Opinion : एक शोर और एक संदेश... तेजस्वी ने दिखाई राह, पर राहुल क्यों भटक रहे?

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Last Updated:December 03, 2025, 14:33 IST

Tejashwi Yadav Rahul Gandhi News : एक ओर राहुल गांधी और उनके सहयोगी दलों का लगातार टकरावपूर्ण, उग्र और व्यवधानकारी रुख तो दूसरी ओर बिहार में 18वीं विधानसभा की पहली कार्यवाही में तेजस्वी यादव का संयमित, मर्यादित और संवादपरक संबोधन. दोनों ही नेता विपक्ष की भूमिका निभा रहे हैं, दोनों के सामने सत्ता पक्ष मजबूत है, लेकिन उनके राजनीतिक व्यवहार ने दो अलग-अलग लोकतांत्रिक संस्कृतियों पर विमर्श को जन्म दिया है- एक शोर-शराबे की संस्कृति तो दूसरी संवाद की.

 एक शोर और एक संदेश... तेजस्वी ने दिखाई राह, पर राहुल क्यों भटक रहे?राहुल गांधी और तेजस्वी यादव की विपक्षी राजनीति की तुलना

नई दिल्ली/पटना. संसद को बहस का मंच नहीं, टकराव का मैदान बना रहे हैं, राहुल गांधी खुद सांसदों को भड़काते हैं जिससे लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाहियों में व्यवधान पैदा होता है. यह आरोप भाजपा और एनडीए के नेताओं ने राहुल गांधी पर लगाया है. दरअसल, 1 दिसंबर से शुरू हुए संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) पर बहस की मांग की, लेकिन तरीका क्या रहा? हंगामा, वॉकआउट और कार्यवाही ठप करना. वहीं, राजनीति के जानकार इस हो-हल्ला में विरोधी दलों के बीच के व्यावहारिक विरोधाभास को पढ़ रहे हैं, जहां एक ओर संवाद शैली का उत्तम उदाहरण है तो दूसरी ओर संवादहीनता की स्थिति और अमर्यादित आचरण की पराकाष्ठा. विपक्ष के इस विचित्र विरोधाभास पर विमर्श तब और सामने आ रहा है जब बिहार विधानसभा में तेजस्वी यादव ने लोकतांत्रिक राजनीति के सच्चे सिपाही के तौर पर मर्यादित और गरिमापूर्ण आचरण का उदाहरण प्रस्तुत किया.

बीते 2 दिसंबर को नवनिर्वाचित स्पीकर डॉ. प्रेम कुमार को बधाई देते हुए तेजस्वी यादव ने विपक्ष की भूमिका को संतुलित और रचनात्मक तरीके से प्रस्तुत किया. बिहार में 2025 के विधानसभा चुनावों के बाद महागठबंधन की हार के बावजूद तेजस्वी यादव ने सदन में अपनी चुप्पी तोड़ी. 14 नवंबर के बाद पहली बार बोलते हुए उन्होंने स्पीकर को बधाई दी और विपक्ष की भूमिका को पुनर्परिभाषित करने का प्रयास किया. तेजस्वी ने न तल्खी दिखाई और न अनर्गल आरोप लगाए. उन्होंने साफ कहा- जब जरूरी होगा, हम सरकार को आईना दिखाएंगे. खास बात यह कि तेजस्वी यादव की यह चुनौती गरिमापूर्ण थी न किसी तरह की अवरोधक की.

राहुल गांधी की राजनीति

तेजस्वी यादव के संबोधन ने इस सवाल को और गहरा कर दिया है, जबकि राहुल का तेवर लोकतंत्र की गरिमा पर सवाल खड़े कर रहा है.  संसद में राहुल गांधी और कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष का अमर्यादित व्यवहार, लगातार हंगामा, वॉकआउट और कार्यवाही बाधित करने से बाज नहीं आ रहा. यह तुलना सिर्फ दो नेताओं की नहीं, बल्कि विपक्षी राजनीति की दिशा और दशा की है. जानकार कहते हैं कि विपक्ष का सवाल उठाना जरूरी है, लेकिन सवालों को सिर्फ शोर में बदल देना न तो मतदाताओं को आकर्षित करता है और न ही जनविरोधी नीतियों को रोका जा सकता है. राजनीति में स्वर उठाना जरूरी है, लेकिन स्वर को दिशा देना और भी आवश्यक है.

