पत्नी नहीं... लिव-इन पार्टनर संग संबंध बनाना चाहता था कैदी, HC ने सुनाया फैसला

1 week ago

नई दिल्ली: जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा एक कैदी पत्नी नहीं, बल्कि अपनी लिव-इन पार्टनर संग संबंध बनाना चाहता था और इसके लिए वह पैरोल चाहता था. जैसे ही उसने दिल्ली हाईकोर्ट से यह गुहार लगाई, जज साहब नाराज हो गए और उन्होंने झटका देते हुए अपना फैसला सुना दिया. दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भारत का कानून एवं जेल का नियम किसी कैदी को वैवाहिक संबंध बनाने के लिए पैरोल की अनुमति नहीं देता, वह भी ‘लिव-इन पार्टनर’ के साथ.

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि कोई व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि अपने या अपनी ‘लिव-इन पार्टनर’ (जो खुद भी एक दोषी है) से संतान पैदा करना कानून एवं जेल नियमों के दायरे में उसका मूल अधिकार है, जबकि ‘लिव-इन पार्टनर’ का जीवनसाथी जीवित है और उनके बच्चे भी हैं. हाईकोर्ट के जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, ‘यह उल्लेख करना भी जरूरी होगा कि मौजूदा कानून किसी को कानूनन शादी वाली पत्नी के साथ संबंध बनाने के लिए पैरोल प्रदान करने की अनुमति नहीं देता है…लिव-इन पार्टनर को तो छोड़ ही दीजिए.’

दरअसल, हाईकोर्ट ने एक व्यक्ति को अपनी ‘लिव-इन पार्टनर’ के साथ यौन संबंध बनाकर अपने वैवाहिक संबंध को पूरा करने और सामाजिक संबंध बरकरार रखने के लिए पैरोल पर रिहा करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की. यह व्यक्ति जेल में उम्र कैद की सजा काट रहा है. उसने शुरुआत में यह खुलासा नहीं किया था कि महिला उसकी ‘लिव-इन पार्टनर’ है और वह उसकी कानूनन विवाहित पत्नी नहीं है या पहले ही उसकी (व्यक्ति की) किसी और से शादी हो चुकी है. महिला ने याचिका में खुद को उसकी पत्नी बताया है और व्यक्ति ने भी यह खुलासा नहीं किया कि वह अपनी पहली पत्नी से कानूनन अलग नहीं हुआ है, जिसके साथ उसके तीन बच्चे हैं.

जेल में बंद है कैदी, पत्नी नहीं... लिव-इन पार्टनर संग बनाना चाहता था संबंध, दिल्ली HC ने सुना दिया फैसला

अदालत ने कहा, ‘भारत में कानून और दिल्ली जेल नियम वैवाहिक संबंध बनाने के लिए पैरोल की अनुमति नहीं देते हैं, वह भी ‘लिव-इन पार्टनर’ के साथ.’ अदालत ने कहा, ‘दूसरे शब्दों में कानूनन विवाहित पत्नी के जीवित होने और तीन संतान होने के बावजूद कोई दोषी कानून एवं जेल नियमावली के दायरे में अपने ‘लिव-इन पार्टनर’ से बच्चा पैदा करने को अपना मूल अधिकार होने का दावा नहीं कर सकता, जो खुद भी एक दोषी है.’ अदालत ने कहा कि दोषी की ‘लिव-इन पार्टनर’, जिसे ‘पत्नी’ या ‘जीवनसाथी’के रूप में कानूनी मान्यता नहीं प्राप्त है, वह दिल्ली जेल नियमों के तहत ‘परिवार’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है.

Tags: DELHI HIGH COURT, Delhi jail

FIRST PUBLISHED :

May 10, 2024, 08:24 IST

Read Full Article at Source