Tayeb Mehta: भारतीय कला बाजार इस समय अपने सुनहरे दौर से गुजर रहा है. मशहूर ऑर्टिस्ट तैयब मेहता की एक कृति ‘ट्रस्ड बुल’ 61.8 करोड़ रुपये में बिकी है. तैयब मेहता की ये पेंटिंग वैश्विक स्तर पर नीलामी में बिकने वाली दूसरी सबसे महंगी भारतीय पेंटिंग बन गई. अब यह अमृता शेरगिल की ‘द स्टोरी टेलर’ के बराबर है, जो 2023 में इसी कीमत पर बिकी थी. नीलाम होने वाली भारतीय कला की सबसे महंगी कृति का रिकार्ड एम.एफ. हुसैन की अनटाइटल्ड (ग्राम यात्रा) के नाम है, जो पिछले महीने न्यूयॉर्क में क्रिस्टी की नीलामी में 118 करोड़ रुपये में बिकी थी.
2 अप्रैल को मुंबई में सैफरनआर्ट की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर ये नीलामी हुई. खचाखच भरे हॉल में तैयब मेहता की बनाई बैल की ऑयल पेंटिंग ने इतनी बड़ी रकम हासिल की. सैफरनआर्ट के सीईओ और को-फाउंडर दिनेश वजीरानी ने कहा, “यह भारतीय कला नीलामी के लिए एक वैश्विक रिकॉर्ड है. यह कला बाजार की ताकत को दर्शाता है. यह और भी अधिक सार्थक हो जाता है क्योंकि यह मेहता का शताब्दी वर्ष है.”
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मुंबई में बीता अधिकांश जीवन
तैयब मेहता का जन्म 26 जुलाई, 1925 को गुजरात के खेड़ा जिले के कापड़वंज में हुआ था. उनका पालन-पोषण मुंबई के क्रावफोर्ड मार्केट में दाउदी बोहरा समुदाय में हुआ था. उन्होंने 1952 में मुंबई के जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़ाई पूरी की. वह 1947 में मुंबई में स्थापित प्रसिद्ध प्रगतिशील कलाकार समूह के सदस्य और एक प्रशिक्षित फिल्म संपादक भी थे. वह 1959 से 1964 तक लंदन में रहे और 1968 में रॉकफेलर फंड स्कॉलरशिप पर अमेरिका गए. भारतीय कला में उनके योगदान के लिए 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. उनकी कृतियां दुनिया भर के प्रमुख संग्रहालय संग्रहों में हैं. तैयब मेहता ने अपने जीवन का अधिकांश समय मुंबई में बिताया. उन्होंने जीवन भर भारतीय कला के मानक को ऊंचा उठाने का काम किया. उनका 2009 में निधन हो गया था.
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वन रूम अपार्टमेंट में रहे जिंदगी भर
आज उनके काम की कीमत करोड़ों में है, लेकिन तैयब ने अपने जीवन का अधिकांश समय संघर्ष करते हुए बिताया. इस पेंटिंग से हुई आय मेहता परिवार को जाएगी क्योंकि यह काम उनके संग्रह से था. इस महान कलाकार ने अपने जीवन के अधिकांश एक तंग एक कमरे के अपार्टमेंट में बिताया. ये अपार्टमेंट दिन में उनका स्टूडियो और रात में बेडरूम होता था. 1990 के दशक में ही वह और उनकी पत्नी सकीना लोखंडवाला में दो बेडरूम वाले घर में रहने के लिए सक्षम हो पाए. उस दौर की कई अन्य कलाकार पत्नियों की तरह, सकीना ने भी उनका साथ दिया. वह एक शिक्षिका के रूप में काम करती थीं. टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली आर्ट गैलरी माडर्न के वरिष्ठ उपाध्यक्ष किशोर सिंह ने कहा कि एक समय मुफलिसी में गुजारने वाले तैयब मेहता की गर्भवती काली और प्रतिशोधी दुर्गा जैसी कृतियां अब चौंका देने वाली रकम में बिकती हैं.
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हमेशा कला के प्रति सच्चे रहे
किशोर सिंह ने कहा, “ लेकिन तैयब मेहता के बारे में बात करते हुए सिर्फ उनकी कमाई की बात करना उनके व्यक्तित्व और उनके आदर्शों के साथ न्याय नहीं करता. किशोर सिंह ने दिल्ली के गैलरिस्ट अरुण वढेरा का एक किस्सा सुनाया जो मेहता के करीबी थे. किशोर सिंह ने कहा, “उनके लिए पेंटिंग की ताकत, उसकी कीमत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण थी. अरुण के ऑफिस में उनकी एक पेंटिंग टंगी हुई थी. एक दिन मेहता उसे ले गए, लेकिन बाद में उसकी जगह कोई और पेंटिंग रख दी. जब अरुण ने पूछा, तो उन्होंने कहा कि उन्होंने पिछली पेंटिंग को फाड़ दिया था, क्योंकि वे उससे खुश नहीं थे. तैयब भले ही बहुत ज्यादा पैसे वाले भले न रहे हों, लेकिन वह अपनी कला के प्रति सच्चे रहे.”
कुछ दृश्य उन्हें जीवन भर सताते रहे
टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार मेहता की सशक्त कल्पना हमेशा उनके निजी जीवन में निहित थी. उनके कैनवस उनके आस-पास की उथल-पुथल को दर्शाते थे- विभाजन की भयावहता, एक नए स्वतंत्र भारत के संघर्ष और 1992 के मुूंबई दंगों की हिंसा. एक इंटरव्यू में, उन्होंने विभाजन की अपनी यादें ताजा की थीं. उन्होंने बताया था, “उस समय, मैं मोहम्मद अली रोड पर रहता था, जो वस्तुतः एक मुस्लिम बस्ती थी. मुझे याद है कि मैंने खिड़की के नीचे सड़क पर एक युवक की हत्या होते हुए देखी थी. भीड़ ने उसे पीट-पीट कर मार डाला, उसके सिर को पत्थरों से कुचल दिया.” ये दृश्य उन्हें जीवन भर सताते रहे. जैसे कि मुंबई के एक बूचड़खाने में बैलों को वध के लिए ले जाते हुए देखना. मेहता ने कहा, “बैल उनके लिए कई स्तरों पर महत्वपूर्ण था. जिस तरह से वे जानवर के पैरों को बांधते हैं और उसे काटने से पहले बूचड़खाने के फर्श पर फेंक देते हैं… आपको लगता है कि कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण खो गया है.”
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तैयब मेहता के करीबी कहते हैं कि वे अपनी कला के प्रति इतने समर्पित थे कि पूर्ण रूप से संतुष्ट न होने तक अपनी पेंटिंग्स को कला दीर्घाओं में भेजने से हिचकते थे. उनके अन्दर सृजनात्मकता की एक जिद थी जिसकी खातिर उन्होंने कई कैनवस नष्ट कर दिए. वे मानते थे कि किसी भी कला को सार्वजनिक होने से पहले कलाकार को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की उसमें कोई खोट नहीं रह गया हो.