ब्लैक होल में गिरने पर क्या होगा:NASA ने बनाया 360 डिग्री VIDEO, बताया- कैसे बदल जाती है वक्त की रफ्तार

1 week ago
इस सिमुलेशन के जरिए लोग एक्सपीरियंस कर पाएंगे कि अगर वे ब्लैक होल में गिर जाएं तो क्या होगा। - Dainik Bhaskar

इस सिमुलेशन के जरिए लोग एक्सपीरियंस कर पाएंगे कि अगर वे ब्लैक होल में गिर जाएं तो क्या होगा।

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने एक ऐसा सिमुलेशन तैयार किया है, जिसके जरिए लोग ब्लैक होल में गिरने का अनुभव कर पाएंगे। सिमुलेशन यानी किसी भी प्रक्रिया की नकल करना, जो असल दुनिया में मौजूद हो।

नासा के इस सिमुलेशन की मदद से आप ब्लैक हॉल के उस पाइंट पर पहुंच सकते हैं, जहां एक बार कोई चीज पहुंच जाएं तो वापस लौटकर नहीं आती है। लाइट भी इस जगह से कभी वापस नहीं आ पाता है। इस पाइंट को इवेंट हॉरीजन कहा जाता है।

नासा ने इस सिमुलेशन को 'डिस्कवर' नाम के सुपरकंप्यूटर के जरिए तैयार किया है। स्पेस एजेंसी ने इससे जुड़ा एक 360 डिग्री वीडियो यूट्यूब पर भी पोस्ट किया। इस प्रोजेक्ट को नासा के एस्ट्रोफिजिसिस्ट जेरेमी श्निटमैन और वैज्ञानिक ब्रायन पॉवेल की टीम ने तैयार किया है।

इस टीम का लक्ष्य एक बड़ा सा ब्लैक होल का रेप्लिका तैयार करना था, जो हमारी गैलेक्सी मिल्की वे के बीचों-बीच हो और सूरज से कई लाख गुना बढ़ा हो।

ब्लैक होल के करीब पहुंचने पर समय अजीब तरह से बर्ताव करने लगता है। ब्लैक होल के अंदर से लाइट भी बाहर नहीं आ सकती।

ब्लैक होल के करीब पहुंचने पर समय अजीब तरह से बर्ताव करने लगता है। ब्लैक होल के अंदर से लाइट भी बाहर नहीं आ सकती।

दूर से देखने वालों को होता है कंफ्यूजन
वीडियो में बताया गया है कि जैसे-जैसे हम 400 मिलियन मील की दूरी से ब्लैक होल के करीब पहुंचते हैं, अंतरिक्ष के समय में बदलाव दिखना शुरू हो जाता है। स्पेस में गर्म गैस की गोल डिस्क और तारों का आकार बदलने लगता है।

इसके बाद कैमरा जूम होने पर गर्म गैस के गोले से निकलने वाला लाइट तेज हो जाता है। इससे ऐसी आवाज आती है, जैसे कोई रेसिंग कार पास से गुजरी हो। कैमरे को इवेंट हॉरीजन पॉइंट तक पहुंचने में 3 घंटे लगते हैं।

हालांकि दूर से देखने पर लगता है कि कैमरा कभी इवेंट हॉरीजन पाइंट तक नहीं पहुंच पाता है। दरअसल जैसे-जैसे कैमरा पाइंट के करीब आने लगता है, वीडियो की स्पीड उतनी ही कम हो जाती है। फिर कुछ समय बाद ऐसा लगता है, जैसे यह रुक गया है।

सिमुलेशन से कैमरे के लिए निकलते हैं दो रिजल्ट सिमुलेशन के कारण दो रिजल्ट बनते हैं। पहले रिजल्ट में ऐसा लगता है कि कैमरा इवेंट हॉरीजन पॉइंट तक कभी पहुंच नहीं पाएगा। वहीं दूसरा रिजल्ट में लगता है कैमरे उस पॉइंट को पार कर जाएगा। लेकिन इसके लिए उसे "स्पेगेटीफिकेशन" नाम की प्रक्रिया से गुजरना होगा।

स्पेगेटीफिकेशन एक प्रोसेस है , जिसके कारण ब्लैक होल के पास बना हाई ग्रैविटेशनल फोर्स कैमरे को इतनी मजबूती से खींचता है कि वो 12.8 सेकंड के भीतर ही ब्लैक हॉल के इवेंट हॉरीजन पॉइंट को पार कर जाता है।

इन दो रिजल्ट्स के अलावा नासा का सिमुलेशन एक और रिजल्ट देता है, जिसमें कैमरा उस पॉइंट के करीब परिक्रमा करता है, लेकिन इसे पार नहीं पार कर पाता है। ऐसे मामले में, समय अजीब तरह से काम करना शुरू कर देता है।

उदाहरण से समझिए जैसे जहाज पर मौजूद अंतरिक्ष यात्री के लिए समय सामान्य रूप से गुजरता है, लेकिन दूर से देख रहे लोगों के लिए यह धीमा हो जाता है। इसी के चलते जब अंतरिक्ष यात्री वापस लौटता है तो, तो वे उन लोगों की तुलना में कम उम्र का होता है जो उससे दूर रह रहे हैं।

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