पुतिन के तीन यार और परमाणु हमले का खौफ...क्यों 4 देशों को देख थर-थर कांप रही दुनिया

2 weeks ago

बसपा के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर आकाश आनंद पर भड़काऊ बयान देने के मामले में FIR दर्ज की गई है. इसके अलावा सीतापुर से बसपा प्रत्याशी महेंद्र सिंह यादव, धौरहरा से बसपा प्रत्याशी श्याम किशोर अवस्थी और लखीमपुर से बसपा प्रत्याशी अंशय कालरा पर भी FIR दर्ज की गई है. सीतापुर बसपा प्रत्याशी धौरहरा बसपा प्रत्याशी लखीमपुर बसपा प्रत्याशी मंच पर मौजूद थे. सीतापुर बसपा जिला अध्यक्ष पर भी मुकदमा दर्ज किया गया है.

रूस के बाद एक और देश ने यूक्रेन पर परमाणु मिसाइल तैनात कर दी है. न्यूक्लियर रिमोट का बटन तैयार है. कुछ दिनों से रूस-यूक्रेन सीमा पर टेंपरेंचर बढ़ गया है. जंग में खतरनाक मोड़ आने की आशंका है. दुनिया की तबाही और बचाव के बीच सिर्फ परमाणु मिसाइल दागने भर की दूरी है.

परमाणु युद्ध की दी है धमकी

लुकाशेंको रूस के पड़ोसी बेलारूस के राष्ट्रपति हैं और उसने अमेरिका सहित नाटो गठबंधन को परमाणु युद्ध की धमकी दी है. जिस इंसान पर पुतिन आंखें मूंदकर भरोसा करते हैं. आप शायद उसका नाम भी पहली बार सुन रहे होंगे. इस वक्त बेलारूस में मिसाइल, परमाणु बम और सेना तैयार है. हमले की तैयारी 100 परसेंट पूरी हो चुकी है. बस न्यूक्लियर बटन दबाने भर की देर है. लुकाशेंको जिस हथियार से दुनिया को वॉर्निंग दे रहे हैं वो रूस की परमाणु मिसाइलें हैं.पहली बार ऐसा हो रहा है कि एक देश के न्यूक्लियर वेपन से कोई दूसरा देश धमकी दे रहा है.

दुनिया के 200 देशों में से सिर्फ 9 के पास परमाणु हथियार हैं. बेलारूस का नाम इस लिस्ट में नहीं है, लेकिन पुतिन को लुकाशेंको पर इतना भरोसा है कि रूस के परमाणु हथियार बेलारूस में तैनात किये गये हैं. न्यूक्लियर वेपन भले ही दे दिया पर कंट्रोल पुतिन के ही पास है. इस बीच बेलारूस की सेना को परमाणु हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी गई है. यानी संभव है लुकाशेंको को भी परमाणु मिसाइल लॉन्च करने का बटन मिल गया हो.

रूस की इस्कंदर मिसाइल है 500 किलोमीटर दूर तक परमाणु हमला कर सकती है. यानी यूक्रेन के किसी भी हिस्से और यूरोप के कुछ देशों को ये मिसाइल उड़ा सकती है. दुनिया में ऐसे बहुत कम मौके आए हैं जब किसी देश ने अपने परमाणु हथियार किसी और देश की धरती पर भेजे हों. रूस-बेलारूस के बीच भी यही हो रहा है. रूस की परमाणु मिसाइलें और न्यूक्लियर बम सीमा पार करके बेलारूस पहुंच गये हैं. एक्सपर्टस मानते हैं कि ये भी पुतिन की कोई सैन्य रणनीति हो सकती है.

बेलारूस में तैनात हैं परमाणु हथियार

बेलारूस में रूस ने अपने परमाणु हथियार तैनात कर दिये हैं. ये कितना बड़ा खतरा है क्या ये पुतिन की कोई मिलिट्री स्ट्रैटजी है? पुतिन और लुकाशेंको ने परमाणु हथियारों को तैनात करने का एक एग्रीमेंट किया था. 1991 के बाद पहली बार रूस ने अपनी मिसाइलें दूसरे देश में भेजीं और अब यही फैसला दुनिया के लिए अगली परमाणु जंग की शुरुआत बन सकता है. लुकाशेंको का दावा है कि 20 से 30 इस्कंदर मिसाइलें बेलारूस की सीमा में मौजूद हैं. हालांकि परमाणु हथियारों का सही नंबर और ज्यादा भी हो सकता है.

पुतिन अपने वॉर रूम में बैठकर बेलारूस में मौजूद न्यूक्लियर मिसाइलों को कंट्रोल करेंगे पर दूसरे प्लान की तैयारी भी हो चुकी है. पुतिन की सेना ने बेलारूस की आर्मी को परमाणु हमला करने की ट्रेनिंग दी है.यानी अगर रूस से मैसेज ना मिला तो भी लुकाशेंको अपनी मर्जी से हमला कर देंगे.

रूस की परमाणु मिसाइलों में एक सिक्योरिटी डिवाइस लगा है. इसे फायर करने और लक्ष्य पर हमला करने के लिए एक सीक्रेट कोड चाहिए. अगर वो कोड ना मिला तो मिसाइलें लॉन्च नहीं हो सकती. ऐसा लगता है पुतिन ने अपना परमाणु कोड अपने फ्रेंड लुकाशेंको के साथ शेयर कर लिया है.

पुतिन-लुकाशेंको उन अंतरिक्ष यात्रियों से मिले जो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से लौटे हैं. चाहे कोई भी मौका हो. पुतिन और लुकाशेंको अक्सर साथ नजर आते हैं. दोनों ने युद्ध वाली तैयारियां भी मिलकर की है. यूक्रेन पर हमला करने के लिए रूस की सेना ने बेलारूस से भी मोर्चा संभाल लिया. यूक्रेन की आर्मी पर मिसाइलें कभी रूस से बरसती रहीं तो कभी बेलारूस से.

