हजारों करोड़ क्यों मदद के नाम पर पड़ोसी देशों को देता है भारत, इससे क्या फायदा

1 month ago
भारत के बजट में पड़ोसियों की आर्थिक मदद का भी प्रावधान रहता है. (image generated by leonardo ai)भारत के बजट में पड़ोसियों की आर्थिक मदद का भी प्रावधान रहता है. (image generated by leonardo ai)

24 जुलाई को जब संसद में भारतीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वर्ष 24-25 के लिए बजट पेश किया तो इसमें उन्होंने पड़ोसिय ...अधिक पढ़ें

News18 हिंदीLast Updated : July 24, 2024, 15:44 IST

हाइलाइट्स

भारत ने इस बार के बजट के जरिए 10 से ज्यादा देशों की आर्थिक मदद कीआजादी के बाद से ही भारत इस तरह की वित्तीय मदद करता रहा हैचीन और भारत की मदद में अंतर भी है और ये कई अलग वजहों से दी जाती है

वर्ष 2024-25 के बजट में हमने देखा कि भारत ने पड़ोसी देशों को दी जाने वाली आर्थिक मदद को भी बजट के जरिए आवंटित किया है. दरअसल लंबे समय से भारत अपने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहायता कार्यक्रमों के जरिए पड़ोसी देशों और अन्य विकासशील देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है. इस सहायता के लिए बजट आवंटन विदेश मंत्रालय की अनुदान मांग के तहत किया जाता है.

केंद्रीय बजट 2024-25 में, सरकार ने “अन्य देशों के साथ तकनीकी और आर्थिक सहयोग” के लिए कुल ₹5,080.24 करोड़ आवंटित किए हैं. इसमें भूटान, म्यांमार और अफगानिस्तान जैसे निकटतम पड़ोसी देशों के साथ-साथ अफ्रीका, मध्य एशिया, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों को सहायता सहायता शामिल है.

2024-2025 के केंद्रीय बजट के अनुसार, जिन देशों को वित्तीय सहायता आवंटित हुई है, उसमें भूटान को सबसे ज्यादा राशि दी गई. किसे कितना मिला है. ये इस तरह है-
भूटान: ₹2,068.56 करोड़ (पिछले वर्ष के ₹2,400 करोड़ से कम)
नेपाल: ₹700 करोड़
मालदीव: ₹400 करोड़
मॉरीशस: ₹370 करोड़
म्यांमार: ₹250 करोड़
श्रीलंका: ₹245 करोड़
अफगानिस्तान: ₹200 करोड़
अफ़्रीकी देश: ₹200 करोड़
बांग्लादेश: ₹120 करोड़
सेशेल्स: ₹40 करोड़
लैटिन अमेरिकी देश: ₹30 करोड़
ये विदेशी सहायता कुल मिलाकर ₹22,155 करोड़ है, हालांकि पिछले वित्तीय वर्ष में इसकी राशि ₹29,121 करोड़ थी.

भारत से सबसे ज्यादा वित्तीय मदद हर साल भूटान की जाती है. इस बार भी भूटान को विदेशी मदद के तौर पर 2,068.56 रुपए की राशि बजट में आवंटित की गई. (news18)

कब शुरू की गई पड़ोसी देशों को सहायता
पड़ोसी देशों को भारत की विदेशी सहायता की जड़ें स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में हैं. औपचारिक सहायता कार्यक्रम 1950 के दशक में शुरू हुआ, विशेष रूप से कोलंबो योजना के माध्यम से, जिसका उद्देश्य एशियाई देशों में आर्थिक और सामाजिक विकास था.

1950 का दशक – भारत ने मुख्य रूप से अपने निकटतम पड़ोसियों को सहायता देना शुरू किया, जिसमें नेपाल और भूटान पहले आर्थिक मदद दी गई. 1958 में भारत ने नेपाल को बहु-वर्षीय अनुदान में 100 मिलियन डॉलर देने को लेकर प्रतिबद्धता जताई. म्यांमार को ऋण दिया.

2000 का दशक – सहायता कार्यक्रम ने गति पकड़ी. 2019-2020 के बजट में भारत ने विदेशी सहायता कार्यक्रम के लिए लगभग $1.32 बिलियन (INR 8,415 करोड़) आवंटित किया.

2014-2018- इस अवधि के दौरान भारत ने 06 पड़ोसी देशों – अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका को कुल ₹21,100 करोड़ से अधिक की सहायता दी, जो विकास के कामों के लिए थी.

हालिया बजट- 2024-25 के केंद्रीय बजट में भारत ने अन्य देशों के साथ तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए ₹5,080.24 करोड़ आवंटित किए, जिसमें पड़ोसी देशों को सहायता भी शामिल है.

