अगर आप 12 महीने की नौकरी पर 13 महीने की तनख्वाह चाहते हैं तो यूपी पुलिस में भर्ती हो सकते हैं. हालांकि यूपी पुलिस में सिपाही की भर्ती परीक्षा चल रही है, लिहाजा अब आपको अगली भर्ती निकलने तक इंतजार करना होगा. जी, हां, उत्तर प्रदेश पुलिस अपने नॉन गजटेड स्टॉफ को साल में कुल 13 महीने की तनख्वाह देती है. ये अलग बात है कि चौबीस घंटे ड्यूटी करने वाले इस महकमे में काम करने के लिए आप इस मुआवजे को पूरा मानते हैं या नहीं.
नॉन गजटेड स्टॉफ का मतलब
नॉन गजटेड स्टॉफ का मतलब सिपाही, दीवान, दरोगा और इंस्पेक्टर से है. इन रैंकों को सिविलियन सेवाओं में नॉन गजटेड कहा जाता है. हिंदी में इसे अराजपत्रित कहा जाता है. यानी इनके तबादलों का जिक्र राज्य के राजपत्र में दर्ज नहीं होता. ये अलग बात है कि आम आदमी का रोज का ‘लेना-देना’ इन्हीं लोगों से पड़ता है. तो पहले ये समझ लीजिए कि सिपाही जी, दीवान जी, दरोगा जी, इंस्पेक्टर साहेब को ये तेरहवें महीने की तनख्वाह क्यों और कैसे मिलती है.
आखिर क्यों मिलती है?
पुलिस की नौकरी में कम से कम इन रैकों के लोगों को चौबीस घंटे ऑन ड्यूटी ही माना जाता है. वैसे दूसरे महकमों में भी कोई ये नहीं कह सकता कि वो अब ड्यूटी पर नहीं है. हां, उसका दफ्तर एक निश्चित समय के बाद बंद जरूर हो जाता है. लेकिन सरकार ये अफसर जब चाहे उसे काम के लिए तलब कर सकते हैं. पुलिस में थाना कभी बंद नहीं किया जाता. काम ही नहीं हो पाएगा. थाने की जरूरत ज्यादातर कोई न कोई दुर्घटना हो जाने पर ही पड़ती है. जाहिर है दुर्घटना तो बता कर होगी नहीं. लिहाजा कोई भी कभी काम पड़ने पर थाने जा सकता है. इस लिहाज से कहा जा सकता है कि पुलिस में चौबीसों घंटे, सातो दिन और पूरे साल काम करना होता है.
पुलिस की नौकरी हमेशा युवाओं को लुभाती रही है.
हर वक्त का ब्योरा जीडी में
काम ही नहीं करना होता, बल्कि क्या काम किया इसे एक डॉयरी में दर्ज भी करना होता है. इस डॉयरी को जीडी यानी जनरल डॉयरी कहा जाता है. मुगल काल से जुड़ा होने के नाते इसे पुराने वक्त में रोजनामचा आम कहा जाता रहा. आम मतलब सबके लिए और रोजनामचा मतलब रोज की घटनाओं को दर्ज करने वाला रजिस्टर से है. इसमें पुलिस वाले के आने जाने का सारा ब्योरा दर्ज किया जाता है. जो वक्त के हिसाब से नंबर समेत लिखा जाता है. थाने में दर्ज की जाने वाली दूसरी सारी सूचनाएं भी इसमें दर्ज होती हैं. जरुरत पड़ने पर कोर्ट भी किसी मामले में इसे तलब कर पुलिस के दावों को परखती है.
खैर ये सब इस वजह से बताया कि समझ में आ जाय कि पुलिस की नौकरी चौबीस घंटे, सातो दिन और पूरे साल कैसे होती है. इसमें त्योहारों के दिन भी शामिल होते हैं. होली, दीपावली, दशहरा या फिर दूसरी सरकारी छुट्टियों को इन्हें और सख्त ड्यूटी करनी होती है. ताकि त्योहार शांतिपूर्वक निपट जाएं. इतवार की भी छुट्टी नहीं मिलती. इसके एवज ने सरकार इन्हें एक महीने की एक्टा सेलरी देती है. इसमें मूल वेतन और महंगाई शामिल होता है. दूसरे भत्ते जैसे मोटरसाइकिल का भत्ता या वर्दी का भत्ता वगरैह नहीं मिलता. ये एक्ट्रा वेतन होली के आस पास मार्च के महीने में मिलता है.
एक पुलिस अधिकारी ने तो बताया कि पहले तकरीबन पंद्रह महीने के वेतन के बराबर राशि हो जाती थी. बाद की राज्य सरकारें इसमें कटौती करती गईं. जैसे एक महीने के वेतन के बराबर बोनस मिलता था. जिसे काट कर 3700 रुपये पर फिक्स कर दिया गया. इसके अलावा हर साल लीव इंकैशमेंट से तकरीबन महीने भर का वेतन मिल जाता था. इसे भी खत्म कर दिया गया.
तेरहवे महीने का वेतन इंस्पेक्टर से ऊपर के गजटेड कहे जाने वाले अधिकारियों को नहीं मिलता. क्योंकि माना जाता है कि छुट्टियों में उनके दफ्तर बंद रहते हैं. इतवार को भी उनका ऑफिस नहीं खुलता. उत्तर प्रदेश पुलिस के आईजी पद से रिटायर ओ.पी. त्रिपाठी के मुताबिक ऐसे में गजटेड अफसर अगर चाहें तो साल में एक बार छु्ट्टी लेकर परिवार के साथ कहीं घूमने जा सकते हैं. सरकार आने जाने का किराया उन्हें देती है. इसे एलटीए के तौर पर जाना जाता है.
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FIRST PUBLISHED :
August 30, 2024, 12:58 IST