क्यों लुकाशेंको ने दी है धमकी

इस बार लुकाशेंको ने दावा किया है कि उनकी सेना पोलैंड बॉर्डर के करीब तैनात है और कुछ ही घंटे में पोलैंड की सीमा में दाखिल हो सकती है. क्या अगला हमला बारूद के बदले न्यूक्लियर बम से होगा.लुकाशेंको की लेटेस्ट धमकी की वजह समझिए.

बेलारूस का पड़ोसी है पोलैंड. जो मिलिट्री गठबंधन नैटो का सदस्य है. अब नैटो अपने परमाणु हथियार पोलैंड में तैनात करेगा, इन हथियारों के टारगेट पर मॉस्को है. लुकाशेंको की धमकी आते ही पोलैंड ने युद्धाभ्यास शुरु कर दिया. बॉर्डर पर 1500 सैनिकों और तोपखाने के साथ गोलाबारी शुरू हो गई.

इस इलाके में पुतिन गुरु हैं तो लुकाशेंको उनका चेला. पश्चिमी देशों की मिसाइलों का रुख रूस की तरफ मुड़ा तो सबसे पहले लुकाशेंकों ने जुबानी बमबारी शुरू कर दी. पुतिन की वॉर्निंग याद दिलाकर बाइडेन सहित पूरे यूरोप को धमकी दे दी.

रूस के पास है एटमी हथियारों का जखीरा

फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत हुई और आज दो साल के बाद परमाणु खतरा टॉप के लेवल पर पहुंच गया है. रूसी मिसाइलें कोई ऐसी-वैसी नहीं है. हिरोशिमा-नागासाकी पर हुए हमले से तीन गुना ज्यादा ताकतवर हथियार अभी बेलारूस में मौजूद हैं. परमाणु हथियार तीन गुना पावरफुल हैं.तो नुकसान भी उससे बहुत ज्यादा होने की आशंका है. वैसे भी मॉस्को के पास लगभग 6000 न्यूक्लियर वेपन हैं तो अगर उनमें से कुछ बेलारूस को भी दे दिये तो कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा.

लुकाशेंको को बेलारूस में मॉस्को की कठपुतली भी कहा जाता है. रूस के ताकतवर सपोर्ट से लुकाशेंको. 1994 से ही बेलारूस के राष्ट्रपति बने हुए हैं. शायद 2025 में वो एक बार फिर राष्ट्रपति चुन लिये जाएंगे. उन्हें यूरोप का आखिरी तानाशाह भी कहा जाता है.लेकिन पुतिन के लिए वो करीबी दोस्त.सेनापति और सलाहकार तीनों हैं.

लुकाशेंको पुतिन के राइट हैंड हैं

लुकाशेंको एक तरह से पुतिन के राजनीतिक सलाहकार भी हैं. उन्होंने ही रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया की तिकड़ी बनाने का आइडिया दिया. इन तीनों ने लगातार एक-दूसरे की मदद की. यूक्रेन युद्ध में पुतिन को लुकाशेंकों से बिना शर्त सपोर्ट मिल रहा है. जबकि किम जोंग उन ने रूसी सेना के लिए तोप के गोले भेजे. मतलब साफ है लुकाशेंको एक तरह से पुतिन के प्रॉब्लम शूटर का किरदार निभा रहे  हैं.

रूस के परमाणु हथियारों ने लुकाशेंको की पावर बढ़ा दी है. एक तरह से कहें तो बेलारूस दुनिया का दसवां देश बन गया है जिसके पास परमाणु हथियार हैं. और ये कोई ऐसे-वैसे नहीं बल्कि सुपरपावर रशिया के न्यूक्लियर वेपन हैं. ऐसी मिसाइलें हैं एक बार में 10-10 परमाणु बम ले जा सकती हैं. दुनिया के एडवांस एयर डिफेंस सिस्टम को धोखा देकर सटीक हमला कर सकती हैं. यानी हमला हुआ तो बचने की उम्मीद जीरो परसेंट है.

अक्सर बड़े मौकों पर लुकाशेंको पुतिन के साथ साये की तरह नजर आते हैं. इनके बीच में एक और कनेक्शन है. इन दोनों ने सोवियत संघ को अपने सामने टूटते देखा है. रूस और बेलारूस आज की तारीख में भले ही अलग-अलग हैं. पर दोनों देशों के बीच ऐसे करीबी संबंध हैं मानो ये एक ही मुल्क हों.

रूस और बेलारूस के संबंध को आप दुनिया में सबसे अनोखा मान सकते हैं.अक्सर ऐसा होता है कि एक देश टूटकर जब दो हिस्सों में बंटता है तो दोनों के बीच बंटवारे की एक कड़वाहट बनी रहती है. रूस-बेलारूस साल 1991 से पहले सोवियत संघ का हिस्सा थे.विभाजन के 30 साल बीतने के बाद इनके बीच भारत-पाकिस्तान जैसी कड़वाहट नहीं है.

क्या है आखिर पुतिन का प्लान?

आप सोचेंगे कि पुतिन-लुकाशेंको के बीच गहरी दोस्ती क्यों है. क्या ये दोनों मिलकर फिर से अखंड रशिया बनाना चाहते हैं. क्या यूक्रेन पर हमला और फिर बेलारूस में परमाणु हथियारों की तैनाती उसकी तरफ बढ़ाया गया पहला कदम है?

लुकाशेंको बस एक मुखौटा है.लुकाशेंको ने परमाणु धमकी दी पर इसकी स्क्रिप्ट मॉस्को में लिखी गई है. लुकाशेंको क्या बोलेंगे. क्या करेंगे. इसका फैसला वो शख्स लेता है जो बेलारूस से 700 किलोमीटर मॉस्को के क्रेमलिन में बैठता है.

रूस का सबसे शक्तिशाली ऑफिस..मॉस्को की पहचान.क्रेमलिन.जहां से दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु ताकत रूस के सबसे ताकवतर इंसान व्लादिमीर पुतिन सिर्फ रूस नहीं दुनिया को प्रभावित करने वाले सबसे अहम फैसले लेते हैं.

