इंड‍ियन एयरफोर्स को बड़ा झटका! 114 राफेल जेट मिल नहीं रहे, अब गजराज भी बीमार

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Last Updated:December 04, 2025, 12:38 IST

IL-76MD Transport Aircraft: देश और दुनिया के बदलते सामरिक हालात को देखते हुए इंडियन आमर्ड फोर्सेज को लगातार अपडेट और अपग्रेड किया जा रहा है. पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट के साथ ही अल्‍ट्रा मॉडर्न मिसाइल, एयर डिफेंस सिस्‍टम और कॉम्‍बैट ड्रोन पर हजारों-लाखों करोड़ रुपये का निवेश किया जा रहा है. देसी टेक्‍नोलॉजी से 5th जेनरेशन फाइटर जेट बनाने के लिए महत्‍वाकांक्षी AMCA प्रोजेक्‍ट लॉन्‍च किया गया है.

इंड‍ियन एयरफोर्स को बड़ा झटका! 114 राफेल जेट मिल नहीं रहे, अब गजराज भी बीमारIL-76MD Transport Aircraft: दो स्‍ट्रैटजिक ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट IL-76MD मेंटेनेंस के अभाव में चंडीगढ़ एयरबेस पर यूं ही खड़े हैं. (फाइल फोटो/PTI)

IL-76MD Transport Aircraft: मॉडर्न वॉरफेयर में एयरफोर्स और नेवी की भूमिका काफी अहम हो चुकी है. साल 1971 के युद्ध में इंडियन नेवी ने पाकिस्‍तान को ऐसी चोट दी कि पड़ोसी देश घुटनों पर आ गया और सरेंडर करना पड़ा. 21वीं सदी में एयरफोर्स ने जब हुंकार भरी तो बालाकोट और नूर खान एयरबेस तार-तार हो गया. दुश्‍मनों के दिलों की धड़कनें बढ़ गईं. अपनी पीठ सहलाने वाली पाकिस्‍तानी सरकार इंटरेशनल पावर्स से शांति की भीख मांगने लगा. इसके बाद कहीं जाकर भारत माना और संघर्ष विराम के लिए सहमत हुआ. ऑपरेशन सिंदूर की वजह से भारत की साख दुनियाभर में मजबूत हुई. फाइटर जेट और मिसाइल के साथ ही ट्रांसपोर्ट विमान का भी वॉर टाइम या फिर टकराव के समय काफी महत्‍व होता है. जवानों के लिए रसद की आपूर्ति, साजो-सामान और तोप-टैंक को बहुत ही कम समय में फॉरवर्ड पोस्‍ट तक पहुंचाने में ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट की भूमिका काफी अहम होती है. इंडियन एयरफोर्स को इस मोर्चे पर धक्‍का लगा है. दो रूसी स्‍ट्रैटज‍िक ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस के अभाव में चंडीगढ़ एयरबेस पर यूं ही पड़े हैं. इससे IAF के ट्रांसपोर्ट फ्लीट पर भी बुरा असर पड़ा है. बता दें कि भारतीय वायुसेना ट्रांसपोर्ट विमान खरीदने की तैयारी भी कर रही है.

भारतीय वायुसेना (IAF) के दो IL-76MD रणनीतिक परिवहन विमान पिछले तीन साल से ज्यादा समय से चंडीगढ़ एयरफोर्स स्टेशन पर खड़े हैं और उड़ान नहीं भर पाए हैं. सैटेलाइट इमेजरी के आधार पर की गई एक विश्लेषण रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है. IL-76MD एयरक्राफ्ट्स (जिन्हें वायुसेना में ‘गजराज’ कहा जाता है) भारत की हेवी-लिफ्ट क्षमता का मुख्य आधार रहे हैं. साल 1985 से 1989 के बीच 17 विमान वायुसेना में शामिल किए गए थे. ये विमान करीब 40–44 टन तक का भार उठा सकते हैं और टैंकों से लेकर पूरी इन्फैंट्री कंपनी तक का उपकरण साथ ले जाने में सक्षम हैं. वायुसेना की 44 स्क्वाड्रन ‘माइटी जेट्स’ इन्हें चंडीगढ़ से ऑपरेट करती है. इन विमानों ने मालदीव में 1988 के ऑपरेशन, श्रीलंका में IPKF तैनाती और 2015 के नेपाल भूकंप राहत अभियान जैसे कई बड़े ऑपरेशनों में अहम भूमिका निभाई है.

