Last Updated:September 05, 2025, 14:39 IST
जनगणना में सरकार पहली बार 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों यानी पीवीटीजी की अलग से गणना करेगी. इनकी देश में कुल अनुमानित संख्या लगभग 47.5 लाख है.

भारत में जनगणना का काम एक मार्च, 2027 तक पूरे देश में आयोजित किया जाएगा. हालांकि यह बर्फ से ढके राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे लद्दाख, जम्मू और कश्मीर , हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अक्टूबर 2026 तक आयोजित किया जाएगा. जनगणना दो चरणों में पूरी की जाएगी. आधिकारिक जनगणना और उससे पहले घरों की सूची बनाने की प्रक्रिया एक मार्च, 2027 तक पूरी होने की उम्मीद है. हालांकि आंकड़ों को अंतिम रूप देने और जारी करने में लगभग तीन साल लगेंगे. 2027 की जनगणना के अंतिम आंकड़े 2029 के लोकसभा चुनावों के बाद 2030 के आसपास प्रकाशित किए जाएंगे.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक जनजातीय मामलों के मंत्रालय (एमओटीए) ने पिछले महीने भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त (आरजीआई) को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वे आगामी जनगणना में विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) की अलग से गणना करने पर विचार करें. अपने पत्र में जनजातीय कार्य मंत्रालय ने भारत के महापंजीयक से पीवीटीजी परिवारों, व्यक्तियों की संख्या और उनकी विशिष्ट जनसांख्यिकीय, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं का विवरण प्राप्त करने का अनुरोध किया है. मंत्रालय ने कहा कि ऐसी जानकारी पीवीटीजी के लिए लक्षित योजनाओं जैसे कि प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाअभियान (पीएम जनमन) के बेहतर क्रियान्वयन में मदद करेगी.
कौन हैं विशेष रूप से असुरक्षित जनजातीय समूह?
पीवीटीजी अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की एक उप-श्रेणी है, जिसमें या तो घटती या स्थिर जनसंख्या, भौगोलिक अलगाव, पूर्व-कृषि प्रथाओं (जैसे शिकार और संग्रहण), आर्थिक पिछड़ापन और अपेक्षाकृत कम साक्षरता देखी जाती है. यह श्रेणी पूर्व सांसद यू.एन. ढेबर के नेतृत्व में गठित ढेबर आयोग (1960-61) की सिफारिशों के आधार पर बनाई गई थी. इस आयोग ने राज्य सरकारों के परामर्श से अनुसूचित जनजातियों के सामने आने वाले विभिन्न मुद्दों की जांच की थी. आयोग ने विभिन्न जनजातीय समूहों के बीच सामाजिक-आर्थिक और जीवन स्थितियों में असमानता की पहचान की थी और कहा था कि कुछ जनजातीय समूह दूसरों की तुलना में अधिक असुरक्षित हैं.
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18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हैं 75 समूह
जनजातीय कार्य मंत्रालय ने 19 मार्च, 2025 को एक प्रश्न के लिखित उत्तर में राज्यसभा को बताया कि शुरुआत में पांचवीं पंचवर्षीय योजना (1974-1979) के दौरान 52 समूहों की पहचान पीवीटीजी (तब आदिम जनजातीय समूह के रूप में जाना जाता था) के रूप में की गई थी. 2006 में केंद्र ने पीवीटीजी में 23 और जनजातीय समूहों को जोड़ा, जिससे कुल संख्या 75 हो गई. पीवीटीजी वर्तमान में 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में फैले हुए हैं. पिछले कुछ सालों में पीवीटीजी की पहचान के मानदंडों पर सवाल उठाए गए हैं, विशेष रूप से भौगोलिक अलगाव के चिह्न पर.
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क्या पहले भी पीवीटीजी की अलग से गणना की गई?
नहीं, किसी भी जनगणना में पीवीटीजी की अलग से गणना नहीं की गई है. हालांकि पीवीटीजी एसटी की एक उप-श्रेणी हैं, इसलिए 75 समूहों में से कुछ को व्यापक एसटी श्रेणी में गिना जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि कई पीवीटीजी को अलग से सूचीबद्ध नहीं किया गया है और उन्हें एक ही नाम के अंतर्गत समूहीकृत किया गया है. इसके अलावा एसटी की राज्य-विशिष्ट सूचियां भी हैं. जनजातीय कार्य मंत्रालय ने दिसंबर 2016 में लोकसभा को बताया था कि देश के 75 पिछड़ी जनजातियों (पीवीटीजी) में से 40 को ‘एकल प्रविष्टि’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. इसका अर्थ है कि वे संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजातियों की अधिसूचित सूची में स्पष्ट रूप से सूचीबद्ध हैं.
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2011 में बैगाओं की गयी थी अलग से गणना
उदाहरण के लिए 2011 की जनगणना में मध्य प्रदेश के बैगाओं की अलग से गणना की गई थी. लेकिन अबूझ मारिया, भारिया, पहाड़ी कोरबा और कमार की नहीं. 2013 में संसद में एक कानून के जरिए अबूझ मारिया और पहाड़ी कोरबा को छत्तीसगढ़ की अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल कर लिया गया. स्थापित मानदंडों के अनुसार केवल मुख्य अनुसूचित जनजातियों के आंकड़ों को ही सारणीबद्ध किया जाता है और आरजीआई द्वारा जारी किया जाता है. जिसमें संसद में दिए गए उत्तर के अनुसार उनके उप-समूहों/वर्गों/समानार्थियों के आंकड़े/जनसंख्या शामिल होती है.
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क्या पीवीटीजी की संख्या का कोई अनुमान है?
नवंबर 2023 में सरकार ने 200 से अधिक जिलों में पीवीटीजी के लिए सामाजिक-आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका और सुविधाओं में सुधार करने के उद्देश्य से 24,104 करोड़ रुपये की पीएम जनमन योजना शुरू की. इस योजना को लागू करने के लिए, जनजातीय कार्य मंत्रालय ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर एक सर्वेक्षण में पीवीटीजी आबादी का अनुमान लगाने के लिए बस्ती स्तर के आंकड़े एकत्र किए. इस प्रक्रिया में पीवीटीजी बस्तियों में बुनियादी ढांचे की कमियों की पहचान भी शामिल थी. सर्वेक्षण के अनुसार पूरे भारत में अनुमानित 47.5 लाख पीवीटीजी हैं. मध्य प्रदेश में पीवीटीजी की अनुमानित जनसंख्या सबसे अधिक 13.22 लाख है. उसके बाद महाराष्ट्र में 6.7 लाख और आंध्र प्रदेश में लगभग 5.18 लाख पीवीटीजी हैं.
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सेंटिनली समुदाय में सबसे कम लोग
2011 की जनगणना के अनुसार 40 एकल-प्रविष्टि जनजातियों में शामिल 13 पिछड़ी जनजातियों की जनसंख्या 1,000 से कम थी. इनमें अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में जारवा, ओंगे, सेंटिनली, शोम्पेन, उत्तराखंड में राजी, तमिलनाडु में कोटा , ओडिशा में बिरहोर, मध्य प्रदेश में कमार और बिहार में सावर, बिरहोर, बिरजिया, कोरवा, परहैया शामिल हैं. मात्र 15 व्यक्तियों के साथ सेंटिनली समुदाय में सबसे कम लोग थे. जबकि सबसे अधिक 4,14,526 लोग मध्य प्रदेश के बैगा समुदाय में थे.
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Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
September 05, 2025, 14:39 IST