1 रुपये में मिली 15 एकड़ जमीन, पर गरीबों के इलाज में आनाकानी कर रहा अपोलो

5 hours ago

Last Updated:May 06, 2025, 09:42 IST

Delhi Apollo Hospital News: दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को 1 रुपये महीने पर 15 एकड़ जमीन दी गई थी, लेकिन गरीबों के लिए 200 बेड रिजर्व रखने की शर्त का पालन नहीं किया. सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए...और पढ़ें

1 रुपये में मिली 15 एकड़ जमीन, पर गरीबों के इलाज में आनाकानी कर रहा अपोलो

अपोलो अस्पताल ने पिछले 12 वर्षों के दौरान औसतन केवल 17.05% बेड ही गरीब मरीजों को दिए

हाइलाइट्स

अपोलो अस्पताल को 1 रुपये में 15 एकड़ जमीन मिली थी.अस्पताल ने गरीबों के लिए 200 बेड रिजर्व रखने की शर्त का पालन नहीं किया.सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए यह अस्पताल एम्स को सौंपने की चेतावनी दी.

दिल्ली में प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू रहे हैं. यहां आम लोगों को बेहद सामान्य सा घर खरीदने के लिए लाखों रुपये देने पड़ते हैं. वहीं आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली के प्रीमियम अस्पतालों में गिने जाने वाले इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल को महज 1 रुपये महीने के रेट पर 15 एकड़ जमीन दी गई थी. दिल्ली सरकार ने 1988 में जब अपोलो अस्पताल को यह जमीनी दी थी, तब एक शर्त लगाई थी कि यह अस्पताल अपनी कुल बिस्तर क्षमता में से कम से कम एक-तिहाई यानी 200 बेड गरीबों (EWS) के लिए मुफ्त रिजर्व रखेगा. मगर बीते 15 सालों का रिकॉर्ड बताते हैं कि अपोलो अस्पताल ने इस शर्त को या तो पूरी तरह नजरअंदाज किया या बेहद अनमने ढंग से उसका पालन किया.

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए चेतावनी दी है कि अगर अपोलो अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाता, तो सरकार AIIMS को इसका प्रबंधन सौंप सकती है. इस अस्पताल को बनवाने में दिल्ली सरकार ने अपने सरकारी खजाने से तब 38 करोड़ रुपये लगाए थे और इसमें उसकी 26% हिस्सेदारी है. दिल्ली हाईकोर्ट ने भी अस्पताल को खास निर्देश दिए थे कि वह अपने कुल 600 में से 200 बेड गरीबों के लिए रखेगा. कोर्ट ने यह आदेश 2009 में दिया था, लेकिन अस्पताल के कानों पर मानों जूं तक नहीं रेंगी.

शर्तों को तार-तार करता अपोलो
कोर्ट ने अपोलो में गरीबों के इलाज की व्यवस्था की जांच के लिए दो बार कमेटी भी गठित थी, जिसमें पता चला है कि अस्पताल की चलाने वाली कंपनी IMCL ने इन शर्तों की खुलेआम अवहेलना की है. वहीं इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अस्पताल ने पिछले 12 वर्षों के दौरान औसतन केवल 17.05% बेड ही गरीब मरीजों को दिए. 2014-15 में यह आंकड़ा तो और भी कम यानी महज 12.01 फीसदी था, जबकि 2018-19 में भी यह बढ़ा जरूर, लेकिन 20.87% तक ही पहुंच सका.

2023-24 में अस्पताल में औसतन 361 गरीब मरीज हर महीने भर्ती हुए, जिनके अस्पताल में रहने की औसतन अवधि 3.41 दिन थी. रिपोर्ट के मुताबिक, महीने के लगभग 1,231 बेड-डे गरीब मरीजों के लिए उपयोग हुए, जबकि कुल होना चाहिए था 6,000 बेड-डे, यानी उपयोग सिर्फ 20.5% रहा…

OPD में भी खानापूर्ति
अखबार के मुताबिक, ‘वर्ष 2012 से लेकर 2024 तक कुल 2.97 लाख गरीब मरीजों ने मुफ्त इलाज का लाभ उठाया. हालांकि इनमें से 88% सिर्फ ओपीडी (बाहरी मरीज) के रूप में आए, जहां सिर्फ परामर्श मिलता है, जबकि आईपीडी (भर्ती मरीज) की संख्या मात्र 12% रही.

अपोलो की सफाई
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाई तो अपोलो अस्पताल ने बताया कि यह मामला विचाराधीन है और सभी दस्तावेज अदालत को दिए जाएंगे. वहीं, अस्पताल ने एक नया प्रस्ताव भी सरकार को भेजा है कि अगर उसे 200 बेड का कोटा हटाकर 10% आईपीडी और 25% ओपीडी तक सीमित किया जाए, तो वह मुफ्त इलाज जारी रखेगा. इसका मतलब होगा कि उसे सिर्फ 70 बेड ही देने होंगे, यानी जिम्मेदारी कम, फायदा ज्यादा…

इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और दिल्ली सरकार को एक संयुक्त निरीक्षण समिति गठित करने को कहा है, जो जांचेगी कि गरीबों को वास्तव में इलाज मिल रहा है या फिर यह ज़मीन किसी निजी मुनाफे के लिए हथिया ली गई है. इसके साथ ही अस्पताल से कहा गया है कि पिछले पांच सालों के मरीजों का पूरा रिकॉर्ड और बिस्तरों की संख्या का विवरण एक हलफनामे में अदालत को सौंपे.

Location :

New Delhi,Delhi

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