अखंड रूस का सपना..अविभाज्य सोवियत संघ जैसी ताकत और रुतबा हासिल करने की चाहत लिए व्लादिमीर पुतिन एक तरह से दुनिया के सबसे ताकतवर देशों से लड़ाई लड़ रहे हैं. रूस पर पिछले ढाई दशकों से उनका पूरा कंट्रोल है.पिछले दो साल में दुनिया को सबसे ज्यादा परमाणु धमकियां व्लादिमीर पुतिन ने ही दी है.

और  पुतिन की ये धमकियां अगर दुनिया के तीसरे परमाणु हमले में तब्दील होती हैं या बेलारूस से कोई परमाणु मिसाइल किसी नेटो देश में गिरती है तो उसका फैसला भी क्रेमलिन से ही लिया जाएगा.

कैसे पुतिन ने बदल ली अपनी तकदीर?

दुनिया में महाशक्तियों के नंबर गेम में कौन सा देश आगे है और कौन सा पीछे. इस पर बहस हो सकती है. लेकिन किस देश के पास सबसे ज्यादा परमाणु हथियार और उनसे दुनिया के किसी भी कोने में परमाणु धमाका करने की काबिलियत है. इसका सिर्फ एक ही जवाब है..रशिया. और भारत के इस मित्र देश के सबसे ताकतवर इंसान हैं राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन. 31 दिसंबर 1999 के दिन पुतिन रूस के कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए गए थे. तब से लेकर आज तक रूस की सत्ता का रिमोट कंट्रोल पुतिन के पास है.पद बदले लेकिन पावर पुतिन के पास ही रही.रूस की सत्ता पर पुतिन के इस नियंत्रण को लेकर उनके दोस्त और दुश्मन अलग अलग किस्से बताते हैं. एक फैमिली मैन से लेकर मोस्ट डेंजरस मैन तक पुतिन की कहानी का हर चैप्टर रोमांच से भरा है.

पुतिन ने इसी साल हुए आम चुनावों में अब तक रूस के इतिहास में सबसे ज्यादा वोट हासिल किए हैं. राष्ट्रपति की गद्दी पर वो चुंबक की तरह चिपके हैं. उनके खास दोस्त लुकाशेंकों हों..जिनपिंग हों या फिर किम जोंग. सबने अपने अपने देशों में कुछ ऐसी ही व्यवस्था कर रखी है.लेकिन पुतिन इन सबसे काफी अलग हैं.कैसे, इसे समझने के लिए हमें पुतिन की जिंदगी की किताब के पुराने पन्नों को पलटना होगा. 

दूसरे विश्व युद्ध में जर्मनी के भीषण हमले में तबाह हुए शहर लेनिनग्राद को एक बार फिर से बसाने की कोशिश हो रही थी और इसी दौरान 1952 में व्लादिमीर पुतिन का जन्म हुआ. युद्ध की​ विभीषिका को पुतिन ने बहुत करीब से देखा था. बचपन में अपने स्कूल की किताबी बातों के अलावा उन्हें यह भी बताया जाता था कि पश्चिमी देश एक शैतानी दुनिया है, जिनका काम सोवियत यूनियन के खिलाफ साजिश रचना और उसे तोड़ना है. स्कूल में पढ़ाया गया ये सबक पुतिन आज तक नहीं भूले हैं. 

पुतिन के आगे बढ़ने की कहानी

रेगुलर जूडो क्लास जाने वाले पुतिन रूस की एक मशहूर फिल्म में केजीबी जासूस के किरदार से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने स्कूल के दिनों में लेनिनग्राद के लोकल केजीबी दफ्तर में जाकर काम करने की इच्छा जाहिर की थी. हालांकि तब उनसे कहा गया कि उन्हें इसके लिए ग्रेजुएशन तो करना ही होगा.
पुतिन ने लेनिगग्राद स्टेट यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की और ग्रेजुएशन पूरा करते ही अपने बचपन के सपने को पूरा किया. ग्रेजुएशन के बाद पुतिन की केजीबी एजेंट के तौर पर पहली तैनाती लेनिनग्राद में हुई.जहां पर वो विदेशों से आने वाले लोगों पर नज़र रखते थे.

फैमिली मैन भी हैं पुतिन

पुतिन को एक एयर होस्टेस ल्यूडमिला ओचेरत्नाया एयरहोस्टेज़ से प्यार हुआ..पुतिन ने उससे शादी की. दोनों के बच्चे हुए.पुतिन एक फैमिली मैन की तरह अपने बच्चों के साथ वक्त बिताते थे.खाने के बाद टहलते हुए आफिस तक जाते थे. तब किसी को मालूम नहीं था ये फैमिली मैन एक दिन पश्चिमी देशों के लिए मोस्ट डेंजरस मैन बनेगा.

यूक्रेन वॉर छेड़ने वाले पुतिन पर रूसी सैनिकों की जान जोखिम में डालने के आरोप भी लग रहे हैं लेकिन केजीबी एजेंट के तौर पर अपने फर्ज को निभाते हुए पुतिन ने भी अपनी जान की बाज़ी लगाई और आज भी उम्मीद रखते हैं उनके देश का हर नागरिक देश के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार रहे. एक तरफ जर्मनी की दीवार टूट रही थी दूसरी तरफ व्लादिमीर पुतिन का जीवन और सोच बदल रही थी.

मॉस्को से नहीं मिली थी पुतिन को मदद

लेनिनग्राद के बाद पुतिन केजीबी के मेजर के तौर पर जर्मनी के ड्रेसडेन में पोस्ट हुए. कुछ सालों बाद जब जर्मनी की दीवार गिरी और सोवियत संघ का विघटन तय लगने लगा.तब केजीबी एजेंटों के साथ पुतिन का भविष्य भी खतरे में आ गया..कुछ ने खुदकुशी की.कुछ विदेशी ताकतों से मिल गए..एक दिन अचानक एंटी-कम्युनिस्ट और एंटी-केजीबी लोगों का दिसंबर 1989 में ड्रेसडेन में केजीबी विला पर हमला हुआ. पुतिन को तब मॉस्को से कोई मदद नहीं मिली. ये खामोशी पुतिन को चुभ गई.इसके बावजूद पुतिन ने सीक्रेट फाइलें बचाईं.जान बचाकर किसी तरह पुतिन रूस पहुंचे और भविष्य की आशंकाओ के बीच उनकी नई पारी शुरू हुई.

