर्ग सी अप्सरा. लेकिन एक दिन उन्हें लेकर दो गुटों में विवाद हुआ और खूब ढेले पत्थर चले. बस इसीलिए उनका नाम हमेशा के लिए ढेला पड़ गया.

Tags: Allahabad news, Love, Love Story, Music

FIRST PUBLISHED :

May 10, 2024, 12:13 IST

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