राफेल, एफ-35 और Su-57 जैसे फाइटर जेट की खरीद की बात भी अभी तक अटकी हुई है. (फाइल फोटो/AP)

क्‍या है दावा?

‘इंडिया डिफेंस रिसर्च विंग’ की रिपोर्ट के अनुसार, पहला IL-76MD साल 2020 की शुरुआत में चंडीगढ़ में खुले क्षेत्र में पार्क किया गया था. जल्द ही दूसरा विमान भी उसी जगह आ गया. 2021 में दोनों में से किसी ने भी उड़ान नहीं भरी. साल 2022 की शुरुआत में दोनों को थोड़े समय के लिए ऑपरेशनल एरिया में ले जाया गया, लेकिन बाद में वे फिर उसी स्थान पर लौट आए और दिसंबर 2025 तक वहीं खड़े हैं. युद्ध के बाद रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण इंजनों और अन्य स्पेयर्स की सप्लाई में देरी हो रही है. IL-76MD के D-30KP इंजन वर्तमान में सबसे बड़ी चुनौती हैं. मेंटेनेंस और मरम्मत के लिए जरूरी स्पेयर पार्ट्स समय पर नहीं मिल पा रहे, जिसकी वजह से कुछ विमानों के उपयोगी हिस्से निकालकर बाकी विमानों को उड़ान में रखा जा रहा है. इसी कारण 17 विमानों की शुरुआती संख्या घटकर अब लगभग 11–12 रह गई है. मार्च 2024 में वायुसेना ने रूस की एक कंपनी को 11 विमानों की तकनीकी उम्र और ओवरहॉल अंतराल की विस्तृत जांच का काम सौंपा था. यह पूरा मूल्यांकन चंडीगढ़ में ही चल रहा है.

IAF पर क्‍या असर?

चंडीगढ़ में इन दो गजराज ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट के पास ही तीन Mi-26 हेवी-लिफ्ट हेलिकॉप्टर भी लंबे समय से खड़े हैं, जिन्हें भी रूस से ओवरहॉल न मिलने के कारण उड़ान की अनुमति नहीं मिल पा रही. इससे यह साफ दिखता है कि रूसी मूल के पुराने प्लेटफॉर्मों को बनाए रखने में वायुसेना को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इन दो IL-76MD विमानों के ग्राउंड होने से वायुसेना की रणनीतिक एयरलिफ्ट क्षमता लगभग 12% तक प्रभावित हुई है. इससे एलएसी पर किसी भी त्वरित तैनाती और इंडियन ओशन रीजन में ऑपरेशनों की गति पर असर पड़ सकता है. वायुसेना अब 2026 तक 12 नए C-295MW परिवहन विमान शामिल कर रही है. इसके अलावा 11 C-17 ग्लोबमास्टर पहले से सेवा में हैं, ताकि धीरे-धीरे इस कमी को पूरा किया जा सके. रूसी स्पेयर पार्ट्स की सप्लाई बहाल होने की उम्मीद 2026 के बाद जताई जा रही है. तब तक ये दोनों IL-76MD विमान संभवतः ‘ऑर्गन डोनर’ यानी पार्ट्स निकालने के स्रोत के रूप में ही काम करेंगे. वायुसेना के लिए यह स्थिति संकेत है कि भविष्य में स्वदेशी और पश्चिमी विकल्पों को तेजी से अपनाना जरूरी है.

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Manish Kumar

बिहार, उत्‍तर प्रदेश और दिल्‍ली से प्रारंभिक के साथ उच्‍च शिक्षा हासिल की. झांसी से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्‍ली यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में PG डिप्‍लोमा किया. Hindustan Times ग्रुप से प्रोफेशनल कॅरियर की शु...और पढ़ें

Location :

New Delhi,Delhi

First Published :

December 04, 2025, 12:38 IST

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