बीजेपी ने नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. ये घोषणा 14 दिसंबर को की गई. नितिन नबीन अब तक बिहार में नीतीश सरकार में मंत्री थे. हाल ही में उन्होंने बिहार विधानसभा चुनावों में पांचवीं बार चुनाव जीता. चूंकि उन्हें ये पद और भूमिका सौंपी गई है तो यही माना जा रहा है कि आने वाले समय में वह बीजेपी के अध्यक्ष हो सकते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उन्हें ये जिम्मेदारी देने के बाद उनकी तारीफ की है. जानेंगे कि कार्यकारी अध्यक्ष बीजेपी में क्या करता है. कैसे बनता है. और अध्यक्ष होते हुए भी अगर कार्यकारी अध्यक्ष किसी को बनाया जाए तो उसका क्या मतलब होता है.
नितिन नबीन की युवा उम्र, संगठनात्मक अनुभव, जमीनी पकड़ और साफ छवि को देखते हुए यह रणनीतिक फैसला लिया गया. ये नियुक्ति 14 दिसंबर 2025 से प्रभावी हो गई. ये नियुक्ति जेपी नड्डा के बाद उनके पार्टी की कमान संभालने का संकेत देती है.
नितिन नबीन 45 वर्ष के हैं. उन्होंने छत्तीसगढ़ चुनावों में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सफल रणनीति बनाई. उनकी शांत छवि, प्रशासनिक क्षमता और युवा मोर्चा से जुड़ाव ने उन्हें जेनरेशन नेक्स्ट का प्रतिनिधि बनाया.
नितिन को किसने कार्यकारी अध्यक्ष बनाया
बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है. बीजेपी में संसदीय बोर्ड पार्टी का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है. इसे पार्टी में सबसे शक्तिशाली कहा जाता है. ये पार्टी के प्रमुख फैसलों, मुख्यमंत्री चुनने, राज्यों में गठबंधन और चुनाव रणनीति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अंतिम निर्णय लेता है.
भारतीय जनता पार्टी के संविधान के अनुसार, संसदीय बोर्ड में पार्टी अध्यक्ष के अलावा 10 सदस्य शामिल होते हैं. ये कुल 11 सदस्यीय समिति होती है. फिलहाल बीजेपी के संसदीय बोर्ड में ये लोग शामिल हैं.
1. जगत प्रकाश नड्डा – राष्ट्रीय अध्यक्ष (बोर्ड के प्रधान)
2.नरेंद्र मोदी – प्रधानमंत्री
3.राजनाथ सिंह – केंद्रीय मंत्री
4.अमित शाह – केंद्रीय मंत्री
5.बी. एस. येदियुरप्पा – पूर्व मुख्यमंत्री
6.सर्बानंद सोनोवाल – केंद्रीय मंत्री
7.के. लक्ष्मण – ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष
8.इकबाल सिंह लालपुरा – राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष
9.सुधा यादव – पूर्व सांसद (हरियाणा)
10.सत्यनारायण जटिया – पूर्व केंद्रीय मंत्री (मध्य प्रदेश)
11.बी. एल. संतोष – राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) (बोर्ड के सचिव)
अध्यक्ष के होते हुए कार्यकारी अध्यक्ष क्यों
जेपी नड्डा के कार्यकाल विस्तार के बावजूद कार्यकारी अध्यक्ष बनाना संक्रमणकालीन व्यवस्था है, जो दैनिक संचालन और चुनावी रणनीति को मजबूत करने के लिए होता है. इससे युवा नेतृत्व को परखा जाता है, जबकि पूर्ण अध्यक्ष पद राष्ट्रीय परिषद द्वारा औपचारिक होता है
कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का क्या मतलब
कार्यकारी पद अस्थायी लगता है, क्योंकि 14 जनवरी 2026 (मकर संक्रांति) के बाद राष्ट्रीय परिषद बैठक में पूर्ण अध्यक्ष पद की पुष्टि हो सकती है.माना जा रहा है कि ये सोच-समझकर लिया गया फैसला है. नितिन को ही स्थायी अध्यक्ष बनाने से पहले की ये एक औपचारिकता है.
बीजेपी में अध्यक्ष और कार्यकारी अध्यक्ष का काम और भूमिका
बीजेपी जैसे राजनीतिक दलों में कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्ण अध्यक्ष के पदों में मुख्य अंतर भूमिकाओं की स्थायित्व, अधिकार और औपचारिकता में होता है. कार्यकारी अध्यक्ष अस्थायी या अतिरिक्त जिम्मेदारी वाला पद होता है, जबकि पूर्ण अध्यक्ष स्थायी और सर्वोच्च नेतृत्व का प्रतिनिधित्व करता है.
