Last Updated:November 09, 2025, 18:04 IST
Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कांग्रेस का चुनावी गणित उसे गहरे संकट में खड़ा करता है. कांग्रेस 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जिसमें 9 पर 'फ्रेंडली फाइट' है. बची 52 में से 23 सीटें ऐसी हैं जहां महागठबंधन पिछले 7 चुनावों में कभी नहीं जीता और 15 सीटों पर सिर्फ एक बार जीत मिली। यानी कांग्रेस की 61 में से 38 सीटें ऐसी हैं, जिनका रिकॉर्ड बेहद खराब है.
कांग्रेस के 61 सीाटों पर तेजस्वी यादव का टिका है भविष्य.पटना. बिहार चुनाव 2025 में भी कांग्रेस क्या वही इतिहास दोहराने जा रही है, जो विधानसभा चुनाव 2020 में दोहराया था? साल 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़कर 19 सीटें जीती थीं. लेकिन साल 2025 के चुनाव में कांग्रेस 61 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है. खास बात यह है कि कांग्रेस पिछली बार की तुलना में 9 सीट कम पर चुनाव लड़ रही है. एक और बात यह है कि इन 61 में से 9 सीटों पर वह महागठबंधन के घटक दल आरजेडी, सीपीआई और वीआईपी के साथ फ्रेंडली फाइट कर रही है. अब जो 52 सीटें बची हैं, उनमें से 23 सीटों पर महागठबंधन पिछले 7 चुनावों में कभी नहीं जीता है. बाकी बची 29 सीटों में से 15 सीटों पर पिछले 7 चुनावों में महागठबंधन सिर्फ 1 बार ही जीत दर्ज कर सका है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पहले चरण की 121 सीटों के बाद दूसरे चरण की 122 सीटों का भ्रमजाल, क्या तेजस्वी यादव के लिए राह आसान करेगा या फिर 2020 की तरह 2025 के चुनाव में एनडीए और सीएम नीतीश कुमार की जीत होगी?
बिहार चुनाव 2025 कांग्रेस के लिए ‘करो या मरो’ की लड़ाई है. कांग्रेस जिन 61 सीटों पर लड़ रही है, उनमें से 38 सीटों पर कभी जीती ही नहीं महागठबंधन. यानी इन 38 सीटों पर एनडीए की जीत एक तरह से पुराने इतिहास को देखकर पहले ही तय हो गई है. क्या कांग्रेस 23 सीटों पर ही सही मायने में चुनाव लड़ रही है? क्या इस बार आरजेडी खासकर तेजस्वी यादव का किस्मत साथ देगा? क्योंकि, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी की जुगलबंदी का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि कांग्रेस को सीट बंटवारे में जो 61 सीटें मिली हैं, उनमें वह कितना बेहतर प्रदर्शन कर पाती है. इन सीटों का ऐतिहासिक रिकॉर्ड देखकर यह साफ हो जाता है कि कांग्रेस को जीत दर्ज करने के लिए पहाड़ तोड़ना होगा. कांग्रेस की इस कमजोरी का सीधा असर आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन के पूरे भविष्य पर पड़ सकता है.
61 में से 38 सीटों पर बेहद कमजोर बेस
कांग्रेस इस बार 61 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इन सीटों को अगर विगत सात विधानसभा चुनावों के आधार पर विश्लेषण करें तो तस्वीर काफी निराशाजनक दिखती है. कांग्रेस 9 सीटों पर फ्रेंडली फाइट कर रही है. वहां अगर महागठबंधन का वोट बंटता है तो सीधा लाभ एनडीए को होगा. हालांक कहा जा रहा है कि इन सीटों पर महागठबंधन के सहयोगियों के बीच ही सीधी टक्कर है. इसके बावजूद इन सीटों पर वोट बंटने से एनडीए को सीधा लाभ होगा. महागठबंधन ने कांग्रेस को जिन 23 सीटों को दिया है, वहां आजतक महागठबंधन कभी जीती ही नहीं. पिछले 7 विधानसभा चुनावों में इन सीटों पर महागठबंधन को कभी जीत नहीं मिली. यह सीटें पूरी तरह से एनडीए का गढ़ मानी जाती हैं.
आरजेडी और महागठबंधन के भविष्य पर असर
कांग्रेस के पास 15 ऐसी सीटें हैं, जहां सिर्फ महागठबंधन को अब तक सिर्फ एक बार जीत मिली है. इन सीटों पर पिछले 7 चुनावों में महागठबंधन सिर्फ 1 बार जीत दर्ज कर सका. इन सीटों पर कांग्रेस की जीत की संभावना फिलहाल 14.28% से भी कम है. कुलमिलाकर कांग्रेस के कोटे की 61 सीटों में से 38 सीटें (23 + 15) ऐसी हैं, जिनका ऐतिहासिक रिकॉर्ड महागठबंधन के लिए बेहद खराब रहा है. यह सीटें जीतनराम मांझी को दी गई सीटों के समान ही ‘मुश्किल’ मानी जाती हैं.
कमजोर योगदान से किसको फायदा?
कांग्रेस को 61 सीटें देने का फैसला आरजेडी प्रमुख तेजस्वी यादव का एक बड़ा दांव था, जो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस से गठबंधन बनाए रखने के दबाव में लिया गया. लेकिन अगर कांग्रेस अपने कोटे की सीटों पर दहाई के आंकड़े को भी पार नहीं कर पाती है, तो इसका सीधा असर महागठबंधन के सत्ता में आने के सपनों पर पड़ेगा. साथ ही आने वाले चुनावों में कांग्रेस और आरजेडी के रिश्ते पर भी पड़ सकता है. अगर कांग्रेस अपने 61 सीटों के हिस्से से पर्याप्त संख्या में सीटें नहीं निकाल पाती है, तो आरजेडी पर अपनी सीटों की संख्या को बहुत ऊपर ले जाने का दबाव पड़ेगा.
कांग्रेस की यह कमजोरी एनडीए को कुल सीटों के मामले में बढ़त दिला सकती है. 9 सीटों पर हो रही ‘फ्रेंडली फाइट’ महागठबंधन के लिए दोहरी समस्या पैदा करती है. इन सीटों पर महागठबंधन का वोट बंटना तय है, जिसका सीधा फायदा एनडीए को मिलेगा, भले ही महागठबंधन के किसी नेता ने वहां कितना भी अच्छा प्रदर्शन किया हो. यदि कांग्रेस का स्ट्राइक रेट बेहद खराब रहा, तो अगले चुनाव में आरजेडी पर दबाव बढ़ेगा कि वह कांग्रेस को सीटों की संख्या कम करे. यह महागठबंधन के भविष्य के गठबंधन समीकरणों को जटिल बनाएगा.
रविशंकर सिंहचीफ रिपोर्टर
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...और पढ़ें
भारतीय विद्या भवन से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले रविशंकर सिंह सहारा समय न्यूज चैनल, तहलका, पी-7 और लाइव इंडिया न्यूज चैनल के अलावा फर्स्टपोस्ट हिंदी डिजिटल साइट में भी काम कर चुके हैं. राजनीतिक खबरों के अलावा...
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First Published :
November 09, 2025, 18:04 IST

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