Last Updated:May 12, 2025, 16:37 IST
Bihar Chunav: बिहार चुनाव 2025 में नीतीश कुमार की सत्ता चुनौतीपूर्ण है. विकास, महिला समर्थन और NDA की ताकत उनके पक्ष में है, जबकि बेरोजगारी, गठबंधन अस्थिरता और तेजस्वी यादव की चुनौती उनके खिलाफ है. क्या नीतीश क...और पढ़ें

बिहार चुनाव के बाद नीतीश कुमार की कुर्सी बचेगी या जाएगी?
हाइलाइट्स
नीतीश कुमार की विकास नीतियों ने उन्हें 'सुशासन बाबू' की छवि दी.महिलाओं का समर्थन नीतीश की प्रो-इनकंबेंसी को बल देता है.बेरोजगारी और गठबंधन अस्थिरता एंटी-इनकंबेंसी को बढ़ाती हैं.पटना. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जेडीयू एक बार फिर से सत्ता की दौड़ में आई गई है. लेकिन दो दशकों से सत्ता में रहे नीतीश कुमार के प्रति लोगों की राय एंटी-इनकंबेंसी और प्रो-इनकंबेंसी के बीच झूल रही है. सीएम नीतीश की हाल के वर्षो में विकास नीतियां, सामाजिक इंजीनियरिंग और बार-बार पाला बदलने की रणनीति ने उनके पक्ष और विपक्ष में कई तर्क तैयार कर दिए हैं. आरजेडी के सीएम फेस तेजस्वी यादव से नीतीश कुमार को कई मोर्चों पर लड़ाई लड़नी पड़ रही है. जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर और एनडीए के भीतर ही बीजेपी के सीएम फेस सम्राट चौधरी भी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार की सीएम की कुर्सी बचेगी या जाएगी? क्या सीएम नीतीश की लोकप्रियता घटी है या पहले की तरह बरकरार है? जानें वो 10 बातें जो नीतीश के पक्ष और विपक्ष में जाते हैं.
1- विकास और सुशासन
नीतीश ने 2005 में लालू-राबड़ी के ‘जंगल राज’ को समाप्त कर बिहार को विकास के पथ पर लाया. सड़कों का जाल तकरीबन 2,09,549 किमी, राज्य में बिजली आपूर्ति 20-22 घंटे और कानून-व्यवस्था में सुधार ने उन्हें ‘सुशासन बाबू’ की छवि दी. यह प्रो-इनकंबेंसी का मजबूत आधार है.
2- महिलाओं का समर्थन
नीतीश की शराबबंदी, पंचायतों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण और स्कूलगामी लड़कियों के लिए साइकिल योजना ने महिलाओं के बीच उनकी लोकप्रियता बनाए रखी है. यह उनकी प्रो-इनकंबेंसी को बल देता है.
3- सामाजिक इंजीनियरिंग
नीतीश की अति पिछड़ा वर्ग (EBC, 36%) और गैर-यादव OBC समुदायों जैसे कोयरी-कुरमी पर आज भी पकड़ मजबूत है. उनकी गठबंधन रणनीति ने EBC और OBC वोटों को NDA के पक्ष में बनाए रखा.
4- स्वास्थ्य और नेतृत्व की चिंता
नीतीश की उम्र 74 वर्ष हो गई है और हाल के स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, जैसे बिहार बिजनेस कनेक्ट 2024 में अनुपस्थिति, उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाते हैं. यह एंटी-इनकंबेंसी को बढ़ावा देता है.
5- गठबंधन की अस्थिरता
नीतीश ने पांच बार गठबंधन बदले, जिसके कारण उन्हें ‘पलटू राम’ कहा जाता है. यह विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है और कुछ वोटरों में असंतोष पैदा करता है.
6- वक्फ संशोधन बिल विवाद
नीतीश के वक्फ संशोधन बिल समर्थन के बाद पांच मुस्लिम नेताओं ने जेडीयू छोड़ दिया. इससे मुस्लिम वोटरों में नाराजगी बढ़ी, जो पहले नीतीश को समर्थन देते थे.
7- बेरोजगारी और पलायन
बिहार में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय और उच्च बेरोजगारी दर लगभग 45% नीतीश की सबसे बड़ी कमजोरी है. युवा और शिक्षित वर्ग में असंतोष एंटी-इनकंबेंसी को बढ़ाता है.
8- प्रशांत किशोर और नई चुनौती
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी नीतीश के खिलाफ युवाओं और मुस्लिम वोटरों को लामबंद कर रही है. उनकी ‘नीतीश थके हुए और मानसिक रूप से रिटायर्ड’ वाली टिप्पणी ने विपक्षी नैरेटिव को मजबूत किया.
9- RJD का MY-BAAP मॉडल
आरजेडी की MY-BAAP रणनीति (मुस्लिम-यादव-बहुजन-आधी आबादी-पिछड़े) ने नीतीश के कुरमी-कोइरी गठजोड़ को तोड़ दिया है. लोकसभा चुनाव 2024 में आरजेडी की औरंगाबाद जीत इसका उदाहरण है.
10- प्रगति यात्रा और NDA समर्थन
नीतीश की प्रगति यात्रा और BJP का समर्थन जैसे, ‘2025 में नीतीश ही’ का नारा उनकी स्थिति को मजबूत करता है. एनडीए की एकता और मोदी फैक्टर प्रो-इनकंबेंसी को बढ़ाते हैं.
कुल मिलाकर नीतीश कुमार के प्रति बिहार की जनता का रुख मिश्रित है. उनकी विकास उपलब्धियां, महिला और EBC वोट बैंक का समर्थन और NDA की ताकत प्रो-इनकंबेंसी को बल देती है. हालांकि, बेरोजगारी, स्वास्थ्य चिंताएं, गठबंधन अस्थिरता और आरजेडी-जन सुराज की चुनौतियां एंटी-इनकंबेंसी को बढ़ाती हैं. सी वोटर सर्वे में केवल 18% लोगों ने नीतीश को सीएम के रूप में चुना, जबकि 41% ने तेजस्वी यादव को प्राथमिकता दी. फिर भी, नीतीश की सामाजिक इंजीनियरिंग और अनुभव उन्हें मजबूत दावेदार बनाए हुए है.
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