कुल मिलाकर, विदेशी सहायता का काम भारत दशकों से कर रहा है, जिसमें अनुदान, ऋण और तकनीकी सहायता सहित कई तरह मदद पड़ोसियों को की जाती है,

क्यों पड़ोसियों को आर्थिक मदद देता है भारत
भारत अपने पड़ोसी देशों को कई आधार पर वित्तीय सहायता प्रदान करता है.
भू-राजनीतिक कारक – भारत का लक्ष्य लक्षित सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से अपने प्रभाव को मजबूत करना और क्षेत्र में चीन की बढ़ती उपस्थिति का मुकाबला करना है. इसी वजह से भूटान, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों को अहम मदद भारत से दी जाती रही है.
आर्थिक स्थिति – भारत अफगानिस्तान, म्यांमार और मालदीव जैसे आर्थिक रूप से कमजोर पड़ोसियों को विकास परियोजनाओं और क्षमता निर्माण में मदद करने के लिए अधिक सहायता देता है.
सामरिक हित – इस मदद के जरिए भारत की सीमाओं को सुरक्षित करने, आतंकवाद का मुकाबला करने और क्षेत्रीय स्थिरता को बढ़ावा देने के भी करता है.
द्विपक्षीय समझौते – भारत की सहायता प्रतिबद्धताएं अक्सर पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय समझौतों और संयुक्त आयोगों के हिस्से के रूप में भी होती है.
दक्षिण-दक्षिण सहयोग- भारत की सहायता रणनीति व्यापक दक्षिण-दक्षिण सहयोग ढांचे का हिस्सा है, जो पारंपरिक दाता-प्राप्तकर्ता संबंधों के बजाय पारस्परिक लाभ और साझेदारी पर केंद्रित है. यह दृष्टिकोण वैश्विक दक्षिण के देशों के बीच समानता और साझा विकास लक्ष्यों की भावना को बढ़ावा देता है.
सेक्टर-विशिष्ट फोकस – सहायता अक्सर प्राप्तकर्ता देशों की विकासात्मक प्राथमिकताओं के अनुरूप बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और आपदा राहत जैसे विशिष्ट क्षेत्रों की ओर निर्देशित की जाती है

ये मदद चीन की सहायता से कैसे अलग
– भारतीय सहायता रणनीति क्षमता निर्माण, तकनीकी सहायता और मानव संसाधन विकास पर जोर देती है. इसका उद्देश्य पारस्परिक लाभ और संप्रभुता के सम्मान पर आधारित दीर्घकालिक संबंधों को बढ़ावा देना है, जिसमें अक्सर शिक्षा, स्वास्थ्य और शासन जैसे सामाजिक क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है.
इसके विपरीत चीन की सहायता बुनियादी ढांचे के विकास और आर्थिक निवेश पर केंद्रित है. यह अक्सर सड़कों, बंदरगाहों और ऊर्जा सुविधाओं जैसी बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए आर्थिक मदद देता है.

– भारत मुख्य रूप से अनुदान और रियायती ऋण के माध्यम से सहायता प्रदान करता है, जिसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के लिए आवंटित किया जाता है. चीन की सहायता अक्सर उन प्रोजेक्ट्स के लिए होती है, जिससे अक्सर चीनी कंपनियां और ठेकेदारों से जुड़े होते हैं, जिसकी अक्सर आलोचना भी होती है. इससे चीन किसी भी देश के प्रोजेक्ट में अपना दखल सुनिश्चित करता है.

– भारत की विदेशी सहायता काफी हद तक उसके निकटवर्ती पड़ोसियों के लिए होती है, जिसमें अफगानिस्तान, भूटान और नेपाल जैसे देश शामिल हैं, जो इसकी “पड़ोसी पहले” नीति को दर्शाता है. यह अफ्रीकी देशों और अन्य विकासशील देशों को भी मदद देता है.

चीन की आर्थिक मदद का दायरा वैश्विक है, वो अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और एशिया में महत्वपूर्ण निवेश करता है. यह व्यापक भौगोलिक फोकस संसाधनों और बाजारों को सुरक्षित करने की रणनीति का हिस्सा है, जिससे वह खुद को अंतरराष्ट्रीय विकास में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करता है.

– हालांकि भारत की मदद रणनीतिक हितों से प्रभावित है लेकिन ये मदद के बाद हस्तक्षेप नहीं करता. वह खुले तौर पर राजनीतिक बंधनों के बिना विकास सहयोग के माध्यम से अपनी साफ्ट पॉवर बढ़ाने और सद्भावना का निर्माण करता है.चीन की मदद को अक्सर रणनीतिक प्रतिस्पर्धा के चश्मे से देखा जाता है, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के साथ.

भारत कड़ी शर्तों के साथ आर्थिक मदद नहीं करता
पश्चिमी दानदाताओं से मिलने वाली सहायता के विपरीत, पड़ोसी देशों को भारत की विदेशी सहायता आम तौर पर कड़ी शर्तों के साथ नहीं दी जाती. भारत रियायती ऋण और अनुदान के रूप में सहायता देता है.

Tags: Bangladesh, Budget 2023, China, Nepal

FIRST PUBLISHED :

July 24, 2024, 15:44 IST

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