Last Updated:April 08, 2025, 07:53 IST
West Bengal Election: पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव होने वाले हैं और बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने 5% हिंदू वोट जुटाने की रणनीति बनाई है. उधर ममता बनर्जी ने भी अपनी जाति उजागर कर ब्राह्मण कार्ड खेला है.

बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी पश्चिम बंगाल चुनाव में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नींद उड़ाने की पूरी तैयारी में जुटे हैं.
हाइलाइट्स
शुभेंदु अधिकारी ने 5% हिंदू वोट जुटाने की रणनीति बनाई.ममता बनर्जी ने ब्राह्मण कार्ड खेला.बीजेपी का नारा: 'हिंदू हिंदू भाई भाई, 2026 बीजेपी चाई'.कोलकाता. पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इस बीच वहां की राजनीति में एक बड़ा बदलाव खामोशी से दस्तक दे चुका है. बंगाली भद्रलोक में जहां पहले जाति पर बात करना ‘अशोभनीय’ माना जाता था, वहीं अब यह चुनावी रणनीति का केंद्रीय हिस्सा बन गया है. पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के ‘अर्जुन’ यानी नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी राज्य की सत्तारूढ़ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नींद उड़ाने की पूरी तैयारी में जुटे हैं… इसके लिए उन्होंने एक बेहद सटीक रणनीति तैयार की है और वह है ‘5% का फॉर्मूला’…
राज्य की जनसंख्या में 23.5% अनुसूचित जाति, 16% अन्य पिछड़ा वर्ग, 5.8% अनुसूचित जनजाति और 27% अल्पसंख्यक होने के बावजूद, राज्य के सभी मुख्यमंत्री और अधिकांश कैबिनेट मंत्री उच्च जातियों से आए हैं.
‘हिंदू हिंदू भाई भाई’ का मिशन
बीजेपी ने 2026 विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए नारा दिया है: ‘हिंदू हिंदू भाई भाई, 2026 बीजेपी चाई’. इस नारे के पीछे की रणनीति साफ है- राज्य में हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करना, खासकर उन 5 प्रतिशत हिंदू मतदाताओं को साधना, जो अब तक ममता बनर्जी के साथ थे या तटस्थ खेमे में थे.
शुभेंदु अधिकारी बार-बार यह दावा कर चुके हैं कि अगर बीजेपी सिर्फ 5% अधिक हिंदू वोट जुटा ले, तो वह 2026 में राज्य की सत्ता में वापसी कर सकती है. इसके लिए वह हर स्तर पर मेहनत कर रहे हैं, चाहे वो उच्च जाति के ‘सनातनी’ हिंदुओं तक पहुंचना हो या दलित मतुआ समुदाय को फिर से जोड़ना.
कास्ट कार्ड से सत्ता की चाबी
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ समय से शुभेंदु अधिकारी और राज्य के अन्य बीजेपी नेता लगातार ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य जैसी ऊंची जातियों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रहे हैं. इन समुदायों को ‘सनातनी’ कहकर उनके धर्म और संस्कृति की रक्षा का वादा किया जा रहा है. साथ ही, उन्हें यह भी समझाने की कोशिश हो रही है कि ममता सरकार अल्पसंख्यकों के पक्ष में झुकी हुई है और ‘सनातन संस्कृति’ को नुकसान पहुंचा रही है.
वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी मतुआ समुदाय जैसे दलित वर्गों के साथ भी लगातार गहराई से जुड़ी हुई है. 27 मार्च को शुभेंदु अधिकारी ने खुद ठाकुरनगर स्थित मतुआ संप्रदाय के मुख्यालय तक पदयात्रा की और उनके त्योहार में हिस्सा लिया. उन्होंने मतुआ संप्रदाय के संस्थापकों को हिंदू धर्म की रक्षा करने वाले नायकों के रूप में पेश किया और कहा कि उन्होंने हिंदुओं को धर्मांतरण से बचाया.
ममता बनर्जी का ‘ब्राह्मण कार्ड’ और बैकफुट पर TMC
इन हालातों से ममता बनर्जी की चिंता साफ झलकने लगी है. अब तक खुद को ‘गर्वित हिंदू’ बताकर बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति को चुनौती देने वाली ममता ने पहली बार सार्वजनिक रूप से अपनी जाति को उजागर किया. 18 फरवरी को विधानसभा में बहस के दौरान उन्होंने कहा,
‘मैं सिर्फ एक गर्वित हिंदू नहीं, बल्कि एक ब्राह्मण परिवार की बेटी हूं.’
यह बयान उस समय आया जब पांच दलितों को पुलिस सुरक्षा में पूर्वी बर्धमान ज़िले के एक शिव मंदिर में प्रवेश कराया गया- यह घटना बंगाल की बदलती सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति को दर्शा रही थी.
बंगाल में ‘जातिविहीनता’ का भ्रम टूटा
पश्चिम बंगाल की राजनीति लंबे समय तक एक ‘जातिविहीन’ समाज का दावा करती रही है. एक ऐसा राज्य जहां भद्रलोक (मुख्यतः ब्राह्मण, कायस्थ और वैद्य) ने सांस्कृतिक व बौद्धिक नेतृत्व किया और जाति पर बात करना सामाजिक रूप से अस्वीकार्य था. लेकिन अब जैसे-जैसे मतुआ, राजबंशी और कुर्मी जैसी हाशिए की जातियां अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी की मांग कर रही हैं, राज्य की राजनीति जातीय पहचान के नए युग में प्रवेश कर चुकी है.
बीजेपी की यह रणनीति सिर्फ वोटबैंक की राजनीति नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल की राजनीति की दशा और दिशा बदलने की कोशिश है. शुभेंदु अधिकारी जैसे नेता ‘सनातनी’ पहचान के जरिए ऊंची जातियों को और ‘धार्मिक उत्पीड़न’ के नैरेटिव के जरिए दलितों को एक साथ लाकर एक एकीकृत हिंदू मतदाता वर्ग तैयार कर रहे हैं. ऐसे में अगर उनका 5% का फॉर्मूला सफल होता है, तो ममता बनर्जी की सत्ता को असली चुनौती 2026 में नहीं, अभी से मिलनी शुरू हो गई है.
Location :
Kolkata,West Bengal
First Published :
April 08, 2025, 07:53 IST