सोवियत संघ के टूटने के बाद पुतिन अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो गए थे उस वक्त क्या स्थिति थी. पुतिन का ये वक्त कैसे गुज़रा. किस तरह वो रूस की मुख्य धारा की राजनीति में शामिल हुए..उनके राजनीतिक गुरू ने उसकी कैसे मदद की.

तेजी से बढ़ा प्रभाव

पुतिन की वफादारी रूस के बड़े नेताओं से उनकी साझेदारी को बढ़ाती गई. बोरिस येल्तसिन की टीम में शामिल होकर उनका प्रभाव तेजी से बढ़ा. अगस्त 1999 में रूस के उत्तरी इलाके दगिस्तान पर करीब 1500 लोगों ने हमला कर दिया. इनका मकसद था दगिस्तान को इस्लामिक स्टेट बनाना. 

इसके अगले ही दिन बोरिस येल्तसिन ने अपने चीफ ऑफ सिक्योरिटी व्लादिमीर पुतिन को पीएम बना दिया और इस समस्या से निपटने का जिम्मा सौंपा पुतिन ने दगिस्तान को सिक्योर किया और रूस में फेमस हो गए. 

भ्रष्टाचार के आरोप में फंसे बोरिस ने जब राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया तो अपनी गद्दी पुतिन को सौंप दी. इसके बाद पुतिन रूस की सत्ता पर कब्जे को मजबूत करते रहे..कभी राष्ट्रपति.कभी प्रधानमंत्री..रूस में ताकत पुतिन के पास रही. पुतिन पर कई बार जानलेवा हमले हुए लेकिन वो बचते रहे दूसरी तरफ पुतिन के शासनकाल में उनके विरोधियों की मौत भी पहेली बनती रही.

फिर रूस को पटरी पर ले आए पुतिन

सोवियत संघ के विघटन के बाद कमज़ोर हुए रूस को पुतिन पटरी पर लेकर आने में कामयाब हुए. पुतिन का सपना अखंड रूस का था और इसके लिए ताकत बढ़ाने के बाद उनकी नजर सबसे पहले पड़ोसी देश यूक्रेन पर पड़ी. 2014 में जब यूक्रेन से रूस समर्थित राष्ट्रपति को गद्दी से उतारा गया तो पुतिन सशंकित हो उठे.उन्होंने सबसे पहले क्रीमिया पर कब्जे के लिए हमला करवा दिया. 

27 फरवरी 2014 को रूसी बंदूकधारियों ने क्रीमिया में सरकारी इमारतों पर कब्जा कर लिया. अगले दिन क्रीमिया के दो हवाई अड्डे भी कब्जा लिए गए.रूस ने शुरूआत में इन्हें अपना सैनिक नहीं माना.
क्रीमिया में जनमत संग्रह करवाकर पुतिन ने क्रीमिया पर अपने कब्जे को वैध साबित कर दिया. अमेरिका और पश्चिमी देश कुछ भी नहीं कर पाए.लेकिन पुतिन यहीं पर रुकने वाले नहीं थे. यूक्रेन रूस के डर से यूरोपीय यूनियन और नेटो में मिलने के लिए बेचैन था. और पश्चिमी देशों से बचपन से नफरत करने वाले पुतिन ये जानते थे अगर ऐसा हुआ तो मास्को पर खतरा बढ़ जाएगा. 

पुतिन ने रूस की बड़ी सेना को यूक्रेन बॉर्डर क्रॉस करने का आर्डर दे दिया.इसी के साथ द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी यूरोपीय देश पर सबसे बड़ा हमला शुरू हो गया. इतने खतरनाक हथियार और धमाके कई दशकों से नहीं देखे गए थे.

2022 में यूक्रेन के खिलाफ छेड़ी जंग

व्लादिमीर पुतिन ने युद्ध का ट्रेलर दिखाने से शुरूआत की. और फरवरी 2022 में यूक्रेन के खिलाफ मिलिट्री ऑपरेशन शुरू कर दिया. इसी के साथ नेटो से उनका छद्म युद्ध शुरू हो गया. कंधा यूक्रेन का था लेकिन रूसी सेना पर गोलियां.बम.मिसाइलें अमेरिका और सहयोगी देशों की चल रही थीं. रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की ऐसी बौछार की गई कि छोटा मोटा देश तो दिवालिया ही हो जाता लेकिन पुतिन हर कदम उठाने से पहले प्लान बी सोच कर रखते हैं.हथियारों की फैक्ट्री तो रूस के पास अपनी हैं.और इकोनॉमी को बचाने में लिए भारत जैसे दोस्तों ने बड़ी भूमिका अदा की.

हमले के साथ ही पुतिन ने परमाणु धमकी देने भी शुरू कर दी थी..यानि दुनिया पर परमाणु हमले का खौफ़ मंडराने लगा था. अब ये खतरा इसलिए बढ़ गया है क्योंकि 2 साल से जारी युद्ध में अमेरिका ओर नेटो देशों की यूक्रेन को मिल रही सैन्य मदद का दायरा बहुत ज्यादा बढ़ा दिया है. 10 किलोमीटर तक हमला करने वाले स्विच ब्लेड ड्रोन और टैकों को उड़ाने वाली स्ट्रिंगर मिसाइलों से शुरू सैन्य मदद..दो साल में हिमर्स रॉकेट..और टैकों से बढ़ते बढ़ते. एफ-16 फाइटर जेट और  रूस के अंदर 300 किलोमीटर तक मार करने वाली एटाकैम्स मिसाइल तक पहुंच गई हैं. एटाकैम्स मिसाइलों से सबसे पहले यूक्रेन ने क्रीमिया पर ही हमला किया है. जिसके बाद पुतिन का मूड सबसे ज्यादा खराब है 

लगातार परमाणु हथियारों के जखीरे को मजबूत करने वाले रूस ने अपनी सुरक्षा के लिए एस 500 के नए वर्जन को तैनात करने का एलान किया है.