कार्यकारी अध्यक्ष दैनिक संगठनात्मक कार्यों, चुनावी रणनीति और पार्टी संचालन का प्रभार संभालता है, लेकिन अंतिम निर्णय लेने का पूर्ण अधिकार नहीं होता. पूर्ण अध्यक्ष पार्टी का चेहरा होता है, जो राष्ट्रीय परिषद या कार्यसमिति द्वारा औपचारिक रूप से चुना जाता है. वो नीतिगत फैसलों तथा प्रतिनिधित्व में सर्वमान्य होता है.
बीजेपी में राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव कैसे
बीजेपी अध्यक्ष का चुनाव पार्टी के संविधान (धारा-19) के अनुसार एक निर्वाचक मंडल द्वारा किया जाता है. उसकी योग्यताएं ये होनी चाहिए
– अध्यक्ष वही व्यक्ति बन सकता है जो कम से कम 15 वर्षों तक पार्टी का सदस्य रहा हो.
– कम से कम छह वर्ष तक प्राथमिक सदस्य रहा हो और सक्रिय सदस्य होना ज़रूरी है.
ये काम संगठनात्मक चुनाव कैसे करता है
राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तभी हो सकता है जब 50% से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में संगठनात्मक चुनाव पूरे हो चुके हों. इसमें निर्वाचक मंडल की खास भूमिका होती है. जिसमें इसमें राष्ट्रीय परिषद के सदस्य और प्रदेश परिषदों के सदस्य शामिल होते हैं. राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति के नाम का प्रस्ताव निर्वाचक मंडल में कम से कम 20 सदस्यों द्वारा किया जाना जरूरी है. नामांकन पत्र पर उम्मीदवार के हस्ताक्षर ज़रूरी होते हैं।
कितना होता है अध्यक्ष का कार्यकाल
बीजेपी अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है. एक व्यक्ति लगातार दो बार अध्यक्ष बन सकता है.
क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कोई भूमिका
भले ही ये पार्टी का आंतरिक चुनाव हो, लेकिन अध्यक्ष के चयन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सहमति को निर्णायक माना जाता है, क्योंकि संघ वैचारिक रूप से पार्टी का मार्गदर्शन करता है.
बीजेपी अध्यक्ष के मुख्य काम और पॉवर्स
बीजेपी अध्यक्ष पार्टी का सर्वोच्च अधिकारी होता है. उसके पास संगठन से संबंधित महत्वपूर्ण शक्तियां होती हैं. वह पूरी पार्टी संगठन के प्रमुख होते हैं, जिसमें राष्ट्रीय कार्यकारिणी, परिषदों, समितियों और पदाधिकारियों का मार्गदर्शन करना शामिल है.
अध्यक्ष ही पार्टी की नीतियों और कार्यनीतियों को तय करते हैं, खासकर चुनावों के लिए. वह पार्टी के अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारियों (जैसे महासचिव, उपाध्यक्ष) और समितियों के सदस्यों को नियुक्त करते हैं. यदि बीजेपी सरकार में हो तो पार्टी का अध्यक्ष सरकार और संगठन के बीच बेहतर तालमेल बनाए रखता है. वो पार्टी के कोष का हिसाब रखते हैें.
भविष्य में पार्टी द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियों और नीति परिवर्तन के विषय में निर्णय लेने का अधिकार भी संसदीय बोर्ड के माध्यम से अध्यक्ष के पास होता है.
अध्यक्ष संसदीय बोर्ड का सचिव नियुक्त करते हैं. यह बोर्ड विधानमंडल दल और संसदीय दल की गतिविधियों का पर्यवेक्षण करता है, मंत्रिमंडल गठन के संबंध में मार्गदर्शन करता है और अनुशासन भंग के मामलों पर विचार करता है.
नेशनल पार्टी के अध्यक्ष को सरकार क्या सुविधाएं देती है
– किसी भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल के अध्यक्ष को सीधे तौर पर केंद्र सरकार द्वारा कोई विशिष्ट पद या आधिकारिक सरकारी सुविधाएं जैसे आवास, सुरक्षा, वेतन नहीं देती.
– सरकारी पद पर न होने पर भी पार्टी अध्यक्षों को अक्सर सुरक्षा कवर दिया जाता है, इसको गृह मंत्रालय इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर तय करता है. यदि खुफिया एजेंसियों को लगता है कि किसी राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष को जान का खतरा है, तो उन्हें केंद्र सरकार द्वारा Z+ या Z श्रेणी की सुरक्षा दी जाती है.

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