कम या ज्यादा मतदान ने तय की जा सकती है किसी पार्टी की हार या जीत...?

1 week ago

सामान्य तौर पर कम मतदान का दोष राजनीतिक दलों पर लगा दिया जाता है. दरअसल, कम मतदान होना राजनीतिक दलों से ज्यादा समाज की सज्जन शक्ति और सामाजिक संगठनों को चुनौती है. राजनीतिक दल अपने हिस्से का मतदान कराने का भरसक प्रयास करते हैं. वे अपने प्रयास में कितने सफल हुए यह चुनाव परिणाम में स्पष्ट हो जाता है. कम मतदान का राजनीतिक विश्लेषक और राजनेता अपने अपने तर्कों से अपने अपने निष्कर्ष निकाल लेते हैं. कई बार ये निष्कर्ष सच्चाई से कोसों दूर भी होते हैं. मतदान की कम संख्या से कुछ लोग भाजपा के बारे में जरूर अपना निर्णय सुना देते हैं. क्या यह तथ्यात्मक है? या इसके पीछे मात्र कोई धारणा भर है?

तथ्यों के आलोक में मतदान
बीते चुनावों के आंकड़े देखेंगे तो हम समाज की समझ को पढ़ पाएंगे. आम लोकसभा चुनाव 2024 के दो चरणों में कम मतदान को लेकर हल्ला है. हालांकि यह मतदान कम मात्र 2019 की तुलना में ही है. पिछले लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो मध्यप्रदेश में 2024 : 62.83 % (12 लोकसभा दोनों चरण) 2019 : 71.20 % , 2014 : 61.61 % , 2009 : 51.17 %, 2004 : 48.09 %, 1999 : 52.16 % मतदान हुआ. भारत के चुनावी इतिहास के अहम चुनाव आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में 51.96% मतदान हुआ. जिस चुनाव में अबतक की सर्वाधिक सीटे कांग्रेस ने प्राप्त की. जब श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, उसके बाद हुए चुनाव 1984 में भी 56.15 % मतदान हुआ था.

वहीं दूसरी ओर, विधानसभा चुनाव के परिणाम देखें तो कम या ज्यादा मतदान से दल विशेष की जीत या हार को जोड़ने का मिथक भी बेमानी लगता है. विधानसभा चुनाव में जिन पांच सीटों पर सर्वाधिक मतदान हुआ उनमें मात्र एक पर भाजपा जीती. वह सीट भी अधिक मतदान के क्रम में चौथे क्रमांक पर है. यदि सबसे कम मतदान वाली पांच सीटों पर नजर डालें तो दो सीटों पर भाजपा ने विजय प्राप्त की. संदेश स्पष्ट है कि क्षेत्र की तासीर, दल की बूथ पर पहुंच और उसका बूथ प्रबंधन, कार्यकर्ताओं की सक्रियता, प्रत्याशी का व्यक्तित्व और चुनावी व्यवहार मतदाताओं पर गहरा असर करता है. लोकसभा के दो चरणों के मतदान का बारीकी से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि भारतीय जनता पार्टी अपने मतदाताओं को बूथ तक ले जाने में बहुत हद तक सफल हो रही है.

मुद्दों की सकारात्मकता मतदाताओं की उदासीनता
राजनीति के विश्लेषक भरोसा करें ना करें लेकिन चुनावी परिणाम की यह विशेषता रही है कि मतदाता मुद्दों पर भी मतदान करता है. मुद्दा जाति और धर्म से जुड़ा हो सकता है या उसके दैनिक जीवन को प्रभाव डालने वाले रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य से जुड़ा भी हो सकता है. पिछले दो लोकसभा चुनाव की तरह ही यह चुनाव भी नरेंद्र मोदी के चुंबकीय नेतृत्व से प्रभावित है. यह भी समझना होगा कि मोदी जी का नेतृत्व या उनकी गारंटी यूं ही मुद्दा नहीं बन गई. भाजपा की विचारधारा, रीति नीति, संगठन तंत्र की शक्ति में रचे बसे मोदी जी ने आम आदमी के सपनों को साकार किया है. चाहे वह गरीब और मध्यम वर्ग का मकान हो या श्री रामलला का मंदिर. चाहे 80 करोड़ लोगों को निशुल्क राशन हो या दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था. चाहे चंद्रयान, आदित्य एल वन की सफलता हो या आधुनिक रेल से लेकर मजबूत एवं चौड़ी सड़कों की उपलब्धता हो. यह मतदाताओं ने देखा है. राष्ट्रीय चुनावों में राष्ट्रीय मुद्दे प्रभावी होते हैं. इन मुद्दों पर जैसे सुरक्षा, समृद्धि, बुनियादी ढांचागत सुविधाएं, विज्ञान और तकनीक इन सभी मुद्दों पर दुनिया में भारत की साख और धाक उसके मन को गदगद करती हैं. वह मोदी जी से एकात्म हो गया है.

