Last Updated:December 02, 2025, 22:33 IST
Revanth Reddy: तेलंगाना के CM रेवंत रेड्डी ने हिन्दू देवी देवताओं के खिलाफ विवादित बयान दिया. BJP ने इसपर आपत्ति जताई और माफी की मांग की. इस बयान ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाया और राजनीतिक-सामाजिक बहस को जन्म दिया, धर्म और राजनीति के बीच संवेदनशील संतुलन पर सवाल खड़ा किया.
रेवंत रेड्डी का विवादित बयान. नई दिल्ली. तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में हिंदू देवी-देवताओं को लेकर विवादित बयान दिया. उन्होंने कहा, “हिंदू कितने देवताओं में विश्वास करते हैं? क्या तीन करोड़? इतने देवता क्यों हैं? जो लोग कुंवारे हैं, उनके भगवान हनुमान हैं. जो दो बार शादी करते हैं, उनके लिए दूसरा भगवान है. जो शराब पीते हैं, उनके लिए अलग. मुर्गे की बलि देने वालों का अलग भगवान. दाल-चावल खाने वालों का भी अलग. हर ग्रुप का अपना भगवान है.”
बीजेपी का पलटवार
उनके इस बयान के तुरंत बाद भाजपा ने सीएम पर देवी-देवताओं के अपमान का आरोप लगाते हुए माफी की मांग कर दी. पार्टी ने कहा कि इस तरह के बयान धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं और ऐसे वक्तव्यों से समाज में तनाव और कट्टरता बढ़ सकती है.
धार्मिक भावनाएं आहत
रेवंत रेड्डी का बयान न केवल धार्मिक भावनाओं को चुनौती देता है बल्कि इसमें सामाजिक विभाजन के संकेत भी हैं. भारत में धर्म और राजनीति का जटिल संबंध रहा है और ऐसे बयान अक्सर राजनीतिक विवाद और मीडिया कवरेज का केंद्र बन जाते हैं. सीएम का यह कथन यह दिखाता है कि धार्मिक बहुलता और व्यक्तिगत विश्वासों के विषय में राजनीति की भूमिकाएं कितनी संवेदनशील हो सकती हैं.
कांग्रेस की फजीहत
राजनीतिक दृष्टि से यह भी देखा जा सकता है कि रेवंत रेड्डी का बयान उनकी पार्टी कांग्रेस के लिए आगे आने वाले दिनों में बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है. सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से, इस बयान ने हिंदू धर्म की बहुलता और विविध परंपराओं पर ध्यान आकर्षित किया. प्रत्येक समूह के अलग-अलग विश्वासों और रीति-रिवाजों को ध्यान में रखते हुए राजनीति में बोलने वाले नेताओं को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए. ऐसे बयान धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सौहार्द को प्रभावित कर सकते हैं.
शब्दों के चयन में गंभीरता की जरूरत
अंततः, रेवंत रेड्डी का यह बयान एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बन गया है. यह मामला केवल एक विवादित वक्तव्य नहीं है, बल्कि यह दिखाता है कि भारत में धर्म, राजनीति और सार्वजनिक संवाद कितने गहरे रूप से जुड़े हुए हैं. नेताओं की जिम्मेदारी है कि वे अपने शब्दों का चयन सोच-समझकर करें, ताकि सामाजिक शांति और धार्मिक भावनाओं की रक्षा हो सके.
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पत्रकारिता में 14 साल से भी लंबे वक्त से सक्रिय हूं. साल 2010 में दैनिक भास्कर अखबार से करियर की शुरुआत करने के बाद नई दुनिया, दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में एक रिपोर्टर के तौर पर काम किया. इस दौरान क्राइम और...और पढ़ें
First Published :
December 02, 2025, 22:26 IST

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