Last Updated:April 07, 2025, 15:42 IST
3000 साल पुराना नीरपुथूर मंदिर कई रहस्यों से भरा है. इस मंदिर में विज्ञान के कई स्थापित सिद्धांत फेल हो जाते हैं. मान्यता है कि इसका शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ था. मंदिर का जल स्रोत और वास्तुशास्त्र वैज्ञानिकों के...और पढ़ें

केरल के हरे-भरे इलाके में स्थित नीरपुथूर मंदिर को रहस्यमयी और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से चुनौतीपूर्ण स्थल माना जाता है. (Instagram)
हाइलाइट्स
नीरपुथूर मंदिर 3000 साल पुराना है.मंदिर का शिवलिंग स्वयं प्रकट हुआ माना जाता है.मंदिर का जल स्रोत और वास्तुशास्त्र वैज्ञानिकों के लिए रहस्य हैं.भारतीय सभ्यता दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में गिनी जाती है. यहां की प्राचीन सांस्कृति की सबसे बड़ी गवाही यहां के मंदिर देते हैं, जो अपनी संरचनाओं के लिए दुनियाभर में आज भी आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं. इन मंदिरों की बनावट देखकर हर कोई अचरज में पड़ जाता है. ऐसा ही एक मंदिर नीरपुथूर मंदिर है. करीब 3000 साल पुराना यह मंदिर रहस्यों से भरपूर है, जहां विज्ञान के सारे स्थापित सिद्धांत फेल हो जाते हैं. यह मंदिर और इसका गर्भगृह आज भी शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों के लिए एक अबूझ पहेली बना हुआ है.
इस मंदिर का सबसे रहस्यमय पहलू इसमें मौजूद शिवलिंग है, जिसे लेकर मान्यता है कि यह किसी इंसानी प्रयास से नहीं, बल्कि स्वयं प्रकट हुआ है. विज्ञान जहां किसी भी चीज की उत्पत्ति और रूप को विश्लेषणात्मक नजर से देखता है, वहीं इस शिवलिंग की मौजूदगी वैज्ञानिकों को स्तब्ध कर देती है. स्थानीय लोगों की मान्यता के मुताबिक, इस शिवलिंग का न कोई स्पष्ट निर्माण काल है, न कोई रचना प्रक्रिया—यह केवल श्रद्धा और विश्वास से जुड़ा हुआ रहस्य है.
मंदिर में स्थित जल का स्रोत भी एक रहस्य ही है. यहां शिवलिंग के चारों ओर सालों भर जल भरा रहता है, चाहे सूखा हो या बारिश का मौसम… पानी की इस हमेशा मौजदूगी ने भू-वैज्ञानिकों को भी सोच में डाल दिया है. यह पानी कहां से आता है, इसका कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण नहीं मिल पाया है.
इस जल को ‘चमत्कारी’ भी कहा जाता है, क्योंकि श्रद्धालुओं का मानना है कि इसमें रोग निवारण की शक्ति है. माना जाता है इसमें कुछ खनिज तत्व हो सकते हैं, जो स्वास्थ्य को लाभ पहुंचाते हों, लेकिन जिस स्तर पर इसे ‘औषधीय जल’ कहा जाता है, वह विज्ञान की सीमाओं से परे प्रतीत होता है.
मंदिर का वास्तु भी अपने आप में एक रहस्य है. इसकी संरचना वास्तुशास्त्र और खगोल विज्ञान के ऐसे नियमों पर आधारित है, जिन्हें आज के आधुनिक उपकरणों से भी पूरी तरह मापा नहीं जा सका है. गर्भगृह की स्थिति, उसका तापमान और उसमें व्याप्त रहस्यमयी ऊर्जा को समझने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकला. स्थानीय लोगों के मुताबिक, यहां तक कि कई वैज्ञानिक जब गर्भगृह के अंदर गए, तो उन्होंने असामान्य ऊर्जा प्रवाह का अनुभव किया, जिसे आज तक तकनीकी रूप से सिद्ध नहीं किया जा सका.
इतिहासकारों के अनुसार, यह मंदिर न सिर्फ आध्यात्मिक, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है. इसकी कथाएं वेदों और पुराणों से जुड़ी हैं, और स्थानीय जनमानस में इसे लेकर गहन श्रद्धा है. यहां के निवासी इसे केवल एक मंदिर नहीं, बल्कि ‘चमत्कारों का स्थल’ मानते हैं.
नीरपुथूर मंदिर यह दर्शाता है कि हर चीज का वैज्ञानिक विश्लेषण संभव नहीं होता. कुछ रहस्य ऐसे होते हैं जो केवल आस्था, अनुभव और संस्कृति के माध्यम से ही समझे जा सकते हैं. यह मंदिर न सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती है, बल्कि यह उस गहरी लकीर को भी रेखांकित करता है, जहां विज्ञान रुक जाता है और आध्यात्म शुरू होता है.
Location :
New Delhi,Delhi
First Published :
April 07, 2025, 15:42 IST
3000 साल पुराने मंदिर में विज्ञान के सिद्धांत फेल, गर्भगृह देख चकरा जाए माथा