आयेंगे तो मोदी ही की आश्वस्ति उसे बूथ पर जाने जरूरत महसूस नहीं करा रही है. यह भी एक अलग प्रकार की चुनौती है. बूथ पर दलीय कार्यकर्ता जहां एक ओर भाजपा और उसका शुभचिंतक वर्ग जीत के प्रति निश्चिंत है तो विपक्ष विशेषकर कांग्रेस सभी तरफ से हताश है. कांग्रेस में अंदरूनी घमासान भी नए नेतृत्व की ताजपोशी के बाद से जोरों पर है. भगदड़ भी है. यह भगदड़ दवाब में नहीं बल्कि अपमान और सम्मान की लड़ाई के कारण हुई है. यह भाजपा को वोटों में कितना लाभकारी होगी वह बूथ के परिणाम बताएंगे पर कांग्रेस का जनाधार खिसकना तय है. इस बार कई क्षेत्रों में कांग्रेस के कार्यकर्ता नदारद रहे. कई बूथ कांग्रेस से सूने रहे. जिनका मतदान पर भी असर है और परिणाम पर भी होगा. अपने अपने तर्क देते देते कई बार यह कहा जा रहा है कि जहां थोड़ा बहुत मुकाबला है वहां जरूर मतदान अधिक हुआ है. यह जोरदार स्वीकारोक्ति है कि कांग्रेस में हताशा है. कांग्रेस कार्यकर्ता लुप्त और सुप्त है. लोकसभा चुनाव भाजपा की ओर एकतरफा है.

भाजपा ने प्रदेश में विगत दो सालों में बूथस्तरीय कार्यकर्ता की योजनबद्ध सक्रियता बड़ाई है. विधानसभा चुनाव में भी इन्हीं कार्यकर्ताओं की इसी सक्रियता ने भाजपा के पक्ष में आशातीत परिणाम दिए थे. लगभग 61% बूथों को जीता. अभी तक का सर्वाधिक वोट शेयर लगभग 49% भाजपा को मिला. यह कार्यकर्ता संगठन निष्ठा और वैचारिक प्रतिबद्धता से जुड़ा है. इसकी बहुत कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी नहीं होती. जिस कारण उसके राजनीतिक सुख और दुख के कारण भी अलग होते हैं. इन कार्यकर्ताओं से नेतृत्व का संवाद लगातार बढ़ा है. उनका महत्व भी बढ़ा है. हालांकि कुछ लोग बूथ अध्यक्ष और पन्ना प्रमुख को बिलकुल 100% मापदंडों पर परखना चाहते हैं. यह वही कार्यकर्ता है जो सर्वाधिक खरा है और सच्चा है. यही भाजपा की शक्ति है और पहचान भी. यदि कहा जाए कि भाजपा इन्हीं की पार्टी है तो गलत नहीं होगा.

अपना और अपनों का मतदान लोकतंत्र की शुद्धता की गारंटी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार कहते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है. यह मात्र कोई उद्घोष नहीं वरन हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक समाज की अभिव्यक्ति है. जीवन शैली है. लोकाचार से लेकर संस्कार तक, तीज त्यौहार से लेकर सरकार तक लोकतंत्र हमारा व्यवहार है. हमने लोकतंत्र की संसदीय पद्धति को अपनाया है. इसकी आवश्यकता है कि हमारा इसमें योगदान हो. पहला और अनिवार्य कार्य मतदान ही है. सब कुछ मनचाहा निर्णय आनेवाला हो तो भी उसमे आपकी भागीदारी क्यों नहीं होना चाहिए ? क्यों नहीं आपकी सहमति दर्ज होनी चाहिए ? क्यों नहीं अच्छे और बुरे कार्यों करने वालों को आपका लोकतांत्रिक जवाब होना चाहिए ? यदि आपके बिना ही सब होना है तो आपके होने का क्या अर्थ? उत्तर मात्र एक है कि हां होगा अपना और अपनों का मतदान.

(यह लेखक के अपने निजी विचार हैं.)
(लेखकः रजनीश अग्रवाल)
प्रदेश मंत्री एवं बूथ प्रबंधन प्रभारी, भाजपा मध्यप्रदेश

Tags: Loksabha Election 2024

FIRST PUBLISHED :

May 6, 2024, 13:32 IST

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