जब भी चुनावों के बाद मतगणना यानि वोट काउंटिंग का काम शुरू होता है तो सबसे पहले पोस्टल बैलेट की गिनती का काम होता है. क्या आपको मालूम है कि किस राज्य में सबसे ज्यादा पोस्टल बैलेट डाले जाते हैं. बिहार औ यूपी में कितने पोस्टल बैलेट हैं.
भारत में सबसे ज़्यादा पोस्टल बैलेट आंध्र प्रदेश में डाले जाते हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर राजस्थान है तो तीसरे नंबर पर तमिलनाडु. आंध्र में वर्ष 2024 में करीब 5.12 लाख पोस्टल बैलेट से मतदान हुआ. राजस्थान में इसकी संख्या 3.76 लाख रही तो Tamil Nadu में 3.11 लाख.
बिहार और यूपी में कितने पोस्टल बैलेट
वैसे इस बिहार विधानसभा चुनावों में भी पोस्ट बैलेट की सुविधा दी गई. ये सुविधा 85 वर्ष से ऊपर वाले वरिष्ठ नागरिक, विकलांग मतदाता (बेंचमार्क विकलांगता के साथ) और बाहरी नौकरी करने वाले मतदाताओं के लिए थी, जो पोस्टल बैलट के माध्यम से वोट कर सके. 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में करीब 2.68 लाख पोस्टल बैलट डाले गए थे. 2020 की एक रिपोर्ट के मुताबिक पहले चरण में बिहार में करीब 52,000 मतदाताओं ने पोस्टल बैलट का विकल्प चुना.
उत्तर प्रदेश में 2024 लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश से करीब 2,36,508 पोस्टल बैलट्स डाले गए. इनमें से सरकार के कर्मचारियों, सेवा मतदाताओं आदि के माध्यम से काफी हिस्सेदारी थी.
पोस्टल बैलेट कब तक डाले जा सकते हैं
नियमित पोस्टल वोटिंग सेंटर्स चुनाव से कम-से-कम 3 दिन पहले बंद हो जाते हैं. जो लोग पोस्टल बैलेट की सुविधा चाहते हैं, उन्हें आम तौर पर चुनाव की घोषणा से 5 दिन के भीतर आवेदन करना होता है.
क्यों खारिज हो जाते हैं पोस्टल बैलट
आम तौर पर पोस्टल बैलट तभी मान्य माना जाता है जब सभी प्रक्रिया सही तरीके से पूरी हुई हो, जैसे कि घोषणा फॉर्म सही भरा गया हो, प्रतिवादी द्वारा सत्यापन हुआ हो, बैलट पेपर सही तरीके से बंद किया गया हो.यदि पोस्टल बैलट में रिटर्निंग आफिसर की मोहर नहीं है लेकिन घोषणापत्र पर गजेटेड अधिकारी के हस्ताक्षर हैं, तो उसे अमान्य नहीं माना जाएगा.
पिछले आंकड़ों के आधार पर यह दिखा है कि देश में आम तौर पर 12-20 % के आसपास पोस्टल बैलट अमान्य हो जाते हैं. वर्ष 2024 में लोकसभा चुनावों के दौरान पूरे भारत में करीब 12.51% पोस्टल बैलेट खारिज हो गए.
क्यों होते हैं पोस्टल बैलेट
भारत के चुनाव में यह पूरी कोशिश की जाती है कि ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान कर सकें. लेकिन देश के कई लोग ऐसे होते हैं जो चुनाव के मौके में अपने घर जाकर कर वोट देने की स्थिति में नहीं होती है.
ऐसे लोगों के लिए ऐसी व्यवस्था करने के बारे में सोचा जाता रहा कि कैसे यह सुनिश्चित किया जा सके कि किसी वजह से अपने गृह नगर से दूर नागरिक भी वोट दे सके. इस समस्या का समाधान पोस्ट बैलेट या डाकमतपत्र या डाकमत्र के रूप में सामने आता है. हालांकि सबसे ज्यादा संख्या सैनिकों की होती है, जो पोस्टल बैलेट का उपयोग करते हैं.
सरकारी कर्मचारी और सैनिक
पोस्टल बैलेट में सैनिकों के अलावा वे सरकारी कर्मचारी और पुलिस और अन्य सुरक्षा कर्मी भी होते हैं चुनाव में ड्यूटी करते हैं. ये लोग भी अपने क्षेत्र में जा कर वोट नहीं दे पाते हैं. भारत जैसे देश में इनकी संख्या बहुत अधिक होती है और इस लिए इनके लिए भी पोस्टल बैलेट की सुविधा होती है. ऐसा ही कुछ देश से या अपने गृह नगर से बाहर नियुक्त किए गए सरकारी अधिकारी के साथ भी होता है.
क्या कैदियों को भी होता है ये अधिकार
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 62(5) के तहत पुलिस की कानूनी हिरासत में और दोषी ठहराए जाने के बाद कारावास की सज़ा काटने वाले व्यक्ति मतदान नहीं कर सकते. हालांकि प्रिवेंटिव डिडेंशन में रखे गए व्यक्ति को डाकपत्र से वोट डालने को मिल सकता है.
पोस्टल बैलेट जिला मुख्यालय भेजते हैं या कलेक्टर को
पोस्टल बैलेट हमेशा रिटर्निंग अफसर को भेजा जाता है, न कि सीधे कलेक्टर या केवल जिला मुख्यालय को. चूंकि भारत में ज्यादातर जिलों में कलेक्टर ही RO होता है, इसलिए प्रैक्टिकली लोग इसे “कलेक्टर को भेजना” भी कह देते हैं. किसी भी निर्वाचन क्षेत्र के लिए चुनाव आयोग RO को नियुक्त करता है. आमतौर पर जिला कलेक्टर ही RO होते हैं, लेकिन कई जिलों में एडीएम या सीनियर SDM भी RO बनाए जाते हैं.
पोस्टल बैलेट कहां भेजते हैं?
पोस्टल बैलेट को Form-13A (Declaration Form) सहित RO के कार्यालय में भेजा जाता है. लिफाफे पर साफ लिखा होता है. RO का कार्यालय सामान्य तौर पर जिला मुख्यालय में ही होता है.
न्यूज़18 को गूगल पर अपने पसंदीदा समाचार स्रोत के रूप में जोड़ने के लिए यहां क्लिक करें।

1 hour ago
