Last Updated:June 26, 2025, 15:42 IST
Bihar Chunav 2025: रेणु कुशवाहा का राजद में शामिल होना क्या तेजस्वी यादव के लिए एक रणनीतिक जीत है? क्या आरजेडी कुशवाहा और ईबीसी वोटों को साधने में कामयाब होने वाली है?

क्या आरजेडी नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक में सेंध लगा रही है?
हाइलाइट्स
तेजस्वी यादव के चाल में घिरते जा रहे हैं नीतीश कुमार?क्या इस चुनाव में कोइरी-कुर्मी गठबंधन टूट जाएगा?रेणु कुशवाहा के आरजेडी में शामिल होने पर कहां-कहां फायदा?पटना. क्या रेणु कुशवाहा की आरजेडी में एंट्री तेजस्वी यादव के ‘बड़े सामाजिक गठबंधन’ की योजना में एक और ईंट जोड़ दी है? क्या मंडल की विरासत, सामाजिक न्याय की राजनीति और जातीय गणित इन तीनों को साथ लेकर तेजस्वी बिहार की सत्ता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं? क्या नीतीश का किला गिराने के लिए सिर्फ एक ‘रेणु’ काफी नहीं होगी इसलिए अगला कदम और बड़ा होना वाला है? क्या आरजेडी में अगला नंबर उपेंद्र कुशवाहा का होगा? या फिर कोई और ‘वोट-बेस आइकन’ आरजेडी में आने के लिए बेताब हैं? बिहार की राजनीति एक बार फिर करवट लेती नजर आ रही है. जैसे-जैसे 2025 का विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, सियासी हलचलें तेज होती जा रही हैं. तेजस्वी यादव की मौजूदगी में आरजेडी में शामिल होकर रेणु कुशवाहा ने न केवल राजनीतिक समीकरणों को उलझाया है, बल्कि नीतीश कुमार के ‘लव-कुश’ समीकरण पर भी चोट की है.
रेणु कुशवाहा का राजनीतिक सफर बेहद दिलचस्प रहा है. खगड़िया से सांसद, बिहारीगंज से तीन बार विधायक, और दो बार राज्य सरकार में मंत्री रह चुकीं रेणु ने जेडीयू, भाजपा और एलजेपी (रामविलास) जैसे दलों का दामन थामा. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने चिराग पासवान पर टिकट बेचने का आरोप लगाते हुए एलजेपी छोड़ दी थी. अब उन्होंने आरजेडी में शामिल होकर अपनी नई सियासी पारी शुरू की है — और इसके निहितार्थ बेहद गहरे हैं.
मंडल के बाद अब कुशवाहा निशाने पर
तेजस्वी यादव की रणनीति अब और साफ हो गई है, जातीय समीकरणों की बिसात पर वे एक-एक चाल बेहद सधे अंदाज में चल रहे हैं. पहले उन्होंने मंडल आयोग की राजनीति को पुनर्जीवित कर सामाजिक न्याय का झंडा बुलंद किया, अब उनकी नजर ईबीसी और खासकर कुशवाहा समुदाय पर है. रेणु कुशवाहा का आरजेडी में आना इसी दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.
कोइरी समुदाय का क्या है बिहार आधार
रेणु कुशवाहा कुशवाहा कोइरी समुदाय से आती हैं, जो बिहार की आबादी का लगभग 4.2% हैं और 70 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर इनका असर है. खासकर पूर्वी बिहार, जैसे खगड़िया, मधेपुरा, सुपौल जैसे इलाकों में उनका जनाधार मजबूत है. यही वजह है कि आरजेडी ने उन्हें अपनी टीम में शामिल कर नीतीश कुमार के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है.
‘लव-कुश’ समीकरण पर सीधी चोट?
नीतीश कुमार की राजनीतिक ताकत लंबे समय से कुर्मी-कुशवाहा यानी ‘लव-कुश’ समीकरण पर टिकी रही है. हालांकि रेणु का प्रभाव पूरे राज्यभर में नीतीश जितना व्यापक नहीं है, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी पकड़ राजद को खास फायदा पहुंचा सकती है — खासकर उन इलाकों में, जहां कुशवाहा वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं.
तेजस्वी की यह कोशिश तभी नजर में आई जब उन्होंने मंगनी लाल मंडल को आरजेडी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया, जो खुद ईबीसी समुदाय से आते हैं. अब रेणु कुशवाहा की एंट्री ने इस रणनीति को और धार दे दी है. तेजस्वी ने साफ कहा, “कुशवाहा समाज एक कदम चलेगा, तो मैं चार कदम चलूंगा,” जो दर्शाता है कि वे अब यादव-मुस्लिम समीकरण से आगे बढ़कर बड़े सामाजिक गठजोड़ की तैयारी में हैं.
हालांकि यह तेजस्वी यादव के लिए एक अहम रणनीतिक जीत जरूर है, लेकिन बिहार की चुनावी जंग जीतने के लिए उन्हें और भी कई मोर्चों पर ध्यान देना होगा. यादव और मुस्लिम मतदाताओं के साथ-साथ ईबीसी, कुशवाहा और महादलित वोटों को एकसाथ जोड़ना कठिन लेकिन जरूरी चुनौती है. वहीं नीतीश कुमार और एनडीए की मजबूत संगठनात्मक पकड़, और बीजेपी का संसाधनों व चुनावी रणनीतियों में अनुभव, आरजेडी के लिए चुनौती बना रहेगा.