पृथ्वी का साइज नहीं बढ़ रहा इसिलए Finite Earth के लिए करें Finite Consumption

1 day ago

नई दिल्ली (इंटरनेट डेस्क) अदिति शुक्ला । फिलहाल धरती में करीब 8 बिलियन की आबादी है और अनुमान है कि साल 2037 तक ये बढ़कर 9 बिलियन के आस पास हो जाएगी, यहां आबादी गिनाने का मकसद सिर्फ इतना है कि जितने लोग उतना ही रिसोर्सेज का यूज। साल दर साल आबादी तो बढ़ती रहेगी पर हमारे रिसोर्सेज फाइनाइट हैं। यानि इनकी एक सीमा है जिसके बाद इनका खत्म होना तय है, ऐसे में वक्त है कि जरूरी है की नेचर कंजर्वेशन के लिए हम इन मामलों को सिरयसली लेना शुरू कर दें। इसके लिए हमें कुछ नया नहीं करना होगा बस चाहिए वही बैक टू बेसिक वासी सोच।


बढ़ रहा है ग्लोबल कंजप्शन

- वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट के मुताबिक 1970 से अब तक नैचुरल रिसोर्स का ग्लोबल एक्सट्रैक्शन तीन गुना से भी ज्यादा बढ़ चुका है। पिछले 50 सालों में मटेरियल यूज तीन गुना से ज्यादा बढ़ा है और अगर यही ट्रेंड चलता रहा, तो 2060 के तक इसमें 60% और इजाफा होने की उम्मीद है। आज की तारीख में पूरी दुनिया हर साल 100 बिलियन टन से ज्यादा नैचुरल रिसोर्सेज यूज कर रही है जिसमें फॉसिल फ्यूल्स, मेटल्स, मिनरल्स, बायोमास और वॉटर शामिल हैं। अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा, तो 2050 तक ये आंकड़ा 170-190 बिलियन टन तक पहुंच सकता है।

- ये जो जबरदस्त कंजंप्शन बढ़ रहा है, उसका सबसे बड़ा हिस्सा हाई-इनकम और अपर-मिडल-इनकम कंट्रीज से आता है। ये देश प्रति व्यक्ति कम-इनकम कंट्रीज के मुकाबले 6 गुना ज्यादा मटेरियल्स यूज करते हैं और इसी वजह से इनका एनवायरनमेंट पर इम्पैक्ट भी कहीं ज्यादा होता है।

- रिसोर्स यूज के इस बढ़ते ट्रेंड के कई नेगेटिव इफेक्ट्स हैं जैसे कि बायोडायवर्सिटी लॉस, वॉटर स्ट्रेस, क्लाइमेट चेंज, ग्रीनहाउस गैस एमिशन, पॉल्यूशन और इकोसिस्टम डिग्रेडेशन। रिसोर्स का एक्सट्रैक्शन और प्रोसेसिंग अकेले ही ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस एमिशन का आधे से ज्यादा और बायोडायवर्सिटी लॉस और वॉटर स्ट्रेस का 90% कारण बनता है।

- दूसरी तरफ, ग्लोबली रीसाइक्लिंग रेट्स बहुत ही कम हैं, 10% से भी नीचे। और चिंता की बात ये है कि ये रेट्स और भी गिर रहे हैं, जिससे रिसोर्स डिप्लीशन और एनवायरनमेंटल प्रेशर और ज़्यादा बढ़ रहा है।

ऐसे करें कम कंजप्शन

- फास्ट नहीं फैशन को करें थोड़ा स्लो

मार्केट में कई फास्ट फैशन ब्रांड हैं जिनके आय दिन नए कलेक्शन आते रहते हैं, लेकिन जितना हो सके इस फास्ट फैशन के जाल में न फंसे। कपड़ों को तब तक पहले जब तक वह पूरी तरह से यूज न हो जाएं। आउटडेटेड होने का डर अपने मन से हटाएं और आलिया भट्ट की तरह प्राउडली क्लॉथ्स को रिपीट करें।

- स्लो लिविंग अपनाएं

जीवन को धीमी गति से जीने की कोशिश करें। इसका मतलब बिलकुल नहीं है कि आप अपने काम काज को छोड़ दें पर लाइफ में सब कुछ इंस्टेंट पाने की आदत में लिमिट लगाएं। समान तभी ले जब उसकी जरूरत महसूस हो।