रूस का परमाणु हमला रोकना नामुमकिन

दूसरी तरफ नेटो देश पोलैंड के पास बेलारूस की सेना और परमाणु हथियारों की तैनाती सीधे नेटो पर हमले के खतरे को बढ़ा रही है. और ये बात अमेरिका और नेटो देश भी जानते हैं..रूस के परमाणु हमले को रोकना नामुमकिन है. इस खबर के बाद पोलैंड ने लिथुआनिया के साथ मिलकर युद्धाभ्यास भी शुरू कर दिया है. सोवियत संघ जैसे रुतबे को हासिल करने की पुतिन की कसक की राह में सबसे बड़ा रोड़ा अमेरिका और यूरोपीय देशों का सैन्य संगठन नाटो है. और सोवियत संघ को खंड खंड करने में बड़ी भूमिका निभाने वाले पश्चिमी देश जिस तरह यूक्रेन के कंधे पर बंदूक रखकर रूस को छलनी कर रहे हैं..पुतिन की उनसे नफरत बढ़ती जा रही है. 

अमेरिका और सहयोगियों को पुतिन फूटी आंख नहीं सुहाते. दुनिया के मुल्क पुतिन से जितनी नफरत करते हैं रूस में वो उतने ही मजबूत होते गए. रूस के आम चुनाव में पुतिन को 88 फीसदी वोट मिले हैं. वॉर के बाद प्रतिबंधों की आंधी भी रूस झेल चुका है लेकिन जिस तरह अमेरिका और सहयोगी यूक्रेन को और ज्यादा आधुनिक हथियार दे रहे हैं. 

पुतिन परमाणु हमले की अपनी ताकत को और मजबूत करते जा रहे हैं. पोलैंड को लेकर जिस तरह की धमकी लुकाशेंको ने दी है उससे साफ है इन हथियारों का रुख नेटो देशों की तरफ भी हो सकता है . और ऐसा हुआ तो इसका परिणाम पूरी दुनिया के लिए भयावह होगा.

जिनपिंग से मिल रही पुतिन को मदद

पुतिन को सबसे ज्यादा मदद शी जिनपिंग से मिल रही है. अमेरिका इस जोड़ी को ब्रेक करने की कोशिश में है. इसी हफ्ते अमेरिका के विदेश मंत्री चीन पहुंचे और जिनपिंग को अपने पक्ष में करने की कोशिश की. क्या जिनपिंग पश्चिमी देशों के साथ संबंध सुधारने के लिए पुतिन को अलविदा कह देंगे. हालांकि इस वक्त जिनपिंग भी दुनिया का सरदर्द बन चुके हैं. जिनपिंग ने ऐलान किया है कि चाहे कुछ भी हो जाए. वो ताइवान पर कब्जा करके रहेंगे.चाहे इसके लिए अमेरिका के साथ ही युद्ध क्यों ना करना पड़े.

पिछले कुछ वर्षों में चीन ने अपने मिसाइल, लड़ाकू विमान बमवर्षक और पनडुब्बी बेड़े को दिन दूनी-रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ाया है.चीन की सालाना परेड में आप जितनी मिसाइलें देख रहे हैं.उनमें से ज्यादातर आसानी से अमेरिका तक पहुंच सकती हैं.जिनपिंग का सपना है परमाणु हथियारों के मामले में सुपरपावर अमेरिका को टक्कर देना.जिनपिंग के 12 सालों के शासन में ही चीन का परमाणु भंडार दोगुना हो चुका है.

 इस समय चीन के लगभग 500 परमाणु हथियार होने का दावा है. 2030 तक ये आंकड़ा बढ़कर 1000 तक पहुंचेगा और 2035 तक जिनपिंग के पास 1500 न्यूक्लियर वेपन होंगे.लगभग इतने ही परमाणु हथियार अमेरिका और रूस ने इस वक्त तैनात किये हुए हैं.

यानी परमाणु हथियारों के मामले में जिनपिंग.अमेरिका-रूस की बराबरी करना चाहते हैं.सुपरपावर बनने की रेस में जिनपिंग अकेले नहीं है.अमेरिका के पुराने दुश्मन पुतिन भी इस मिशन में उनके साथ हैं. दोनों मिलकर अमेरिका को टक्कर दे रहे हैं.जिनपिंग-पुतिन की जोड़ी को बाइडेन ने भी वॉर्निंग दी है.

कैसे चीन के साथ बदली रिश्ते की परिभाषा

हाल फिलहाल में पुतिन ने सिर्फ चीन का ही दौरा किया है. वो किसी और देश पर भरोसा नहीं करते. पश्चिमी मीडिया का दावा है कि रूस अब चीन पर निर्भर हो चुका है. दुनिया में वर्ल्ड ऑर्डर के हिसाब से देखें तो ये बड़ा बदलाव है.कल तक पुतिन गुरु का रोल निभाते थे और चीन उनका चेला था.पर अब इस रिश्ते की परिभाषा बदल गई है या सीधे कहें तो उलट गई है.

जिनपिंग आज से नहीं बल्कि 2012 से ही परमाणु हथियारों को बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं.और इसकी बड़ी वजह है ताइवान. बीजिंग ताइवान को अपना हिस्सा मानकर कब्जा करना चाहता है.इसलिए जिनपिंग ने पहली बार राष्ट्रपति बनते ही तैयारी शुरु कर दी थी. 2012 में प्रेसिडेंट बनने के 19 दिनों बाद ही जिनपिंग ने अपने जनरलों को युद्ध के लिए तैयार रहने और परमाणु हथियारों की क्षमता को घातक स्तर पर ले जाने का का ऑर्डर दिया था.परमाणु हथियारों के साथ जिनपिंग अपनी सेना को भी तेजी से अमेरिका को टक्कर देने लायक बना रहे हैं.

