नई दिल्ली. गाज़ीपुर लैंडफिल को रविवार शाम को लगी भीषण आग अभी भी जारी है. आग पर काबू पाने के लिए दिल्ली एमसीडी के कर्मचारी पूरी कोशिश कर रहे हैं. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि लैंडफिल (कचरे की पहाड़) के आसपास रहने वाले लोगों को सांस लेना मुश्किल हो गया है. कैसे उनका गुजारा हो रहा है, बच्चें धुएं से भरे इलाके में कैसे सांस ले रहे हैं? जानना काफी जरूरी है.
हिंदुस्तान टाइम्स के हवाले, एक 20 वर्षीय व्यक्ति ने कहा, ‘हम तुरंत अपने घरों में घुस गए हैं और धुएं को अंदर आने से रोकने के लिए सभी खिड़कियां बंद कर दिया है.’ देश की सबसे ऊंची लैंडफिल साइट के नजदीक रहने वाले लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी. यहां के लोग सांस संबंधी बीमारियों, सांस लेने की समस्याओं और छाती में संक्रमण से पीड़ित हैं. उन्हें अच्छी तरह से पता है कि आग से निकलने वाले धुएं से कैसे निपटना है.
रेहाना अली (20 साल) के पिता, 62 वर्षीय महफूज़ आग लगने के बाद से ही बीमार हैं. उनको दिल की बीमारी है. अली ने बताया हम उनको जल्दी ही घर के अंदर ले गए, लेकिन उन्होंने कुछ धुंआ अंदर ले लिया होगा. भले ही आप खिड़कियां बंद कर दें, लेकिन आप हवा आने से तो नहीं न रोक सकते हैं. हम कल रात (रविवार) मुश्किल से सो सके.’
राजबीर कॉलोनी में रहने वाले 30 वर्षीय नवीन खान ने कहा कि जैसे ही उनके परिवार को पता चला कि लैंडफिल में आग लग गई है, उनका पहला कदम बच्चों को लेकर घर के अंदर पहुंचना था. उन्होंने बताया कि मेरे बच्चे बाहर खेल रहे थे. मैं और मेरी पत्नी उन्हें आग के जहरीले धुएं से बचाने के लिए अंदर ले जाने के लिए दौड़े. रविवार को हवा की दिशा ऐसी थी कि धुआं हमारे इलाके की ओर आ रहा था.
जबकि अग्निशामक अभी भी सोमवार को आग पर काबू पाने का प्रयास कर रहे थे, साइट से धुआं मुल्ला कॉलोनी, राजबीर कॉलोनी, गाज़ीपुर डेयरी और मयूर विहार चरण 3 जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा था.
दिल्ली नगर निगम के डेटा से पता चलता है कि पिछले साल ग़ाज़ीपुर लैंडफिल में केवल एक बड़ी आग लगने की सूचना मिली थी, लेकिन 2022 में ऐसी पांच, 2021 और 2020 में आठ-आठ और 2019 में 48 ऐसी घटनाएं हुईं थीं. इस लैंडफिल से कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीनहाउस गैसों और हाइड्रोजन सल्फाइड, डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसी प्रदूषित गैसों जहरीले धुएं से निकल रहे हैं. इससे लोगों का जीना मुश्किल हो गया है.
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FIRST PUBLISHED :
April 23, 2024, 06:24 IST