बस एक प्‍वाइंट पर रुका सबकुछ.,अब तक ईरान-इजरायल के युद्ध न होने की ये है वजह

1 month ago

अमेरिका ने गाइडेड मिसाइलों वाली पनडुब्बी, F-22  फाइटरों से लैस युद्धपोत मध्य पूर्व में तैनात कर दिया है. क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है. अमन की दुआ करने वालों को भी समझ में नहीं आ रहा है कि आगे क्या होगा. इस पर कयास लगाए जा रहे हैं कि ईरान आखिरकार खामोश क्यों है. ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खुमैनी ने कसम भी खा ली थी. फिर हमला क्यों रुका हुआ है. इसके पीछे के कारण समझने के लिए पूरे हालात पर नजर डालनी होगी.

एक समय ऐसा लग रहा था कि ईरान यलगार हो, बोल कर हमला किए ही जा रहा है, लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि ईरान में सुप्रीम लीडर होने के बाद भी इस देश में एक सीमा तक लोकतंत्रिक व्यवस्था ही है. सुप्रीम लीडर मुल्क का मुखिया होने के साथ साथ धर्म का भी प्रमुख होता है. मुल्क में चुनाव भी होता है, लेकिन उस पर ‘गार्जियन काउंसिल’ नजर रखता है. वहीं राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार तय करता है. उन्हें ही उम्मीदवार बनाया जाता है जो सुप्रीम लीडर की सोच के साथ रहते हैं. हार-जीत का फैसला भी सुप्रीम लीडर के इशारों से ही होता है. 18 साल से ऊपर वाले सभी चुनाव में वोट डालते हैं.

ईरानी सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई की भूमिका
इस लिहाज से वहां एक अलग तरह का लोकतंत्र है. चुनाव होने के बाद भी कुर्सी तक वही पहुंच पाता है जिसके कंधों पर सुप्रीम लीडर के हाथ हों. ऐसे में अगर सुप्रीम लीडर ने कुछ तय कर लिया तो उसे पलट पाना बहुत मुश्किल होता है. फिर भी बताया जा रहा है कि इस बार के राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियान ने अयतुल्ला खुमैनी को सीधे जंग के खतरों से आगाह किया. इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्टों को सही माना जाया तो उन्होंने खुमैनी का बताया कि बदले हालात में इजरायल पर सीधे हमला करने से ईरान को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है. ये भी कहा जा रहा है कि ये सब कुछ उन्होंने सुप्रीम लीडर को अपनी व्यक्तिगत हैसियत में ही समझाया.

बताया जा रहा है कि बाहर निकल कर अलग और तल्ख रिएक्शन देने वाले खुमैनी ने अपने राष्ट्रपति की बातें ध्यान से सुनी लेकिन उस पर कोई हां या ना नहीं कहा. फिर भी अभी तक हमला न होने के बाद कहा जा सकता है कि खुमैनी ने मसूद की बात एक हद तक मान ली है.

राष्टपति मसूद पेजेशकियान की चिंता
ध्यान रखने वाली बात है कि हमास नेता हानिया और एक अन्य हमास ओहदेदार की हत्यायों के बाद खुमैनी और मसूद दोनों ने इसका बदला लेने की बात कही थी. मसूद पहले के राष्ट्रपति इब्राहिम रइसी की हेलीकॉप्टर हादसे में मारे जाने के बाद राष्ट्रपति बनाए गए थे. 31 जुलाई को मसूद के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने गए हानिया को मार ईरान में ही मार दिया गया था. माना जा रहा था कि हानिया का कत्ल इजरायल के मोसाद ने किया है. इसी के बाद से ईरान ने इजरायल को हमले की धमकी दी थी.

लामबंदी में कौन किधर
इजरायल ने भी इस धमकी को गंभीरता से लिया और लामबंद शुरु हो गई. अभी तक जो समीकरण दिखते हैं उसमें इजरायल के साथ अमेरिका और पश्चिमी दुनिया के दूसरे बड़े देश हैं. लेकिन पिछले अप्रैल में इजरायल का दुश्मन माने जाने वाले जार्डन ने भी ईरान की ओर से दागी गई मिसाइलों को जिस तरह से निशाना बनाया वो हैरान करने वाला था. ऐसी स्थिति दिखने लगी थी कि जार्डन भी इजरायल के साथ है.

अगर बात की जाय ईरान की तो माना जा रहा है कि रूस का समर्थन मिल सकता है. विदेश मामलों के जानकारों के धड़े का मानना है कि चीन भी ईरान का साथ दे सकता है. इसके अलावा इराक में लड़ाकू ग्रुप, ईरान के साथ आ सकते हैं. हिजब्बुल्ला और हमास तो उसके साथ है ही. सीरीया और यमन के बारे में भी माना जाता है कि वो ईरान के साथ खड़े हो सकते हैं.

अमेरिकी रुख
ताजा घटनाक्रम में अमेरिका के राष्ट्रपति ने भी कह दिया है कि गाजा में युद्धविराम की स्थिति हो जाने पर ईरान और इजरायल का टकराव खत्म हो जाएगा. अमेरिका समेत पश्चिम के ज्यादातर देश चाहते हैं कि इस तरह से दोनों के देशों के बीच युद्ध की स्थित न बने. इससे क्षेत्रीय शांति बुरी तरह प्रभावित होगी. साथ ही आधी से ज्यादा दुनिया में खाड़ी देशों के जरिए व्यापार होता है जिस पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा. जहां तक सैन्य क्षमताओं की बात है, ईरान ने अपनी सैनिक शक्ति बहुत बढ़ाई है. जबकि टेक्नॉलॉजी के नजरिए से इजरायल की ताकत बहुत अधिक है. साथ ही उसे पश्चिमी देशों का समर्थन भी हासिल है. मध्य पूर्व में अमेरिका ने अपनी बहुत शक्तिशाली विमान वाहक पोतों को एफ 22 समेत तैनात कर दिया है. ऐसे में अगर कोई टकराव होता है तो निश्चित तौर पर वो विनाशकारी हो सकता है.

Tags: Israel Iran War, World news

FIRST PUBLISHED :

August 14, 2024, 17:24 IST

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