- सेकेंड हैंड आइटम्स खरीदें

कोरिया जर्मनी जैसे देशों में अक्सर जब फर्नीचर या कोई बड़ा होम प्रोडक्ट लोग यूज नहीं करते तो उसे सड़कों पर छोड़ जाते हैं जहां से दूसरे लोग उन्हें ले जाते हैं। आप भले ही ऐसा कुछ न करें लेकिन सस्टेनेबिलिटी इनफ्लूएंसर पंक्ति पांडे की तरह फर्नीचर के मामले में सेकेंड हैंड शॉपिंग कर सकते हैं।

- रिड्यूस रीयूज और रिसाइकल अपनाएं

सस्टेनेबिलिटी और रिसोर्सेज कंजर्वेशन का सबसे बड़ा और अहम फंडा है 3 R फॉलो करना। यानि प्रोडक्ट कंजप्शन कम करें अगर रियूज करने लायक है तो फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाएं वरना रिसाइकल करने के लिए भेजें।

Finite Earth के लिए हो Finite Consumption

'आज के समय में खासकर आज नेचर कंजर्वेशन डे के मौके पर 'Finite Earth Movement' पर बात करना बेहद जरूरी है। मैं पिछले पांच सालों से Energy Sauraj Yatra के जरिए पूरे देश में घूम रहा हूं। इस दौरान लाखों लोगों से मिलना हुआ है, और मैंने क्लाइमेट चेंज को लेकर बहुत कुछ सीखा है – कैसे मौसम और पर्यावरण दिन-ब-दिन बद से बदतर हो रहे हैं, और क्यों हमारी मौजूदा पॉलिसी मेकिंग, टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट और इनोवेशन के सारे टूल्स, जो हम यूज कर रहे हैं, वो फेल हो रहे हैं। इन्हीं सब एक्सपीरियंस और एक्सपेरिमेंट्स से हमने एक बहुत सिंपल, इंपैक्टफुल और ड्यूरेबल इनिशिएटिव शुरू किया है 'Finite Earth Movement'।

इस मूवमेंट का लॉजिक एकदम क्लियर है कि साइंस, टेक्नोलॉजी और इकॉनॉमी तो आगे बढ़ सकती हैं, लेकिन पृथ्वी का साइज नहीं बढ़ सकता। ना मिट्टी बढ़ सकती है, ना खनिज, ना पेड़, ना पानी – सब कुछ लिमिटेड है। लेकिन फिर भी हम क्या कर रहे हैं? ज्यादा प्रोडक्शन, ज्यादा कंजंप्शन, हर चीज का ओवर यूज। जब धरती फिक्स साइज की है, रिसोर्सेज फिक्स हैं, तो फिर कपड़ों की अलमारी कैसे बढ़ रही है? गाड़ियों का साइज क्यों बढ़ रहा है? हमारे घरों में इतना ज्यादा सामान क्यों भरता जा रहा है? सच्चाई ये है कि जब धरती सीमित है, तो हमारा उपभोग भी सीमित होना चाहिए। यही सबसे बड़ा मैसेज है जो मैं आम जनता तक पहुंचाना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि लोग इस मूवमेंट का हिस्सा बनें और सॉल्यूशन का पार्ट बनें।

कंजंप्शन कम करना भी क्लाइमेट चेंज को सुलझाने का एक बहुत बड़ा उपाय है। क्योंकि हर चीज के कंजंप्शन के साथ एक कार्बन एमिशन जुड़ा होता है। जितना ज्यादा आप कंजंप्शन करेंगे, उतना ज्यादा प्रदूषण होगा और हवा, पानी, मिट्टी सब खराब होगी। इसलिए हमारा टैगलाइन है, 'Finite Earth, Finite Consumption।'

और सबसे अच्छी बात ये है कि कंजंप्शन कम करने के लिए किसी टेक्नोलॉजी की जरूरत नहीं, ना पैसे की, ना टाइम की। हर कोई कर सकता है, चाहे वो अमीर हो या गरीब, बच्चा हो या बुजुर्ग, अमेरिका में हो या अफ्रीका में। इसी सोच के साथ हमने एक बड़ा टारगेट रखा है – आने वाले तीन सालों में 1 बिलियन लोग इस मूवमेंट से जुड़ें। एक अरब लोगों को जलवायु संरक्षण की दिशा में एक्शन में लाना हमारा उद्देश्य है। मुझे उम्मीद है कि Dainik Jagran Inext जैसे जरूरी प्लेटफॉर्म्स की मदद से हम इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएंगे। हमें मिलकर इस धरती को बचाना है, क्योंकि ये हमारा एकमात्र घर है। तो आइए सब मिलकर Finite Earth के लिए Finite Consumption करने की ठानें।'

- DR. Chetan Singh Solanki
Indian scientist and social entrepreneur

Read Full Article at Source