जिनपिंग अपनी सेना को तेज रफ्तार से मॉर्डनाइज कर रहे हैं. 2027 तक आर्मी को वर्ल्ड क्लास बनाने का प्लान है.क्या जिनपिंग सेना के सहारे दुनिया की महाशक्ति बनने की कोशिश में हैं? और इस कोशिश में पश्चिमी देश और भारत ने एक होकर जिनपिंग की टेंशन बढ़ा दी है?

चीनी सेना को मॉडर्न बना रहे हैं जिनपिंग

 जिनपिंग फुल स्पीड से अपनी सेना को मॉडर्न बनाने की कोशिश में हैं. टारगेट ये है कि अगले कुछ सालों में चीन की आर्मी वर्ल्ड क्लास बन जाए. इस समय चीन की थल सेना. वायुसेना. और नौसेना में अब तक का सबसे बड़ा बदलाव हो रहा है. आंकड़ों के हिसाब से चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी सेना है. चीन लगातार पनडुब्बियों की संख्या बढ़ा रहा है.इन पनडुब्बियों पर परमाणु बम से लैस मिसाइलें भी लगाई जा रही हैं.जिनपिंग की नौसेना में अमेरिका से भी ज्यादा युद्धपोत हैं.आंकड़ों में चीन कई बार आगे दिखाई दे रहा है. हालांकि उसकी सेना की ताकत पर दुनिया को भारी संदेह है.

जिनपिंग ने ताइवान को चीन में मिलाने का टारगेट सेट कर लिया है.चीन ने अपनी सेना के लिए अबतक का सबसे बड़ा मिलिट्री मॉर्डनाइजेशन प्लान लॉन्च किया है.कोशिश ये है कि 2027 तक चीन की सेना वर्ल्ड क्लास की बन जाए. ताकि वो अमेरिका को भी टक्कर दे पाए. हालांकि तेज रफ्तार वाली मिसाइलें बनाने के बाद भी चीन की सेना को कागजी शेर ही माना जाता है.

ताइवान पर है चीन की नजर

चीन-अमेरिका के बीच नया बैटलफील्ड ताइवान बन गया है. ताइवान में चीन की सेना अक्सर घुसपैठ करती है. इसको लेकर पूरे इलाके में टेंशन बढ़ रही है. असल में ताइवान की रक्षा खुद अमेरिकी सेना करती है.आशंका है कि किसी भी दिन चीन की घुसपैठ युद्ध में तब्दील हो जाएगी. क्या ताइवान का मामला सेटल करने के लिए जिनपिंग अपने परमाणु हथियार का सहारा लेंगे.अब चीन के परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ गई है.इसलिए जिनपिंग इसे रक्षा कवच नहीं बल्कि दोधारी तलवार की तरह इस्तेमाल करना चाहते हैं.सिक्योरिटी एक्सपर्ट भी मानते हैं कि अगले कुछ वर्षों में चीन और अमेरिका के बीच एक बार जंग होनी तय है. तो क्या जिनपिंग की ताइवान वाली जिद से दुनिया में तीसरा विश्वयुद्ध शुरु होगा.

जिनपिंग ने ताइवान को चीन में मिलाने की जिद क्या अगले युद्ध की वजह बनेगी.आशंका है अमेरिका और चीन के बीच एक सैन्य संघर्ष होना तय है.जैसे इस समय यूक्रेन में रूस Vs अमेरिका चल रहा है .क्या ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच परमाणु युद्ध होगा?

जिनपिंग अक्सर परेड में अपने हथियारों का प्रदर्शन करते हैं.हजारों सैनिकों के साथ इसमें चीन की सेना अपने सभी ड्रोन, मिसाइलों सहित लगभग 600 तरह के अलग-अलग वेपन दिखाती है.चीन का दावा ये भी है कि उसके पास आवाज से कई गुना तेज चलनेवाली हाइपरसोनिक मिसाइलें हैं. जिसका मुकाबला अमेरिका की मिसाइलें भी नहीं कर सकती हैं.हालांकि अमेरिका ने इसकी काट भी तैयार कर ली है.

लेकिन टेंशन में हैं जिनपिंग

 इन दिनों चीन की सीमा से कई ऐसी खबरें आ रही हैं जिससे जिनपिंग की टेंशन बढ़ रही है. कुछ दिनों पहले अमेरिका और दक्षिण कोरिया के 100 से ज्यादा लड़ाकू विमानों ने मिलिट्री ड्रिल की. ये इलाका चीन की सीमा के करीब है. जिसमें दुनिया का सबसे एडवांस लड़ाकू विमान एफ-35 भी शामिल हुआ.और इन विमानों को देखकर जिनपिंग सेना की नींद उड़ गई है.चीन को एक से अमेरिका तो दूसरी तरफ चीन का सामना करना पड़ रहा है.

हाल ही में भारत ने चीन के दुश्मन फिलीपींस को घातक ब्रह्मोस मिसाइलें दी हैं. ब्रह्मोस ध्वनि की रफ्तार से तीन गुना स्पीड से हमला करती है. ऐसे हमले को रोकना लगभग नामुमकिन है.ये एक बार चलेगी तो टारगेट बर्बाद करके ही रुकेगी. इसलिए ब्रह्मोस को दुनिया की सबसे खतरनाक मिसाइलों में एक माना जाता है.फिलीपींस-चीन सीमा पर भी ब्रह्मोस तैनात हो गई.ब्रह्मोस में चीन के एक और पड़ोसी वियतनाम ने भी दिलचस्पी दिखाई है. इसलिए बीजिंग में चीन के लिए खतरे का सायरन बजने लगा है. चाणक्य नीति ये कहती है कि दुश्मन का दुश्मन.दोस्त होता है.और ब्रह्मोस के जरिए भारत ने यही काम किया है.

