आपराधिक कानून 'बदले का हथियार' नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी लक्ष्मण रेखा

1 hour ago

Last Updated:November 24, 2025, 22:54 IST

आपराधिक कानून 'बदले का हथियार' नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने खींच दी लक्ष्मण रेखासुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक प्रणाली के दुरुपयोग पर चिंता जताई. (फाइल फोटो)

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक न्याय प्रणाली के बढ़ते दुरुपयोग पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सोमवार को स्पष्ट किया कि आपराधिक कानून का उपयोग किसी भी स्थिति में व्यक्तिगत वैमनस्य या निजी प्रतिशोध की पूर्ति के हथियार के रूप में नहीं किया जा सकता. जस्टिस बी. वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने यह टिप्पणी गुवाहाटी के एक व्यवसायी के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी) और धारा 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत दर्ज आपराधिक मामले को निरस्त करते हुए की. पीठ ने कहा कि बीते वर्षों में कुछ व्यक्तियों द्वारा अपने निहित स्वार्थों, अप्रत्यक्ष उद्देश्यों और निजी एजेंडा को साधने के लिए आपराधिक प्रक्रिया का अनुचित उपयोग एक चिंताजनक प्रवृत्ति के रूप में उभरा है. अदालत ने इसे न्यायिक प्रक्रिया का स्पष्ट दुरुपयोग बताया.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “अदालतों का दायित्व है कि वे ऐसे प्रयासों को प्रारंभिक चरण में ही रोकें, ताकि समाज के ताने-बाने तथा न्यायिक व्यवस्था की विश्वसनीयता पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े. आपराधिक न्याय तंत्र का उद्देश्य केवल वास्तविक अपराधों का संज्ञान लेकर न्याय सुनिश्चित करना है, न कि किसी के निजी हितों का संरक्षण करना.” पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायालयों को ऐसे मामलों में सतर्क दृष्टिकोण अपनाना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि आपराधिक कार्रवाई केवल उन्हीं मामलों में आगे बढ़े, जहां प्रथम दृष्टया अपराध का यथोचित आधार उपस्थित हो.

शीर्ष अदालत ने शिकायत और साक्ष्यों का अवलोकन करते हुए कहा कि व्यवसायी इंदर चंद बागड़ी के विरुद्ध धोखाधड़ी और आपराधिक विश्वासघात का पुख्ता मामला नहीं बनाया जा सका है और शिकायतकर्ता जगदीश प्रसाद बागड़ी के पास विवादित संपत्ति के विक्रय विलेख को रद्द करने एवं अपने संविदात्मक अधिकारों के उल्लंघन के लिए हर्जाना मांगने के वास्ते दीवानी कानून के तहत अन्य उपाय मौजूद हैं.

पीठ ने कहा, “आपराधिक कानून को व्यक्तिगत रंजिश और प्रतिशोध की भावना से प्रतिशोधात्मक कार्यवाही शुरू करने का मंच नहीं बनना चाहिए.” न्यायालय ने यह भी कहा कि इंदर चंद बागड़ी को किसी भी प्रकार की आपराधिक मंशा का दोषी नहीं ठहराया जा सकता और इसलिए, अभियोजन पक्ष द्वारा उनके विरुद्ध लगाए गए आरोप टिकने योग्य नहीं हैं.

पीठ ने “हरियाणा बनाम भजन लाल” मामले में 1992 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत का मानना ​​है कि इंद्र चंद बागड़ी के खिलाफ आपराधिक इरादे और अन्य आरोप दुर्भावनापूर्ण इरादे से लगाए गए हैं और वर्तमान अभियोजन को जारी रखने की अनुमति देना न तो समीचीन है और न ही न्याय के हित में है.

Rakesh Ranjan Kumar

राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...और पढ़ें

राकेश रंजन कुमार को डिजिटल पत्रकारिता में 10 साल से अधिक का अनुभव है. न्यूज़18 के साथ जुड़ने से पहले उन्होंने लाइव हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, ज़ी न्यूज़, जनसत्ता और दैनिक भास्कर में काम किया है. वर्तमान में वह h...

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Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

November 24, 2025, 22:54 IST

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