सीट बटबारे को लेकर पंजाब में किसी भी दल में सहमति नहीं बन पाई है.
पंजाब की सभी 13 सीटों पर सातवें चरण में 1 जून को मतदान होगा. यहां चुनाव अभी दूर है, लेकिन अभी तक सियासत में उबाल आने लगा है. नेता लोग अपने लिए सुरक्षित ठिकाना तलाश रहे हैं. राजनीति दलों में भी खींचातान मची हुई है. किसी भी दल आपसी तालमेल नहीं होने के कारण पंजाब में सभी दल ‘एकला चलो’ की राह पर अपने ही दम पर चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोक रहे हैं. बीजेपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल, समेत सभी दल स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रहे हैं. सभी दलों के अकेले चुनाव लड़ने से इस चुनाव में चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा. पंजाब में अभी तक आम आदमी पार्टी को छोड़कर किसी भी दल ने अपने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है. आप ने भी 13 में 8 उम्मीदवारों के नामों का ऐलान किया है.
पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है. अन्य प्रदेशों में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन हैं, लेकिन पंजाब में दोनों ही पार्टियां आमने-सामने डटी हैं. यही हाल अन्य दलों का है. भारतीय जनता पार्टी ने भी पंजाब में अकेले लोकसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की है. यहां पिछला चुनाव बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल ने मिलकर लड़ा था, लेकिन इस बार तालमेल नहीं बैठ पाया.
भाजपा की पंजाब इकाई के प्रमुख सुनील जाखड़ ने कहा कि बीजेपी पंजाब में अकेले चुनाव लड़ने जा रही है. उन्होंने कहा कि भाजपा ने लोगों और पार्टी कार्यकर्ताओं से मिले फीडबैक के बाद यह फैसला लिया है.
बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल ने 1996 में गठबंधन बनाया था. 2019 में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल पंजाब में दो-दो लोकसभा सीट जीती थीं. अकाली दल ने कृषि कानूनों को लेकर सितंबर 2020 में बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से संबंध तोड़ लिए थे.
क्यों नहीं हुआ बीजेपी-शिअद का तालमेल
अकाली दल पिछली बार की 3 सीटों की तुलना में बीजेपी को 5 सीटें देना चाहती थी, लेकिन बीजेपी 6 सीटों से कम पर तैयार नहीं थी. इसके अलावा अकाली दल चाहता था कि किसानों के मुद्दे पर केंद्र सरकार जल्द फैसला ले. इनके अलावा शिअद ने बीजेपी के सामने शर्त रखी कि असम के जेल में बंद अमृतपाल पर लगे एनएसए को हटाया जाए. लेकिन इन मुद्दों पर बीजेपी तैयार नहीं हुई और गठबंधन नहीं हो सका.
गठबंधन नहीं होने पर शिरोमणि अकाल दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि उनकी पार्टी के लिए संख्या बल से अधिक महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं. बादल ने कहा कि 103 साल पुरानी पार्टी शिरोमणि अकाली दल की जिम्मेदारी पंजाब और कौम की सुरक्षा, शांति एवं भाईचारा बनाये रखने की है.
बात 2019 के चुनाव की
साल 2019 में दोनों बीजेपी और शिअद ने मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था. 13 में से 10 सीटों पर अकाली दल ने चुनाव लड़ा और तीन सीटों पर बीजेपी ने प्रत्याशी खड़े किए. दोनों ही दलों को 2-2 सीटों पर जीत मिली. बीजेपी के खाते में गुरुदासपुर (सनी देओल) और होशियारपुर सीट (सोम प्रकाश) आई थीं. 10 सीटों पर शिअद को 27.76 प्रतिशत और बीजेपी को तीन सीटों पर 9.63 प्रतिशत वोट मिले थे.
इन चुनावों में कांग्रेस ने 8 सीटों पर जीत हासिल की थी. आम आदमी पार्टी-आप के खाते में संगरूर सीट आई थी.
2022 के विधानसभा चुनाव में दोनों ही दल अलग-अलग मैदान में उतरे. 117 सीटों वाली पंजाब विधानसभा के लिए अकाली दल ने 97 उम्मीदवार उतारे. उसे 22 प्रतिशत वोट के साथ सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत मिली.बीजेपी ने 73 सीटों पर चुनाव लड़ा और 10 प्रतिशत से अधिक वोट प्रतिशत के साथ दो सीटों पर जीत हासिल की.
कांग्रेस के लिए चुनौती
कभी पंजाब पर लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस के सामने राज्य में अस्तित्व बचाने का संकट खड़ा हो गया है. कांग्रेस के नेता और सांसद पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. मंगलवार, 26 मार्च को लुधियाना से सांसद रवनीत सिंह बिट्टू ने बीजेपी में शामिल हो गए. बिट्टू पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते हैं. वे लगातार तीन बार से सांसद हैं. रवनीत सिंह बिट्टू ने 2019 और 2014 लोकसभा चुनाव में लुधियाना सीट पर बड़े अंतर से जीत हासिल की थी. इससे पहले 2009 के चुनाव में वे अनंदपुर साहेब सीट से सांसद चुने गए थे. बिट्टू का बीजेपी में जाना कांग्रेस के लिए बड़ा नुकसान साबित हो सकता है.
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FIRST PUBLISHED :
March 27, 2024, 14:36 IST