भारत की ब्रह्मोस से चीन को दर्द

जिनपिंग की एक और सीमा पर भारत ने टेंशन पहुंचा दी है. चीन के दुश्मन फिलीपींस को भारत से ब्रह्मोस मिसाइलें मिलीं तो चीन का दर्द भी सामने आ गया.ब्रह्मोस पहुंचते ही चीन ने अपना ड्रोन सीमा पर उड़ाया. और इसमें चीन की बौखलाहट साफ-साफ दिख रही है.ये भी नजर आ गया कि ब्रह्मोस का निशाना एकदम सही जगह पर लगा है>>

वीओ- जिनपिंग अकेले ही दुनिया के लिए खतरा नहीं है. पुतिन के इस साथी ने अपने साथ एक और तानाशाह को तैयार किया है. जो हमेशा अपनी जेब में परमाणु मिसाइलों का रिमोट कंट्रोल लेकर चलता है. या सीधे कहें तो दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा है.

किम जोंग भी हैं पुतिन के खास

युद्धनीति कह​ती है जब सीधे दुश्मनी निभाने की बहुत बड़ी कीमत चुकाने का खतरा होता है..तो दुश्मन पर छिपकर वार किया जाता है..दुश्मन के दुश्मन बढ़ा दिए जाते हैं..चीन और रूस ने भी अमेरिका के खिलाफ एक ऐसा रॉकेटमैन तैयार किया है..जो अनियंत्रित हो गया तो दुनिया को राख कर सकता है, जिससे अमेरिका और सहयोगियों को परमाणु हमले का खतरा रूस और चीन से कम नहीं है. ये रॉकेटमैन है उत्तर कोरिया का शासक किम जोंग जिसका परमाणु और मिसाइल प्रेम सनक की हद से आगे बढ़ चुका है. और अपने देश में उसकी पकड़ पुतिन और जिनपिंग से भी ज्यादा मजबूत है. 

एक ऐसा तानाशाह जिसे सत्ता विरासत में मिली..27 साल की उम्र में  बिना किसी तजुर्बे के उसको शासन सौंप दिया गया..किम खानदान के इस वारिस के खिलाफ तख्तापलट जैसी साजिश का ख़तरा भी था.लेकिन किम जोंग उन अपने दादा और पिता को भी मात देने की तैयारी करके मैदान में उतरा . आज वो रोता है तो उत्तर कोरिया रोता है.वो हंसता है तो उत्तर कोरिया खिलखिलाता है . उसका वचन ही शासन है.और उसके शासन के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले की आवाज़ को हमेशा हमेशा के लिए बंद कर देना उत्तर कोरिया में अनुशासन हैं..मिसाइलें और परमाणु हथियार उसकी सनक हैं और सुपर पावर अमेरिका भी उससे बचकर चलता है . किम ऐसा परमाणु ख़तरा है जो दुनिया पर  कभी भी टूट सकता है.

तानाशाही के लिए मशहूर हैं किम जोंग

जापान से आजादी और कोरिया के बंटवारे के बाद उत्तर कोरिया की सत्ता जिन किम इल सुंग ने संभाली थी उसी की तीसरी पीढ़ी किम जोंग उन की मिसाइलें कभी जापान सागर में गिरती हैं.कभी दक्षिण कोरिया के आसमान को पार करती हैं. दुनिया शोर मचाती है लेकिन किम जोंग को कोई फर्क नहीं पड़ता.
किम जोंग शासन संभालने के बाद चार परमाणु परीक्षण कर चुका है किम ने 100 से ज्यादा बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं.जिनका सिलसिला अभी भी जारी है.

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर कोरिया के पास 40 से 50 परमाणु ह​थियार हो सकते हैं और इसे अमेरिका के किसी भी शहर तक पहुंचाने के लिए उत्तर कोरिया अलग अलग रेंज की मिसाइलें होने का दावा करता है. किम जोंग के पास हाइपरसोनिक से लेकर 15000 किलोमीटर की रेंज वाली ह्वासोंग 18 जैसी मिसाइलें मौजूद हैं. 

एक तरफ अमेरिका और दक्षिण कोरिया अपनी सीमा पर युद्धाभ्यास करते हैं दूसरी तरफ उत्तर कोरिया की तरफ से उनके जवाब में मिसाइलों का परीक्षण किया जाता है. किम जोंग को अमेरिका की ताकत का भी अंदाजा है. किम जोंग ये भी मानता है कि युद्ध हुआ तो अमेरिका पहले उसके परमाणु हथियारों को तबाह कर देगा. और इसीलिए परमाणु धमाका करने के लिए किम जोंग नई तरह के हथियार तैयार कर रहे हैं.

पानी में चलने वाले ड्रोन का लॉन्च

किम जोंग ने एक पानी के अंदर चलने वाले ड्रोन को लॉन्च किया है किम जोंग का दावा है कि ये ड्रोन पानी के अंदर परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम है..जिससे बड़ी 'रेडियोधर्मी सूनामी' आ सकती है और दुश्मन देशों के युद्धपोत नष्ट हो सकते हैं. परमाणु हमला करने में सक्षम सबमरीन तैयार करने का दावा भी किम जोंग कर चुका है 

पानी के नीचे परमाणु हमला करने वाला ड्रोन..परमाणु हमला करने वाली पनडुब्बी जैसे ह थियारों को बनाने के पीछे क्या मकसद है  कितने खतरनाक हैं ये हथियार..क्या किम जोंग अपनी मिलिट्री पावर को बढ़ा चढ़ाकर भी बताते हैं.

इस सच्चाई को दुनिया भी मानती है किम जोंग की ताकत को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है..उत्तर कोरिया लगातार नए और पहले से अधिक विकसित हथियारों की खेप दुनिया को दिखा रहा है. समुद्र और ज़मीन दोनों ही रास्तों से अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान इन हथियारों की जद में हैं. अब उत्तर कोरिया के हथियारों को ट्रैक करना और मार गिराना काफी मुश्किल हो चुका है. यही वजह है दुनिया पर परमाणु ख़तरा बढ़ गया है.

