Last Updated:October 02, 2025, 14:57 IST
Lal Bahadur Shastri: लाल बहादुर शास्त्री की मौत आज भी अनसुलझी है. परिवार ने जांच की मांग की थी, ललिता शास्त्री ने जहर देने का शक जताया. हैरत की बात है कि उनका पोस्टमार्टम नहीं हुआ था.
लाल बहादुर शास्त्री की मौत 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में रहस्यमय परिस्थितियों में हुई थी.Lal Bahadur Shastri: पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य आज भी अनसुलझा है. उनकी मृत्यु की जांच के लिए कई समितियां और आयोग बनाए गए पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में हुआ था. जबकि उनकी मौत 11 जनवरी 1966 को ताशकंद (जो तब रूस का हिस्सा था) में हुई थी. यह एक रहस्यमय घटना थी. पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर दस्तखत करने के बाद उसी रात उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा और सही इलाज मिलने से पहले ही उनकी जान चली गई.
उनके परिवार ने समय-समय पर इस मौत की जांच की मांग की है. सालों बाद उनके बेटे सुनील शास्त्री (जो बाद में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए) ने भी सरकार से इस रहस्य पर से पर्दा उठाने की अपील की थी. सुनील शास्त्री ने यह भी दावा किया कि उनकी मां ललिता शास्त्री ने कहा था कि उन्हें जहर दिया गया था. उस समय शास्त्री जी के साथ मौजूद वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में उस रात ताशकंद में घटी घटनाओं का विस्तार से वर्णन किया है.
ताशकंद की वह रात
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री देश, दिशा, दशा’ में कुलदीप नैयर के हवाले से उस रात का मंजर कुछ इस तरह लिखा है: “तेजी से दरवाजा खटखटाने की आवाज से मेरी नींद खुली. कॉरिडोर में खड़ी एक महिला ने मुझसे कहा, ‘तुम्हारे प्रधानमंत्री मर रहे हैं.’ मैंने जल्दी से कपड़े पहने और एक भारतीय अधिकारी के साथ उस रूसी शैली के आरामगाह की ओर भागा, जहां शास्त्री जी ठहरे हुए थे. वहां पहुंचकर मैंने देखा कि (सोवियत संघ के प्रमुख) अलेक्सेई कोसीगिन बरामदे में खड़े हैं. उन्होंने हमें दूर से ही हाथ हिलाकर इशारा कर दिया कि शास्त्री जी अब नहीं रहे. बरामदे के पीछे डाइनिंग रूम था, जहां एक बड़ी अंडाकार मेज के चारों ओर डॉक्टरों की टीम बैठी थी और शास्त्री जी के डॉक्टर आर. एन. चुघ से घटना की जानकारी ले रही थी.”
कैसा था शास्त्री जी का कमरा
कुलदीप नैयर उस रात के कमरे का वर्णन करते हुए आगे लिखते हैं: “उस बरामदे के पीछे शास्त्री जी का कमरा था. कमरा बहुत लंबा-चौड़ा था. एक विशाल पलंग पर उनका शरीर किसी छोटे से बिंदु जैसा दिख रहा था. कारपेट वाले फर्श पर उनकी चप्पलें करीने से वैसे ही बिना पहनी रखी थीं. कमरे के एक कोने में रखी ड्रेसिंग टेबल पर एक थर्मस उल्टा पड़ा था. ऐसा लगा जैसे शास्त्री जी ने उसे खोलने की कोशिश की थी. सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि कमरे में कोई घंटी (कॉल बेल) नहीं थी. बाद में जब इस बात को लेकर संसद में सरकार पर हमला हुआ कि शास्त्री जी को क्यों नहीं बचाया जा सका, तो सरकार को इसी ‘घंटी न होने’ के बिंदु पर झूठ बोलना पड़ा था.”
आखिरी बार पानी मांगा
किदवई अपनी किताब में आगे बताते हैं: “ड्रेसिंग टेबल के पास साफ-सुथरा तिरंगा तह किया हुआ रखा था. सरकारी फोटोग्राफ़र के साथ मिलकर मैंने (नैयर) उस तिरंगे को शास्त्री जी के शरीर पर डाल दिया. शास्त्री जी को फूल चढ़ाकर मैं उनके सहायकों से मिलने चला गया. वे पास के ही एक खुले बरामदे से थोड़ी दूर पर ठहरे थे. शास्त्री जी के निजी सचिव जगन्नाथ सहाय ने मुझे बताया कि आधी रात के आस-पास शास्त्री जी ने उनका दरवाजा खटखटाया और पानी मांगा था. दो स्टेनोग्राफर्स और जगन्नाथ ने मिलकर उन्हें सहारा दिया और वापस कमरे तक पहुंचाया. डॉ. चुघ का मानना था कि यह वही समय था जो उनके लिए जानलेवा साबित हुआ (यानी, पानी मांगने के लिए बाहर आना उनके लिए घातक सिद्ध हुआ).”
