पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में भीषण रक्तपात और हिंदुओं पर अत्याचार के बीच बेगम खालिदा जिया जेल से बाहर आ चुकी हैं. इस देश में सत्ता के दो ही शिखर रहे हैं. शेख हसीना के राज में खालिदा जिया सीन से गायब रहीं और अब हसीना सरकार के पतन के ठीक बाद खालिदा का राज आने वाला है. जी हां, मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का सलाहकार बनाकर भले ही 'स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव' की पटकथा लिखी जा रही हो लेकिन बांग्लादेश का इतिहास कुछ और ही कहता है. माना जा रहा है कि तीन महीने बाद सेना के समर्थन से खालिदा की पार्टी सरकार बना सकती है.
दिलचस्प यह है कि जिस तरह से हसीना को सत्ता से बेदखल होना पड़ा, कुछ इसी तरह खालिदा जिया को भी अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी थी. भ्रष्टाचार में घर में नजरबंद खालिदा की रिहाई का फरमान सोमवार रात को जारी हुई और मंगलवार को वह बाहर भी आ गईं. यह दिखाता है कि मुस्लिम बहुल इस देश में कैसे सियासत करवट ले चुकी है.
बेगम खालिदा जिया ने मार्च 1991 से मार्च 1996 और जून 2001 से अक्तूबर 2006 तक देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में सत्ता की बागडोर अपने हाथों में रखी. इन्हें आप बांग्लादेश की 'बेनजीर भुट्टो' भी कह सकते हैं. हां, पाकिस्तान की बेनजीर भुट्टो के बाद वह मुस्लिम जगत की दूसरी महिला प्रधानमंत्री बनी थीं. उनका रुख भारत विरोधी रहा है.
उनका जन्म बंगाल के जलपाईगुड़ी में 1945 में हुआ था. वह शायद राजनीति में नहीं आतीं अगर उनके पति की हत्या न हुई होती. जियाउर रहमान 1977 से 1981 तक बांग्लादेश के राष्ट्रपति रहे थे. उन्होंने ही बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी यानी BNP बनाई थी.
वह 1984 से बीएनपी की अध्यक्ष हैं. जियाउर की 1981 में तख्तापलट के प्रयास में हत्या कर दी गई थी. इसके बाद वह राजनीति में उतरीं. 2006 से पहले तक सब ठीक चल लेकिन कार्यकाल समाप्त होने के बाद 2007 के चुनावों में हिंसा शुरू हो गई. कलह के चलते चुनाव स्थगित हुए. कार्यवाहक सरकार पर सेना का कब्जा हुआ. इसी दौरान खालिदा और उनके दो बेटों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए.
खालिदा फिलहाल बीमार रहती हैं. अगर वह पीएम नहीं बनीं तो संभावना है कि उनके परिवार से कोई बांग्लादेश की बागडोर अपने हाथ में ले सकता है.
1991 के हसीना और खालिदा ने मिलाया हाथ
हां, उस समय खालिदा जिया और शेख हसीना ने हाथ मिला लिया था. इन्होंने 1990 में सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को सत्ता से बाहर करने के लिए विद्रोह कर दिया. हालांकि दोस्ती लंबी नहीं चली. 1991 में पहली बार स्वतंत्र चुनाव हुए, जिसमें खालिदा जिया की पार्टी को जीत मिली. 1996 के चुनावों में हसीना जीतकर आ गईं.
2001 में खालिदा ने सत्ता में वापसी की. 2004 में हसीना की रैली पर ग्रेनेड से हमला हुआ. हसीना बच गईं, लेकिन 20 से ज्यादा लोग मारे गए और 500 से अधिक घायल हुए. इस हमले के लिए खालिदा की सरकार और उसके कट्टर सहयोगियों को दोषी ठहराया गया.
खालिदा ने इस्लामिक कट्टरपंथी समूहों पर शिकंजा कसा, लेकिन प्रधानमंत्री के रूप में उनका दूसरा कार्यकाल 2006 में समाप्त हो गया. राजनीतिक अस्थिरता के बीच सेना समर्थित अंतरिम सरकार ने सत्ता की कमान संभाल ली.
2009 में हसीना की सरकार बनी, तो उन्होंने खालिदा को वापस सत्ता में आने का मौका नहीं दिया. 2018 में खालिदा पर आरोप लगे कि उन्होंने अपने पति के नाम पर बने अनाथालय में लगभग 2,50,000 डॉलर का गबन किया. भ्रष्टाचार में खालिदा जिया को 17 साल की सजा सुनाई गई. बीमारियों के चलते मार्च 2020 में मानवीय आधार पर रिहा किया गया. तब से वह घर में नजरबंद थीं.