नई दिल्ली (इंटरनेट डेस्क) अदिति शुक्ला। हम सबने यह वाक्य सुना भी है और कहा भी है 'बेटा, पैसे पेड़ पर नहीं उगते हैं।' यह एक ऐसा इंडियन पैरेंटिंग सटेंश है, जो पीढ़ियों से चलता आ रहा है। लेकिन समय बदल चुका है। आज के बच्चों के लिए पैसे वही पुराने नोट और सिक्के नहीं हैं पैसे अब हैं UPI क्लिक, Amazon Pay, और कार्ड स्वाइप। दो क्लिक में टॉय घर पहुंच जाए तो बच्चे को लगता है कि पैसा कोई लिमिटेड रिसोर्स नहीं, बल्कि 'जादू' है। आज की डिजिटल जेनरेशन को पैसों की असल वैल्यू सिखाने के लिए सिर्फ कहावतें नहीं, माइंडसेट चाहिए। यहां पांच स्मार्ट तरीके हैं, जो बच्चों में बचत की आदत और फाइनेंशियल समझ दोनों विकसित करने में हेल्प करेंगे।
1. जितना जल्दी, उतना बेहतर
ज्यादातर पैरेंट्स सोचते हैं कि पैसों पर बातचीत टीनएज के बाद शुरू करनी चाहिए। पर रिसर्च कहती है कि तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। Cambridge University की स्टडी के अनुसार, पैसे से जुड़े बेसिक हैबिट्स जैसे प्लानिंग और डिलेड ग्रैटिफिकेशन 7 साल की उम्र तक बन चुके होते हैं।
स्मार्ट मूव:
डिजिटल पेमेंट छोटे बच्चों को समझ नहीं आते, इसलिए शुरुआत करें visible money economy से।
अगर बच्चे को ट्रीट चाहिए, उसे खुद नोट देना और चेंज वापस लेना सिखाएं। अगर वह ₹500 का टॉय चाहता है और उसके पास ₹100 हैं, तो फ्रिज पर एक सेविंग चार्ट बनाइए। हर ₹10 जोड़ने पर बार को रंग भरने दें। धीरे-धीरे वह समझेगा कि बड़ी चीज पाने के लिए इंतजार और जमा करना जरूरी है।
2. सिटिजन वर्सेज फ्रीलांसर अलाउअन्स मॉडल
क्या बच्चों को घर के काम के बदले पैसे देने चाहिए? इस पर हमेशा बहस रहती है। पर एक हाइब्रिड तरीका बच्चों को असली दुनिया के हिसाब से समझदार बनाता है।
स्मार्ट मूव:
अलाउअन्स को दो हिस्सों में बांटिए -
Citizen Duties:
बेड बनाना, टेबल साफ करना, स्कूल बैग अरेंज करना, यह घर में रहने का रेंट है, इसलिए इसके लिए पैसे नहीं मिलेंगे।
Freelancer Jobs:
कार धोना, स्टोर रूम की डीप क्लीनिंग, गार्डन में हेल्प इन एक्स्ट्रा कामों के रेट तय कर दीजिए। इससे बच्चे सीखते हैं कि पैसे सिर्फ पास में होने से नहीं मिलते बिल्क वैल्यू क्रिएट करने से मिलते हैं।
3. 'मार्शमेलो मसल' मजबूत करें
सेविंग का मतलब सिर्फ मैथ्स नहीं है यह इमोशनल कंट्रोल और इम्पल्स रोकने की कला है।
स्मार्ट मूव:
बच्चों के लिए सेविंग को गेम बना दीजिए। अगर बच्चा कोई गेमिंग कंसोल खरीदना चाहता है, तो Parental Match ऑफर करें: 'तुम आधे पैसे बचा लो, मैं बाकी के आधे पैसे जोड़ दूंगा।' इससे बच्चा सीखता है कि इंतजार का फायदा मिलता है और यह सीख उम्र भर उसके काम आती है।
4. पैसों पर चुप्पी नहीं
कई घरों में पैसों की बात या तो छुपकर होती है या झगड़े में। इससे बच्चे पैसों को डर, शर्म या कंफ्यूजन की नजर से देखने लगते हैं। जबकि आज के जमाने में फाइनेंशियल बातचीत जरूरी है।
स्मार्ट मूव:
बच्चों के साथ ओपन मनी टॉक करें, लेकिन एज-अपप्रोप्रिएट तरीके से। धा 'हम ये अफोर्ड नहीं कर सकते' बोलने की जगह कहें: 'अभी टीवी नहीं ले रहे क्योंकि हम दिसंबर की वेकेशन के लिए बचत कर रहे हैं।' इससे बच्चा समझता है कि पैसे लिमिटेड हैं और खर्च प्रायोरिटी के बेस पर होते हैं।
5. सिर्फ बचत नहीं, बजट भी सिखाएं
'पैसे बचाओ' बच्चों के लिए समझ के बाहर होता है। बिना लक्ष्य के सेविंग एक सजा जैसी लगती है। समाधान है पैसा तीन हिस्सों में बांटना।
स्मार्ट मूव:
उसे बजट समझानें के लिए एक पिगी बैंक की जगह तीन जार रखिए,
Spend (40%)
तुरंत वाली खुशियां - कैंडी, स्टिकर, टॉय
Save (50%)
किसी बड़े लक्ष्य के लिए - साइकिल, टेबलेट, स्पेशल गेम
Share (10%)
दूसरों के लिए - गिफ्ट, चैरिटी, किसी दोस्त की मदद
जब स्पेंड जार खाली हो जाए तो उसे आप मत भरें। यह छोटा-सा 'फाइनेंशियल दर्द' घर पर महसूस करना सेफ है और यही उन्हें असल दुनिया के लिए तैयार करता है।
फाइनेंशियली कॉन्फिडेंट बनाना है टारगेट
बच्चों को पैसे की सीख देना सिर्फ इसलिए जरूरी नहीं कि वे महंगे टॉय न मांगें बल्कि इसलिए जरूरी है कि वे ऐसे दौर में बड़े हो रहे हैं जहां क्रेडिट आसान है और कंज्यूमरिज्म आक्रामक। अगर हम उन्हें छोटी उम्र से पैसे की 'अनविजिबल' मेकनिक्स को समझा दें, तो वे बड़े होकर अपने खुद के 'पेड़' उगाना जानेंगे और सच्चे मायनों में फाइनेंशियली कॉन्फिडेंट बनेंगे।

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