क्या खाया था उस रात
किताब के अनुसार, कुलदीप नैयर ने आगे लिखा: “शास्त्री जी की मौत की खबर भेजने के बाद मैं उनके सहयोगियों के पास गया ताकि उनकी मृत्यु के हालात को विस्तार से जान सकूं. इधर-उधर से जुटाई गई जानकारी से यह सामने आया कि स्वागत समारोह के बाद शास्त्री जी रात के लगभग 10 बजे अपने कमरे पर पहुंचे. उन्होंने अपने निजी सहायक रामनाथ से खाना मांगा, जो भारतीय राजदूत टी. एन. कौल के घर से बनकर आया था. कौल के बावर्ची जान मुहम्मद ने यह खाना बनाया था, जिसमें सब्जी, आलू और करी शामिल थी. शास्त्री जी ने यह खाना बहुत थोड़ा ही खाया था.”
सोते समय की आखिरी बातचीत
किताब के अगले हिस्से के अनुसार: “शास्त्री जी को सोते समय दूध पीने की आदत थी, इसलिए रामनाथ (निजी सहायक) ने उन्हें दूध दिया. दूध पीने के बाद प्रधानमंत्री एक बार फिर बेचैनी से कमरे में घूमने लगे. फिर उन्होंने पानी मांगा. रामनाथ ने ड्रेसिंग टेबल पर रखे थर्मस फ्लास्क से उन्हें पानी दिया. रामनाथ ने नैयर को बताया कि पानी देने के बाद उसने थर्मस फ्लास्क बंद कर दिया था. आधी रात से कुछ देर पहले शास्त्री जी ने रामनाथ से कहा कि वह भी जाकर सो जाए, क्योंकि सुबह जल्दी उठकर उन्हें काबुल के लिए निकलना था. रामनाथ ने वहीं कमरे में फर्श पर सोने की इच्छा जताई, लेकिन शास्त्री जी ने उसे अपने ऊपर वाले कमरे में सोने के लिए भेज दिया.”
मौत से ठीक पहले का मंजर
शास्त्री जी के निजी सचिव गन्नाथ सहाय ने उस भयानक पल को याद करते हुए बताया: “जब मैं अपने कमरे में सामान पैक कर रहा था,तब रात के 1 बजकर 20 मिनट पर (ताशकंद के समय के अनुसार) शास्त्री जी खुद मेरा दरवाजा खटखटाने पहुंचे. जगन्नाथ ने बताया कि शास्त्री जी बेहद तकलीफ में लग रहे थे. बड़ी मुश्किल से उन्होंने पूछा, ‘डॉक्टर साहब कहां हैं?’ उसी समय उन्हें भयंकर खांसी आने लगी, जिससे उनका पूरा शरीर कांप रहा था. निजी सहायकों ने तुरंत उन्हें सहारा दिया और वापस लाकर बिस्तर पर लिटाया. जगन्नाथ ने उन्हें पानी पिलाया और दिलासा देते हुए कहा, ‘बाबूजी, आप ठीक हो जाएंगे.’ इस पर शास्त्री जी ने अपने सीने की ओर इशारा किया और बेहोश हो गए. बाद में जब जगन्नाथ ने यह बात दिल्ली में ललिता शास्त्री को बताई तो उन्होंने कहा कि तुम बहुत भाग्यशाली हो कि अंतिम समय में तुमने उन्हें पानी पिलाया.”
ललिता शास्त्री के तीखे सवाल
जब कुलदीप नैयर ताशकंद से भारत लौटे तो ललिता शास्त्री ने उनसे शास्त्री जी के शरीर के बारे में कुछ गंभीर सवाल पूछे. उन्होंने नैयर से पूछा, “शास्त्री जी का शरीर नीला क्यों पड़ गया था?” नैयर ने जवाब दिया, “मुझे बताया गया था कि शव को सुरक्षित रखने के लिए जब उस पर रसायन (केमिकल) लगाए जाते हैं, तो शरीर का रंग नीला पड़ जाता है.” इसके बाद ललिता शास्त्री ने शरीर पर लगे कट के निशानों के बारे में पूछा. नैयर को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी, क्योंकि उन्होंने शास्त्री जी का शव नहीं देखा था. लेकिन, उन्हें सबसे ज्यादा हैरानी इस बात से हुई कि न तो ताशकंद में और न ही दिल्ली में शास्त्री जी के शव का पोस्टमार्टम किया गया था. नैयर मानते थे कि यह असामान्य बात थी। इसीलिए ललिता शास्त्री और परिवार के बाकी सदस्यों को उनकी मृत्यु के मामले में कई तरह के शक थे.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
October 02, 2025, 14:57 IST

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