हैदराबाद हाउस में ही क्यों पीएम मोदी से होती हैं शीर्ष राष्ट्रप्रमुखों की बैठक

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Hyderabad House History: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन गुरुवार को दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर नई दिल्ली पहुंचेंगे और 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे. फरवरी 2022 में यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद से यह पुतिन की पहली आधिकारिक भारत यात्रा है. अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान रूसी राष्ट्रपति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ आपसी हित के वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करेंगे. उनकी यात्रा से पहले विदेश मंत्रालय (MEA) ने उनका यात्रा कार्यक्रम जारी किया है. उसके अनुसार पुतिन आज शाम लगभग 6:35 बजे नई दिल्ली पहुंचेंगे.

पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री मोदी आज पुतिन के दिल्ली पहुंचने के कुछ ही घंटों बाद उनके लिए एक निजी रात्रिभोज का आयोजन करेंगे. यह पिछले वर्ष मास्को यात्रा के दौरान पुतिन द्वारा प्रधानमंत्री मोदी के प्रति व्यक्त किए गए इसी प्रकार के सम्मान का जवाब है. शुक्रवार 5 दिसंबर को सुबह 11:50 बजे पुतिन हैदराबाद हाउस में प्रधानमंत्री मोदी से मिलेंगे, जहां दोनों नेता बैठक करेंगे. दोपहर करीब 1:50 बजे हैदराबाद हाउस में दोनों नेताओं की ओर से प्रेस नोट जारी होने की उम्मीद है.

97 साल पुराना इतिहास
प्रधानमंत्री मोदी और पुतिन की मुलाकात जिस 97 साल पुराने हैदराबाद हाउस में होगी जिसकी कहानी वाकई में बहुत दिलचस्प है. क्या आपने कभी सोचा है कि प्रधानमंत्री मोदी, या उनसे पहले भी जो प्रधानमंत्री रहे हैं, वे विदेशी मेहमानों से औपचारिक मुलाकात करने के लिए हमेशा हैदराबाद हाउस को ही क्यों चुनते हैं? यह न केवल एक सुंदर इमारत है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और भारत के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक भी है.

हैदराबाद हाउस का निर्माण साल 1928 में पूरा हुआ. यह इमारत यूरोपियन और मुगल शैली को मिलाकर बनायी गयी थी.

रियासतें और ‘हैदराबाद हाउस’ की जरूरत
आजादी से पहले भारत में लगभग 560 देसी रियासतें थीं, जिन्हें ‘देसी राज्य’ भी कहा जाता था. ये रियासतें सीधे तौर पर ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं थीं और इन सबका अपना-अपना अधिकार क्षेत्र था. इतनी बड़ी संख्या में रियासतें होने के कारण उनके बीच अक्सर कोई न कोई समस्या पैदा होती रहती थी. इन समस्याओं को सुनने और रियासतों के साथ बेहतर तालमेल बनाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने साल 1920 में ‘चैंबर ऑफ प्रिंसेस’ की स्थापना की. इस चैंबर की बैठकें अक्सर दिल्ली में होती थीं. जब भी ब्रिटिश हुकूमत बुलाती रियासतों के प्रमुखों को तुरंत दिल्ली आना पड़ता था. समस्या यह थी कि उनके रहने के लिए दिल्ली में कोई उचित व्यवस्था नहीं थी. इसी वजह से रियासतों के प्रमुखों ने दिल्ली में अपने ठहरने के लिए एक अच्छी जगह बनाने का विचार किया. हालांकि, जब हैदराबाद हाउस बनकर तैयार हुआ तो बताया जाता है कि निजाम को वह पसंद नहीं आया.

हैदराबाद हाउस कैसे हुआ सरकार का
भारत की आजादी के बाद सभी देसी रियासतें भारत संघ में शामिल हो गयीं. इसके बाद साल 1954 में विदेश मंत्रालय ने हैदराबाद हाउस को लीज पर ले लिया. विदेश मंत्रालय ने लगभग 1970 के दशक तक लीज के किराए के तौर पर आंध्र प्रदेश सरकार को पैसे दिए. बाद में, जब के. विजय भास्कर रेड्डी आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक समझौता हुआ. इस समझौते के तहत केंद्र सरकार ने दिल्ली में ‘आंध्र प्रदेश भवन’ बनाने के लिए राज्य सरकार को 7.56 एकड़ जमीन दी. इसके बदले में हैदराबाद हाउस हमेशा के लिए केंद्र सरकार की संपत्ति बन गया. आज हैदराबाद हाउस का स्वामित्व विदेश मंत्रालय के पास है. यह भवन अब किसी भी राष्ट्राध्यक्ष (Head of State) या किसी बड़ी विदेशी हस्ती के भारत आने पर प्रधानमंत्री से औपचारिक मुलाकात करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

निजाम को चाहिए था दिल्ली में स्थायी ठिकाना
जब ‘चैंबर ऑफ प्रिंसेस’ की स्थापना हुई, उस समय हैदराबाद रियासत के निजाम मीर ओस्मान अली खान थे. जब भी निजाम दिल्ली आते थे तो उनके लिए महीनों पहले से कैंप (तंबू) लगाना शुरू हो जाता था, जिस पर बहुत ज्यादा पैसा खर्च होता था. इस परेशानी को देखते हुए निजाम ने दिल्ली में अपना स्थायी ठिकाना बनाने का फासला लिया और इसके लिए जमीन की तलाश शुरू की. उनकी यह तलाश वायसराय हाउस (जो अब राष्ट्रपति भवन है) के पास 8.2 एकड़ जमीन पर आकर पूरी हुई. निजाम ने यह ज़मीन खरीद तो ली, लेकिन उन्हें लगा कि यह थोड़ी कम है. इस जमीन से सटी हुई एक और बिल्डिंग थी, जो 3.73 एकड़ में फैली हुई थी. निजाम ने वह जमीन भी खरीद ली. उस समय उन्होंने 5000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से इसका भुगतान किया था.