दबाव के बीच संयम की भाषा

चुनावी हार से आहत नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने लंबी चुप्पी के बाद सदन में पहली बार बोलते हुए संयम, तर्क और राजनीतिक परिपक्वता का परिचय दिया. 17 दिनों की खामोशी के बाद तेजस्वी ने जब बात की तो न तो तंज था, न व्यंग्य, न कटाक्ष. इसके बजाय भाषा में सम्मान, शब्दों में राजनीतिक संकेत और स्वर में लोकतांत्रिक संतुलन था. उन्होंने कहा- विपक्ष सरकार का दुश्मन नहीं, लोकतंत्र का संतुलन है. यह सिर्फ वक्तव्य नहीं था-यह रणनीतिक संदेश था कि विपक्ष अपनी भूमिका सिर्फ शोर-शराबे से नहीं, तथ्यों, सवालों और संस्थागत संवाद से निभाएगा.  तेजस्वी यादव की यह भाषा आक्रामक नहीं थी, लेकिन निष्पक्ष, आत्मविश्वासपूर्ण, दृढ़ इरादे वाली और राजनीतिक रूप से अत्यधिक प्रभावी थी.

दो तस्वीरें, दो संदेश

इन दोनों राजनीतिक व्यवहारों की तुलना यह बताती है कि विपक्ष सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक संवाद की जिम्मेदारी भी है. राहुल गांधी की विपक्षी राजनीति भावनात्मक है, लेकिन असंगठित. तेजस्वी यादव की राजनीति संतुलित है और संस्थागत. जहां राहुल गांधी की शैली टकराव आधारित विपक्ष की छवि बनाती है, वहीं तेजस्वी अपने व्यवहार से एक जवाबदेह विपक्ष की भूमिका गढ़ते दिख रहे हैं. राजनीति सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं होती… यह आचरण, धैर्य, संवाद और लोकतांत्रिक प्रतिबद्धता की भी परख होती है. हाल के हफ्तों में दो अलग-अलग राजनीतिक व्यवहारों ने यह फर्क और स्पष्ट कर दिया है.

प्रतिरोध, लेकिन दिशा के बिना?

मूल बात यह कि लोकतंत्र तब मजबूत होता है जब सत्ता जवाब देती है और विपक्ष सवालों को व्यवस्था और मर्यादा के साथ रखता है. राहुल गांधी यदि अपनी ऊर्जा को बहस, नीति और रणनीति में बदलें तो राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष और मजबूत हो सकता है. वहीं तेजस्वी यादव ने दिखाया है कि विपक्ष में बैठकर भी सम्मान, संवाद और संतुलन से राजनीति की जा सकती है. लोकतंत्र में विपक्ष का काम सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना है, न कि अराजकता फैलाना. भविष्य बताएगा कि तेजस्वी यादव और राहुल गांधी में कौन-सा मॉडल देश के लोकतंत्र को आगे ले जाएगा-शोर का या संवाद का?

लोकतंत्र किस दिशा में?

जानकार कहते हैं कि तेजस्वी का संवादपरक स्वर आने वाले दिनों में बिहार की राजनीति को सकारात्मक दिशा दे सकता है, जहां बहस नीतियों पर हो, न कि व्यक्तिगत आरोपों पर. राहुल अगर तेजस्वी के रास्ते पर चलें तो विपक्ष मजबूत होगा. लेकिन वर्तमान में उनके तेवर सिर्फ राजनीतिक अस्थिरता पैदा कर रहे हैं. ऐसे में जानकारों का मानना है कि हरियाणा, महाराष्ट्र और बिहार की बड़ी चुनावी हार के बीच कांग्रेस सबक ले और विपक्ष तेजस्वी यादव की मर्यादा अपनाए, वरना जनता उन्हें सिर्फ ‘हंगामा ब्रिगेड’ मान लेगी. तेजस्वी यादव ने रास्ता दिखाया है; राहुल गांधी को इसे अपनाना चाहिए, अन्यथा विपक्ष (कांग्रेस) की विश्वसनीयता और दांव पर लग जाएगी!

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Vijay jha

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First Published :

December 03, 2025, 14:33 IST

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