Last Updated:November 25, 2025, 16:21 IST
हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट का रुख साफ है कि कोर्ट खुद से ‘विशेष कानून’ नहीं बनाएगा. हर घटना पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी संभव नहीं. याचिकाकर्ता को कानून व्यवस्था और हाई कोर्ट का सहारा लेना चाहिए. नफरती बयानबाजी गंभीर है, लेकिन शिकायतें ‘चयनात्मक’ नहीं हो सकतीं.

देश में बढ़ती नफरती बयानबाजी को लेकर लगातार उठ रही चिंताओं के बीच सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट कर दिया कि वह न तो नया कानून बनाएगा और न ही पूरे देश में हर छोटी घटना पर निगरानी रख सकता है. जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि देश में पहले से ही कानून, पुलिस व्यवस्था और हाईकोर्ट मौजूद हैं, जिनके जरिये ऐसी शिकायतों का निपटारा किया जा सकता है. ऐसे में हम नया कानून नहीं बनाएंगे, हर घटना की निगरानी भी संभव नहीं.
पीठ एक ऐसी याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें कथित तौर पर एक समुदाय के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार की अपील का मुद्दा उठाया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा, हम इस याचिका के बहाने कानून बनाने नहीं जा रहे. भरोसा रखिए, हम देश के किसी भी कोने में होने वाली हर छोटी घटना पर भी निगरानी रखने के पक्ष में नहीं हैं. हाई कोर्ट हैं, पुलिस स्टेशन हैं, विधायी उपाय मौजूद हैं. इन्हें ही काम करना चाहिए. इस टिप्पणी से यह साफ संकेत मिलता है कि सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता कि उसे ‘नेशनल मॉनिटरिंग बॉडी’ की तरह हर विवाद या बयानबाजी के मामले में हस्तक्षेप करना पड़े.
याचिकाकर्ता को हाईकोर्ट जाने की सलाह
सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले याचिकाकर्ता को सलाह दी कि वह अपनी शिकायत संबंधित हाई कोर्ट में ले जाए. पीठ ने कहा, हम पूरे देश में होने वाली हर घटना की निगरानी कैसे कर सकते हैं? आप संबंधित प्राधिकरण के पास जाएं, अगर वे कार्रवाई न करें तो हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएं. याचिकाकर्ता पक्ष ने दलील दी कि उन्होंने एक लंबित रिट याचिका में सिर्फ ‘अतिरिक्त उदाहरण’ शामिल किए हैं, जिनमें आर्थिक बहिष्कार जैसे खतरनाक संदेशों का जिक्र है.
‘कुछ नेता भी दे रहे ऐसे बयान’
जब अदालत ने कहा कि ये अपीलें कुछ व्यक्तियों की ओर से आ रही हैं, तब याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कुछ जनप्रतिनिधि भी ऐसी बयानबाजी कर रहे हैं. वकील ने कहा कि प्रशासन कार्रवाई नहीं कर रहा, इसलिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि सर्वोच्च अदालत पहले ही आदेश दे चुकी है कि अगर नफरती भाषण पर कार्रवाई नहीं होती, तो पुलिस को सुओ-मोटो FIR दर्ज करनी चाहिए, अन्यथा अवमानना का मामला बन सकता है.
सॉलिसिटर जनरल की आपत्ति
इस सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी हस्तक्षेप किया. उन्होंने कहा, पब्लिक इंटरेस्ट किसी एक धर्म तक सीमित नहीं हो सकता. हर धर्म में ऐसे भाषण दिए जा रहे हैं. मैं अपने मित्र (याचिकाकर्ता) को वे भी उपलब्ध करा दूंगा. फिर वे सभी धर्मों के मामलों को शामिल करके सार्वजनिक हित में कदम उठाएं. मेहता ने कठोर शब्दों में कहा, कोई भी नफरती भाषण नहीं दे सकता, यह मेरी स्पष्ट राय है. लेकिन शिकायत करते समय किसी भी व्यक्ति को चयनात्मक नहीं होना चाहिए.
अदालत ने कहा-कानून मौजूद हैं
पीठ ने याचिकाकर्ता को फिर दोहराया कि देश की न्यायिक व्यवस्था में इसके लिए पर्याप्त तंत्र मौजूद है. जिस राज्य में समस्या है, आप वहीं के हाई कोर्ट में जाएं. अगर मामला जनहित का है, तो हाई कोर्ट कार्रवाई करेगा ही. इससे पहले याचिकाकर्ता ने 2022 के एक आदेश का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने तीन राज्यों को नफरती भाषण देने वालों पर सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए थे. उन्होंने एक और उदाहरण देते हुए कहा कि असम के एक मंत्री ने बिहार चुनाव के संदर्भ में ऐसी टिप्पणी की थी, जिसे 1989 के भागलपुर दंगों से जोड़कर देखा जा रहा है. वकील का दावा था कि यह भी ‘हेट स्पीच’ के दायरे में आता है. पीठ ने कहा कि इस मामले में सभी लंबित आवेदनों को 9 दिसंबर को एक साथ सुना जाएगा.
Mr. Gyanendra Kumar Mishra is associated with hindi.news18.com. working on home page. He has 20 yrs of rich experience in journalism. He Started his career with Amar Ujala then worked for 'Hindustan Times Group...और पढ़ें
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Location :
Delhi,Delhi,Delhi
First Published :
November 25, 2025, 16:21 IST

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