निजाम के शाही रुतबे को देखते हुए एक ऐसा डाइनिंग हॉल बनाया गया था जहां एक साथ 500 मेहमान भोजन कर सकें.

निजाम ने एडविन लुटियन को जिम्मा सौंपा
जमीन खरीदने के बाद उस पर शानदार बिल्डिंग बनाने की तैयारी शुरू हुई. निजाम मीर ओस्मान अली खान ने यह जिम्मेदारी मशहूर आर्किटेक्ट एडविन लुटियन को सौंपी. एडविन लुटियन को राष्ट्रपति भवन सहित दिल्ली की कई प्रतिष्ठित (Iconic) इमारतों को डिजाइन करने के लिए जाना जाता है. उनकी वजह से ही नई दिल्ली के एक खास हिस्से को आज भी ‘लुटियन दिल्ली’ कहा जाता है, जहां उनकी डिजाइन की गई ज्यादातर इमारतें मौजूद हैं. लुटियन ने हैदराबाद हाउस के लिए ‘बटरफ्लाई’ (तितली) के आकार का एक खास डिजाइन तैयार किया. यह डिजाइन काफी हद तक वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) के जैसा ही था, बस इसका गुंबद (Dome) थोड़ा छोटा रखा गया था.

बनाने में आया 50 लाख का खर्च
आजादी के समय देश के सबसे अमीर व्यक्ति निजाम ने शुरुआत में ‘हैदराबाद हाउस’ के निर्माण के लिए 26 लाख रुपये दिए थे. लेकिन बाद में एक फरमान के जरिए इस राशि को बढ़ाकर 50 लाख रुपये कर दिया गया. इस शानदार इमारत को बनाने के लिए बेहतरीन सामान का इस्तेमाल किया गया था और इसे दुनिया भर से मंगाया गया. उन दिनों बर्मा (अब म्यांमार) की टीक की लकड़ी (सागौन) बहुत मशहूर थी, इसलिए निजाम ने वहां से लकड़ी मंगवायी. इमारत के लिए इलेक्ट्रिकल फिटिंग और अन्य जरूरी सामान न्यूयॉर्क से मंगवाए गए थे. उस समय इंटीरियर डिजाइनिंग के क्षेत्र में लंदन की दो कंपनियां- हैम्पटन एंड संस लिमिटेड और वारिंग एंड गिलो लिमिटेड – बहुत नामचीन थीं. निजाम ने हैदराबाद हाउस के आंतरिक साज-सज्जा (इंटीरियर डिजाइनिंग) का पूरा काम इन्हीं दोनों कंपनियों को सौंपा था.

पेंटिंग, कालीन और चांदी के बर्तन
इमारत की साज-सज्जा में कोई कमी न रह जाए, इसके लिए हर बारीकी पर ध्यान दिया गया. दुनिया के मशहूर चित्रकारों की 17 पेंटिंग खरीदी गयीं. उस समय एक पेंटिंग के लिए दस से बीस हजार रुपये तक की बड़ी रकम खर्च की गयी थी. इसके अलावा लाहौर के जाने-माने पेंटर अब्दुल रहमान चुगताई की 30 हैंडमेड पेंटिंग भी मंगवायी गयीं, जिसके लिए निजाम ने काफ़ी ज़्यादा कीमत चुकायी थी. हैदराबाद हाउस के फर्श को सजाने के लिए इराक, तुर्की और अफगानिस्तान से बेहतरीन कालीन (Carpets) मंगवाए गए. निजाम के शाही रुतबे को देखते हुए एक ऐसा डाइनिंग हॉल बनाया गया था जहां एक साथ 500 मेहमान भोजन कर सकें. इस डाइनिंग हॉल के लिए चांदी की प्लेटें, बेहतरीन क्रॉकरी, खास कटलरी और अन्य सभी जरूरी सामान दुनिया भर से मंगवाए गए थे.

निजाम को पसंद नहीं आया, उसे बताया अस्तबल
हैदराबाद हाउस का निर्माण साल 1928 में पूरा हुआ. यह इमारत यूरोपियन और मुगल शैली को मिलाकर बनायी गयी थी और इसमें कुल 36 कमरे थे. हालांकि बनने के लगभग दस साल बाद जब निजाम ने पहली बार इस इमारत में कदम रखा तो उन्हें यह बिल्कुल पसंद नहीं आयी. निजाम ने तो इसकी तुलना एक घोड़े के अस्तबल (Stables) से कर डाली. उन्हें यह इमारत पश्चिम की किसी सस्ती नकल जैसी लगी. यह सब तब हुआ जब उन्होंने इसे बनाने में 50 लाख रुपये की एक बड़ी रकम खर्च की थी. निजाम ने अपनी दिल्ली यात्राओं के दौरान इस घर में कभी निवास नहीं किया. इस शानदार, लेकिन अनचाही इमारत को बाद में किराए पर दे दिया गया. भारत की आजादी और रियासतों के विलय के बाद यह इमारत आंध्र प्रदेश राज्य की संपत्ति बन गयी.

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