Last Updated:April 08, 2025, 16:09 IST
Telangana: मंदिर की परिक्रमा केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान, सकारात्मक ऊर्जा और भक्ति का गहरा अनुभव है. यह अभ्यास हमें ईश्वर से जोड़ता है, हमारे भीतर विनम्रता लाता है और जीवन को शांति व ऊर्जा से भर ...और पढ़ें

मंदिर की परिक्रमा क्यों करते हैं.
भारत में मंदिर जाना और पूजा करना एक आम धार्मिक परंपरा है, लेकिन कई लोग यह नहीं जानते कि मंदिर की परिक्रमा क्यों की जाती है. यह सिर्फ एक धार्मिक रस्म नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरी भावना और जीवन को बदलने वाला अनुभव छिपा होता है. लोकल18 की टीम ने इस रहस्य को समझने के लिए प्रसिद्ध धार्मिक विद्वान और पुजारी जला सोमनाथ शास्त्री से बात की. उन्होंने बताया कि मंदिर की परिक्रमा करना एक शुभ और पवित्र कार्य है, जो भक्त को ईश्वर के और करीब ले जाता है.
परिक्रमा का आध्यात्मिक महत्व
शास्त्री जी के अनुसार, परिक्रमा का मतलब है – ईश्वर के चारों ओर घूमकर उन्हें अपने जीवन का केंद्र बनाना. मंदिर का गर्भगृह परमात्मा का प्रतीक होता है और जब हम उसके चारों ओर चुपचाप परिक्रमा करते हैं, तो यह अपने आप में एक मौन प्रार्थना होती है. यह प्रक्रिया भक्त को यह एहसास कराती है कि उसका जीवन भगवान के चारों ओर घूम रहा है, और यही सच्ची भक्ति का भाव है.
आत्म-समर्पण और विनम्रता का रास्ता
परिक्रमा करते समय झुकना, धीरे-धीरे चलना और मन में नम्रता रखना एक खास भाव पैदा करता है. यह भाव हमें हमारे अहंकार से दूर ले जाता है और हमें यह महसूस कराता है कि हम भगवान की शरण में हैं. यह ‘मैं भगवान का भक्त हूँ’ का अनुभव और अधिक गहरा होता जाता है. यह विनम्रता, इंसान के जीवन में सच्ची शांति और सरलता लाने का काम करती है.
ऊर्जा और विज्ञान का भी है संबंध
शास्त्री जी बताते हैं कि मंदिर का परिसर केवल ईश्वर का निवास नहीं होता, बल्कि एक ऊर्जा केंद्र भी होता है. मंदिर की परिक्रमा करने से भक्त उस सकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर महसूस कर सकता है. मंदिरों का निर्माण खास तौर पर इस तरह किया जाता है कि गर्भगृह में स्थापित मूर्तियों के पास ऊर्जा प्रवाह सबसे अधिक होता है. जब हम वहां परिक्रमा करते हैं, तो पृथ्वी के चुंबकीय और गुरुत्वाकर्षण बल हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और हमें नई ऊर्जा से भर देते हैं.
ध्यान और भक्ति का अद्भुत संगम
जो भक्त परिक्रमा करते हुए भगवान का नाम स्मरण करते हैं, उनके लिए यह अनुभव किसी ध्यान साधना से कम नहीं होता. यह एक ऐसा अभ्यास बन जाता है जो न केवल मन को शांत करता है, बल्कि आत्मा को भी गहराई से छूता है. शास्त्री जी कहते हैं कि यह एक जीवन बदलने वाली साधना है, जिससे भक्त के भीतर सेवा, प्रेम और आत्म-सुधार की भावना मजबूत होती है.
First Published :
April 08, 2025, 16:09 IST