अमेरिका भी 100 बार सोचेगा 

किम जोंग अगर बैलिस्टिक मिसाइलों और परमाणु परीक्षणों में अपने मुल्क का पैसा लगा रहे हैं तो इसके पीछे क्या वजह है..क्या उत्तर कोरिया ऐसी ताकत बन चुका है जिस पर हमला करने की हिम्मत अमेरिका जैसा मुल्क भी नहीं करेगा. लेकिन किम जोंग के परमाणु हथियारों की सनक ने उत्तर कोरिया के लोगों को बेहाल कर दिया है. बगावत इसलिए नहीं हो पा रही क्योंकि आधी आबादी क्रूर शासन से मिलने वाली सज़ा से डरती है. और आधी आबादी को बताया है किम के वंश में दैवीय शक्ति है. लगातार परमाणु धमाकों के बाद दुनिया ने उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगा दिए. इसी के साथ मुल्क की तरक्की पर प्रतिबंध लग गया. 80 फीसदी व्यापार चीन से होता है..कोविड के वक्त सीमा बंद कर दी गई थी जिसके बाद उत्तर कोरिया में भुखमरी की हालत में पहुंच गया.

उत्तर कोरिया की परमाणु सनक किम जोंग उन के पिता किम जोंग इल के शासन में शुरू हुई थी . लेकिन किम जोंग उन के शासन में ये चरम पर पहुंच गई..परमाणु हथियार और सैन्य ताकत हासिल करने के जुनून ने देश को तरक्की की गाड़ी को पटरी से उतार दिया..लेकिन किम जोंग उन को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता वो दक्षिण कोरिया और अमेरिका जैसे दुश्मनों से निपटने के लिए नए नए हथियार बनाने में लगा है.

हथियारों की होड़ में लगे उत्तर कोरिया से भूख से परेशान लोग पलायन कर जाते थे..लेकिन कोरोना काल में उत्तर कोरिया ने चार साल पहले अपनी सीमाएं बाहरी दुनिया के लिए बंद कर दी थी.इसके कुछ दिनों के लिए खोला गया.लेकिन उत्तर कोरिया ने अपनी सीमा पर कई नई दीवारें, बाड़ें और निगरानी चौकियां खड़ी कर दी हैं. इससे वहां से भागना भी लगभग असंभव हो गया है. लोग भुखमरी और हुक़ूमत की कठोर कार्रवाई झेल रहे हैं. उनके पास इस ज़ुल्म-ओ-सितम से बचकर भागने का कोई रास्ता नहीं है.

दुनिया का ब्लैकहोल है उत्तर कोरिया

दुनिया का सबसे अलग-थलग देश उत्तर कोरिया, अब सूचना के मामले में ब्लैकहोल बन चुका है.किम जोंग के राज में उत्तर कोरिया के लोग बाहरी दुनिया से किसी तरह का संपर्क नहीं कर सकते. किम जोंग..अपने देश के लोगों के हंसने.रोने और फैशन पर भी कंट्रोल रखता है. उत्तर कोरिया के लोग संगीत भी सिर्फ किम जोंग की पसंद का सुन सकते हैं. किम जोंग अपने अजीबोगरीब फैसलों और फरमानों के लिए भी कुख्यात हैं ..हंसने पर पाबंदी.गाने पर पाबंदी.कपड़ों का ड्रेस कोड..ऐसे फैसलों का उत्तर कोरिया पर क्या असर होता है. एक तरफ उत्तर कोरिया की बड़ी आबादी बदहाल जिंदगी जी रही है दूसरी तरफ किम जोंग का परिवार है, जिनकी आलीशान जिंदगी की तस्वीरें अक्सर सार्वजनिक समारोहों में सामने आती रहती हैं.
इस परिवार को राजघराने जैसा सम्मान मिलता है 

किम जोंग उन की जिंदगी में तीन महिलाएं सबसे ज्यादा खास हैं.उसकी पत्नी री सो जुल..जो अक्सर कार्यक्रमों में उसके साथ दिखती है..किम जोंग उन की बहन किम यो जोंग जिसके बयान साउथ कोरिया से लेकर अमेरिकी नेताओं को कान में पिघले शीशे की तरह लगते हैं और किम जोंग उन की बेटी किम जू आए जिसके बारे में कहा जाता है किम उसे अपना उत्तराधिकारी बनाने वाले हैं.

किम जोंग आजकल मिसाइल परीक्षण के दौरान भी अपनी बेटी के साथ पहुंचता है. किम वंश की परंपरा को निभाते हुए उसने अपने उत्तराधिकारी को तैयार करना शुरू कर दिया है. यानि किम जोंग उन के बाद उत्तर कोरिया का शासन कौन होगा इसका फैसला भी किम जोंग उन ही करके जाएगा.
लेकिन जाने से पहले किम जोंग दुनिया को क्या देकर जाएगा.क्या जो मिसाइलें और परमाणु ह​थियार उसने अपने देश के लोगों की अच्छी जिंदगी की कीमत पर जुटाए हैं उनका इस्तेमाल करने वाला परमाणु बटन क्या आने वाले कुछ सालों में दबने वाला है.इस सवाल का जवाब सर्वनाश है..

रूस.चीन.उत्तर कोरिया और बेलारूस.इन चार देशों की दुनिया से बन नहीं रही..इन चारों देशों में परमाणु जख़ीरा बढ़ रहा है..और इसी के साथ दुनिया पर परमाणु ख़तरा भी बढ़ता जा रहा है . चार चेहरे इन देशों की सत्ता पर काबिज़ हैं जिन्हें हिलाना अभी तो किसी के बस की बात नहीं लग रही है..और इन चारों देशों में एक ऐसा कनेक्शन है जिसने दुनिया को परमाणु चौराहे पर खड़ा कर दिया है.अब परमाणु खतरा किधर से सबसे पहले आएगा . किसी को नहीं पता. 

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