नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय ने भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिए मंगलवार को कहा कि प्रख्यात और सार्वजनिक हस्तियों को किसी उत्पाद का समर्थन करने के दौरान जिम्मेदाराना व्यवहार करना चाहिए. शीर्ष अदालत ने निर्देश दिया कि किसी विज्ञापन को जारी करने की अनुमति देने से पहले, ‘केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम,1994’ के अनुसार विज्ञापनदाताओं से एक स्व-घोषणा पत्र हासिल किया जाए.
वर्ष 1994 के इस कानून का नियम-सात एक विज्ञापन संहिता का प्रावधान करता है, जिसमें कहा गया है कि विज्ञापन देश के कानूनों के अनुरूप बनाये जाने चाहिए. न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति एहसानुद्दीन अमानउल्लाह की पीठ ने संबद्ध केंद्रीय मंत्रालयों को इसे भ्रामक विज्ञापनों और केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) द्वारा की गई या प्रस्तावित कार्रवाई से अवगत कराने को भी कहा.
पीठ ने कहा, “प्रख्यात लोगों, ‘इन्फ्लुएंसर’ और सार्वजनिक हस्तियों द्वारा समर्थन किये जाने से उत्पादों का प्रचार-प्रसार करने में काफी मदद मिलती है तथा विज्ञापन के दौरान किसी भी उत्पाद का समर्थन करने के दौरान और उसकी जिम्मेदारी लेते समय उनके लिए जिम्मेदारी के साथ काम करना अनिवार्य है.” शीर्ष अदालत पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड द्वारा भ्रामक विज्ञापनों से जुड़े मामले पर सुनवाई कर रही है.
न्यायालय ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ (आईएमए) द्वारा 2022 में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि पतंजलि और योग गुरु रामदेव ने कोविड टीकाकरण और चिकित्सा की आधुनिक प्रणालियों को बदनाम करने का अभियान चलाया. पीठ ने पतंजलि के उत्पादों के बारे में भ्रामक विज्ञापनों की आलोचना की है. इन विज्ञापनों को अब निषिद्ध कर दिया गया है, लेकिन वे विभिन्न इंटरनेट चैनलों पर अब भी उपलब्ध हैं.
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FIRST PUBLISHED :
May 7, 2024, 20:37 IST