Last Updated:June 16, 2025, 12:56 IST
Congress Secret Meeting Plan: बिहार में कांग्रेस गुप्त मीटिंग्स कर रही है, सीटों के बंटवारे पर आरजेडी से बात नहीं बन रही. राहुल ब्रिगेड आरजेडी को आंख दिखा रही है और अलग राह की तैयारी में है. सियासत गर्म हो गई ह...और पढ़ें

हाइलाइट्स
कांग्रेस और आरजेडी में सीट बंटवारे पर तकरार.कांग्रेस की गुप्त मीटिंग्स से सियासी गर्मी.कांग्रेस अलग राह की तैयारी में.पटना. बिहार चुनाव को लेकर कांग्रेस ताबड़तोड़ गुप्त पर गुप्त मीटिंग कर रही है. इसके मायने क्या है इसका खुलासा तो नहीं हो रहा है, लेकिन इतना तो तय है कि सीटों के बंटवारे को लेकर आरजेडी से बात नहीं बन रही है. ऐसे में बिहार में तैनात राहुल ब्रिगेड की सेना आरजेडी को आंख तो दिखा ही रही है, अब झटका देने का भी ‘बैक चैनल और बैक डोर’ प्लान तैयार कर लिया है. कांग्रेस, जो अब तक राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के खिलाफ इंडिया गठबंधन का हिस्सा रही है, बिहार में अपने सबसे पुराने सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) से दूरी बनाती दिख रही है.
पिछले कुछ हफ्तों से कांग्रेस के भीतर लगातार गुप्त मीटिंग्स चल रही हैं. रविवार को एक बार फिर से पटना में एक गुप्त मीटिंग की गई हैं. कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी स्थिति को और मज़बूत करना चाहती है और सीटों के बंटवारे में ज्यादा हिस्सेदारी हासिल करना चाहती है. लेकिन सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस सीट हासिल करने के लिए गुप्त मीटिंग क्यों क रही है? क्या यह संकेत है कि आरजेडी के साथ अब रिश्ते पहले जैसे नहीं रहे?
राहुल ब्रिगेड की रणनीति क्या कहती है?
राहुल गांधी और उनकी कोर टीम की मानें तो बिहार में कांग्रेस को अब ‘सहयोगी पार्टी’ के बजाय एक ‘निर्णायक ताकत’ के रूप में देखा जाना चाहिए। लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन भले ही कमजोर रहा हो, लेकिन राहुल ब्रिगेड का मानना है कि विधानसभा चुनावों में स्थानीय चेहरों और सामाजिक समीकरणों के ज़रिए पार्टी बेहतर प्रदर्शन कर सकती है – बशर्ते उसे पर्याप्त सीटें मिलें.
इसी को ध्यान में रखते हुए दिल्ली और पटना में लगातार ‘क्लोज़ डोर’ मीटिंग्स हो रही हैं। रविवार को कांग्रेस की जो बड़ी बैठक बुलाई गई, वह भी इसी रणनीति का हिस्सा थी। इसमें बिहार प्रभारी, प्रदेश अध्यक्ष और रणनीतिक सलाहकारों की टीम शामिल रही। सूत्रों के मुताबिक, बैठक में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि अगर आरजेडी एकतरफा सीटों का बंटवारा करती है, तो कांग्रेस को ‘ऑप्शन B’ पर भी विचार करना चाहिए।
आरजेडी से क्यों नहीं बन रही बात?
आरजेडी, जो बिहार में विपक्ष की सबसे बड़ी ताकत है, स्वाभाविक रूप से ज्यादा सीटों पर दावा कर रही है। पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में जब कांग्रेस को 70 सीटें दी गई थीं, तब वह केवल 19 पर जीत पाई थी। आरजेडी का तर्क है कि कांग्रेस को कमज़ोर क्षेत्रों में टिकटें दी गई थीं, और वह खुद अपना जनाधार खो चुकी है। ऐसे में इस बार आरजेडी चाहता है कि कांग्रेस को 30–35 सीटों तक सीमित किया जाए।
अंदरखाने क्या चल रहा है?
कांग्रेस इसे अपमानजनक मान रही है। पार्टी नेताओं का कहना है कि इंडिया गठबंधन का मकसद है ‘समान सहभागिता’, और अगर इसी तरह आरजेडी अपने बलबूते चलती रही, तो कांग्रेस के लिए गठबंधन में रहना मुश्किल होगा। सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी ने अपनी कोर टीम से यह साफ कहा है कि बिहार में पार्टी को अपने संगठन को दुरुस्त करना होगा और केवल ‘मोलभाव की राजनीति’ से बात नहीं बनेगी। बिहार कांग्रेस में युवाओं को आगे लाने, सोशल मीडिया पर सक्रियता बढ़ाने, और जातीय समीकरणों के अनुसार टिकट वितरण की रणनीति पर काम हो रहा है।
क्या टूट सकता है गठबंधन?
इसके अलावा यह भी चर्चा है कि कांग्रेस कुछ छोटे दलों के साथ ‘बैकचैनल’ बातचीत में है, ताकि जरूरत पड़ने पर एक वैकल्पिक गठबंधन या ‘तीसरा फ्रंट’ खड़ा किया जा सके भले ही यह विकल्प अभी सार्वजनिक न किया जाए। हालांकि दोनों दलों ने अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन संकेत साफ हैं कि अगर सीटों का बंटवारा समान रूप से नहीं हुआ, तो कांग्रेस एक अलग राह पकड़ सकती है। हालांकि यह राह जोखिम भरी होगी, लेकिन राहुल ब्रिगेड अब हारकर समझौता करने को तैयार नहीं है।
बिहार की राजनीति में आने वाले महीनों में काफी उथल-पुथल देखने को मिल सकती है। कांग्रेस की गुप्त बैठकों और रणनीतिक तैयारी को अगर नजरअंदाज किया गया, तो यह विपक्षी एकता के लिए खतरे की घंटी हो सकती है। सवाल यह नहीं कि कांग्रेस क्या चाहती है? सवाल यह है कि क्या आरजेडी उसे बराबरी का दर्जा देने को तैयार है? कुलमिलाकर यह लड़ाई सिर्फ सीटों की नहीं, सियासी सम्मान की भी है और इसी सम्मान की लड़ाई ने कांग्रेस को गुप्त से गुप्त रणनीतियों पर काम करने को मजबूर कर दिया है.