नई दिल्ली (इंटरनेट डेस्क)। Save Uterus, Save Femininity, Save Fertility...तीन वर्ड्स...और हर लड़की और महिला की हेल्थ से जुड़ा पूरा चैप्टर। आज की fast life, high stress और poor lifestyle सीधा असर डाल रहे हैं फीमेल बॉडी पर, खासतौर से यूटरस पर। PCOD, फाइब्रॉइड और इनफर्टिलिटी अब कॉमन हैं, but हम कितनी aware हैं? इसपर भी जब करें आज के समय में फीमेल्स में सबसे ज्यादा होने वाली फाइब्रॉइड्स की प्रॉब्लम की, तो ज्यादातर केसेज में उनके सामने यूट्रस को रिमूव कराने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं बचता, पर ठहरिए...क्योंकि बिना यूट्रस रिमूव करे भी इसका क्योर पॉसिबल है। कैसे? इसी को लेकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के Dear Doctor में Session में हमने बात की Gahlot Health Care Renu IVF centre, Kanpur से Laparoscopic Surgeon और IVF Specialist Dr. Renu Singh Gahlaut से। आप भी जानिए क्या बताया इन्होंने...
क्या होते हैं फायब्रॉइड्स
फायब्रॉइड्स गर्भाशय में बनने वाले ट्यूमर्स हैं। ये गांठें 15-45 की उम्र के बीच में होती हैं। जिन फीमेल्स में एस्ट्रोजन की मात्रा ज्यादा होती है, उनमें फायब्रॉइड यूट्रस का खतरा ज़्यादा होता है। अब सवाल ये उठता है कि फायब्रॉइड्स की ये प्रॉब्लम क्यों होती है (बच्चेदानी में गांठ कैसे बनती है), इसकी वजह अब तक पता नहीं चल सकी है। कई केसेज में ये आनुवंशिक यानी जेनेटिक भी हो सकते हैं। आज के समय में माना जा रहा है कि हर पांच में से एक महिला के यूट्रस में गांठ के लक्षण दिखते हैं। ओवरवेट या ओबेसिटी से परेशान महिलाएं भी इनकी चपेट में ज्यादा आती हैं। हॉर्मोनल चेंजेस की वजह से भी ये हो सकते हैं। इनका खतरा फायब्रॉइड्स के आकार व स्थिति पर डिपेंड करता है। फाइब्रॉइड..जिसे आम भाषा में bachedani me ganth या गर्भाशय में रसौली भी कहते हैं। ये ऐसी गांठें होती हैं जो कि महिलाओं के गर्भाशय में या उसके आसपास उभरती हैं। ये मांस-पेशियां और फाइब्रस उत्तकों से बनती हैं और इनका आकार कुछ भी हो सकता है। इसके कारण infertility का खतरा होने की आशंका रहती है। आइये जानते है क्या होते है इन फाइब्रॉइड्स के कारण, लक्षण और उपचार?
बच्चेदानी में गांठ यानी फाइब्रॉइड्स के सिम्पटम्स कुछ इस प्रकार से हो सकते हैं-
- पीरियड्स के समय या बीच में ज्यादा ब्लीडिंग, जिसमे थक्के भी शामिल हैं।
- नाभि के नीचे पेट में दर्द या पीठ के निचले हिस्से में दर्द।
- बार-बार यूरिन आना।
- पीरियड्स के समय भीषण दर्द ।
- यौन सम्बन्ध बनाते समय दर्द होना।
- मासिक धर्म का नॉर्मल से ज्यादा दिनों तक चलना।
- नाभि के नीचे पेट में दबाव या भारीपन महसूस होना।
- कमजोरी फील होना।
- पेट में सूजन।
- एनीमिया।
- कब्ज।
क्या हो सकते हैं खतरे!
- अगर ये बच्चे के अंदरूनी हिस्से में है, तो ब्लीडिंग ज्यादा हो सकती है
- फाइब्रॉइड्स की संख्या ज्यादा है तो इनफर्टिलिटी की प्रॉब्लम हो सकती है
- कभी फाइब्रॉइड्स के साथ मां कंसीव कर जाए तो अबॉर्शन की नौबत आ सकती है
- फाइब्रॉइड्स का साइज ज्यादा बड़ा होने पर ये पेशाब की थैली पर भी असर कर सकता है
- इसके साथ ही यूटीआई की प्रॉब्लम भी बढ़ सकती है
- बच्चेदानी के पीछे वाली वॉल पर फाइब्रॉइड्स constipation की प्रॉब्लम भी खड़ी कर सकता है
सिर्फ यूट्रस निकलवाना ही नहीं है इलाज का आखिरी विकल्प
- 3 सेमी से छोटे फाइब्रॉइड्स को यूं ही छोड़ा जा सकता है, ये हमें कोई नुकसान नहीं पहुंचाते। पर किन्ही केसेज में अगर फाइब्रॉइड्स का साइज 1 सेमी ही है, लेकिन पेशेंट को दर्द, हैवी ब्लीडिंग की प्रॉब्लम हो रही है, तो हमें फाइब्रॉइड को निकालना ही पड़ता है।
- बच्चेदानी की सबसे अंदरूनी हिस्से में अगर गांठ है, तो सिर्फ हिस्टेरेस्कोप (दूरबीन विधि) की हेल्प से बड़ी आसानी से इस गांठ यानी फाइब्रॉइड को निकाला जा सकता है। पर इन फाइब्रॉइड्स को निकलवाना बहुत जरूरी है।
- 3 सेमी. से बड़े फाइब्रॉइड्स नुकसान पहुंचा सकते हैं, इन्हें हम लेप्रोस्कोपी विधि द्वारा 4 छोटे-छोटे छेद करके बहुत आसानी से यूटरेस को सेफ रखते हुए इन्हें बाहर निकाल सकते हैं और यही स्पेशियालिटी है गहलोत हेल्थ केयर रेनू आईवीएफ सेंटर की।
- ऐसे कई केसेज में गहलोत हेल्थ केयर रेनू आईवीएफ सेंटर, कानपुर में बिना यूटरेस निकाले फाइब्रॉइड्स को पूरी तरह से बाहर निकाला गया है और ऐसा कराने वाली फीमेल पेशेंटस आज बच्चों को जन्म देकर पेरेंट्स भी बन चुके हैं।