डायबिटीज डायग्नोसिस का डिजिटल डॉक्टर है AI

10 hours ago
डायबिटीज डायग्नोसिस का डिजिटल डॉक्टर है AI

By: Inextlive Desk | Updated Date: Wed, 12 Nov 2025 20:15:10 (IST)

डायबिटीज सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि एक साइलेंट एपिडेमिक है जो करोड़ों लोगों की लाइफस्टाइल को अंदर से बदल रही है। आज जब हेल्थकेयर पूरी तरह डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन से गुजर रहा है, तो Artificial Intelligence (AI) इस जंग में नया &डिजिटल डॉक्टर&य बनकर सामने आया है। ये इंसान की आंखों से छिपे पैटर्न्स पकड़ लेता है और बीमारी के आने से पहले ही अलर्ट दे देता है।

नई दिल्ली(इंटरनेट डेस्क) विशाल यादव। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन डायबिटीज को छह कैटेगरीज में क्लासिफाई करता है। Type 1, Type 2, हाइब्रिड फॉर्म्स, जेस्टेशनल डायबिटीज, अदर स्पेसिफिक टाइप्स और अनक्लासिफाइड डायबिटीज। इतने complex स्पेक्ट्रम में accurate डायग्नोसिस बहुत मुश्किल होता है। यहीं AI ने साइलेंट हीरो की तरह एंट्री ली है।

मशीन लर्निंग मॉडल्स अब हजारों डेटा पॉइंट्स एनालाइज करके मेटाबॉलिक पैटर्न्स पकड़ लेते हैं, जिन्हें इंसान मिस कर देता है। स्टडीज बताती हैं कि एआई-बेस्ड मॉडल्स सिंपटम्स आने से 18 महीने पहले तक डायबिटीज रिस्क प्रेडिक्ट कर सकते हैं। Type 1 के लिए बने एआई मॉडल्स की एक्यूरेसी 80–92% तक रही, जबकि Type 2 के लिए एल्गोरिद्म्स ने लगभग 79% तक सही प्रेडिक्शन दिया।

नजर बचाने का डिजिटल शील्ड

डायबिटीज का सबसे बड़ा खतरा होता है डायबिटिक रेटिनोपैथी, यानी रेटिना के ब्लड वेसल्स का डैमेज। यही ब्लाइंडनेस का प्रमुख कारण बनता है। 2018 में FDA ने IDx-DR नामक ऑटोनॉमस एआई सिस्टम को अप्रूव किया जो सिर्फ दो रेटिनल फोटोज लेकर 60 सेकंड में रिजल्ट दे देता है। स्टडीज ने दिखाया कि एआई स्क्रीनिंग से डायबिटिक पेशेंट्स का 100% आई एग्जाम कम्प्लीशन हुआ, जबकि पारंपरिक रिफरल सिस्टम में ये सिर्फ 22% था। University of Liverpool का AI-Sight system 1।6 मिलियन इमेजेज पर trained है और डिजीज की सीवियरिटी को रैंक करता है। वहीं स्मार्टफोन-बेस्ड टूल्स जैसे EyeArt ने 95% सेंसिटिविटी दिखाई है। जिससे गांवों तक बिना स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के भी स्क्रीनिंग संभव हो गई है।

AI और पर्सनलाइज्ड ट्रीटमेंट का युग

AI अब सिर्फ डायग्नोसिस तक सीमित नहीं है। Continuous Glucose Monitoring (CGM) डिवाइसेज ग्लूकोज लेवल्स को लगातार ट्रैक करते हैं और AI एल्गोरिद्म्स इंसुलिन डिलिवरी को अपने आप एडजस्ट कर देते हैं। Eversense CGM जैसे सिस्टम्स 90 दिन तक मॉनिटरिंग करते हैं बिना बार-बार नीडल स्टिक के। मशीन लर्निंग डॉक्टर्स को पेशेंट-स्पेसिफिक ड्रग और इंसुलिन डोज तय करने में मदद कर रहा है। एआई-ड्रिवन ऐप्स जैसे FoodLens खाने की फोटो एनालाइज करके उसका न्यूट्रिशन ब्रेकअप देती हैं, जबकि स्मार्ट इंसुलिन पेंस और हाइब्रिड क्लोज्ड-लूप सिस्टम्स रियल-टाइम डोज ट्रैकिंग आसान बनाते हैं।

10 साल पहले डायबिटीज का लगेगा पता

सबसे बड़ा ब्रेकथ्रू आया है AIRE-DM सिस्टम के रूप में, जिसे Imperial College London ने बनाया है। ये सिंपल ECG टेस्ट के जरिए Type 2 diabetes का रिस्क 10 साल पहले तक प्रेडिक्ट कर सकता है। 1।2 मिलियन ECG डेटा पर ट्रेंड ये मॉडल 70% एक्यूरेसी से फ्यूचर डायबिटीज रिस्क बताता है। रिसर्चर्स का कहना है कि अगर इसमें एज, बीपी और जेनेटिक इन्फो शामिल की जाए, तो प्रेडिक्शन और भी सटीक हो सकता है।

भारत की हेल्थ टेक रिवोल्यूशन

AIIMS Delhi ने विकसित किया MadhuNetraAI। एक AI सिस्टम जो सेकंड्स में डायबिटिक रेटिनोपैथी डिटेक्ट कर लेता है। इसी से बरेली के रामनाथ प्रजापति की आंखें समय रहते बच पाईं। NIT Rourkela के साइंटिस्ट्स ने बनाया प्रेडिक्टिव AI मॉडल जो लाइफस्टाइल, डाइट और एक्टिविटी डेटा एनालाइज करके बिना लैब टेस्ट के ग्लूकोज लेवल्स प्रेडिक्ट करता है। रूरल इंडिया के लिए एक गेम चेंजर। Rajasthan Health Mission ने लॉन्च किया मधुनेट्र डीआर-एआई इनिशिएटिव, जो रेटिनोपैथी स्टेजेस को एक्यूरेटली क्लासिफाई करता है और रिमोट पेशेंट्स तक स्क्रीनिंग पहुंचाता है। IIT Madras के इंजीनियर्स ने बनाया रीयूजेबल माइक्रो-नीडल सेंसर पैच, जो पेनलेस ग्लूकोज डिटेक्शन करता है। अब इंस्टिट्यूट सन लाइफ ग्लोबल सॉल्यूशंस के साथ जेनेटिक मार्कर्स डिटेक्ट करने पर काम कर रहा है ताकि डायबिटीज रिस्क को 10 साल पहले तक प्रेडिक्ट किया जा सके।
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