DNA: शांति वार्ता टूटने से भड़का अफगानिस्तान, बोला - रूस- US को हराया, अब पाकिस्तान की बारी

2 hours ago

Why peace talks in Pakistan Afghanistan not successful: तालिबान ने पाकिस्तान में अपने दुश्मनों को चुन-चुनकर मारना शुरू कर दिया है. इस्लामाबाद की धमकियों का जवाब अफगानिस्तान जुबान से दे रहा है और तहरीक-ए-तालिबान हथियार से. तालिबान का नया नारा है..पूरा पाकिस्तान हमारा है. आज तुर्की में हुई बैठक में पाकिस्तान और तालिबान की एक शर्त पर बात बिगड़ गई. आखिर उसकी वह कौन सी शर्त थी, जिसे सुनकर पाकिस्तान बीच बैठक से भाग खड़ा हुआ. ऐसे में सवाल है कि अगर दोनों मुल्कों में आधिकारिक तौर पर जंग छिड़ी तो दुनिया के कौन-कौन से देश किसके साथ खड़े होंगे?

असल में तालिबान ने कुछ समय पहले पाकिस्तान को एक चेतावनी दी थी. उसने कहा था कि वो सिर्फ वार्ता का सम्मान करके चुप बैठा है. अगर वार्ता सफल नहीं रही तो उसके बाद पाकिस्तान की हिमाकत का करारा जवाब दिया जाएगा. वहां कब्जे की मुहिम शुरू हो जाएगी. वार्ता नाकाम होते ही इस चेतावनी पर तालिबान ने अमल करना शुरू कर दिया है.

TTP से क्यों डरी हुई है पाकिस्तानी सेना?

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तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान ने पाकिस्तान के साउथ वजीरिस्तान के वाना शहर पर कब्जा कर लिया है और अब वहां पर टीटीपी के लड़ाके बिना किसी रोक टोक के पेट्रोलिंग कर रहे हैं. मुनीर फौज की हिम्मत इनका सामना करने तक की नहीं है. पाकिस्तान की सेना टीटीपी से इतनी डरी हुई है कि अफगानिस्तान से कह रही है कि पाकिस्तान की सुरक्षा को आप सुनिश्चित कीजिए. सोचिए, ये हालत परमाणु बम रखने वाले मुल्क की है. आज आपको पाकिस्तान के बुजदिल सुरक्षा बलों में डर की बड़ी वजह भी समझनी चाहिए.पाकिस्तान की सेना इसलिए टीटीपी और अफगान तालिबान से डरी है क्योंकि अब ये गुट डायरेक्ट पाकिस्तान सरकार के लिए काम करने वालों को टारगेट कर रहा है.

आज टीटीपी ने एक पाकिस्तानी अधिकारी की हत्या कर दी, जिसे अफगानिस्तान पर पाकिस्तान के हमले के बाद अगवा किया गया था. यानी वार्ता टूटते ही तालिबान ने अपने बदले की शुरूआत कर दी है. सिर्फ एक दिन पहले अफगानिस्तान से पाकिस्तान आए तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों ने बन्नू ज़िले से पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी विभाग यानि सीटीडी के एक अफसर को अगवा किया. ये अफसर इस इलाके में टीटीपी के खिलाफ अभियान को लीड कर रहा था. इसे टीटीपी के लड़ाकों ने उसके घर से उठा लिया था.

जिस वक्त तु​र्किए में अफगानिस्तान और पाकिस्तान की वार्ता चल रही थी .उस वक्त इस अफसर का एक वीडियो भी जारी किया गया था, जिसमें टीटीपी के कमांडर्स इससे पूछताछ कर रहे थे. टीटीपी के खिलाफ आपरेशन की जानकारियां हासिल कर रहे थे. लेकिन वार्ता टूटने के बाद अब पाकिस्तान के आतंक विरोधी विभाग के अधिकारी का शव सड़क पर पड़ा​ मिला. यानी अब तालिबान सीधे पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तान के दूसरी एजेंसियों से जुड़े अधिकारियों पर अटैक कर रहा है. उनको चुन चुन कर मार रहा है. ये वीडियो बता रहा है कि पाकिस्तान के ​कुछ इलाकों में पाकिस्तान के सुरक्षा बल टीटीपी के सामने कितने बेबस हैं. ऐसी घटनाएं पाकिस्तान की सेना में टीटीपी लड़ाकों का खौफ और बढ़ा रही है.

पाकिस्तान के लिए आने वाला वक्त खतरनाक

ये तो बस शुरुआत है, क्योंकि जो कुछ पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच होने जा रहा है वो इससे भी ज्यादा खतरनाक है. पाकिस्तान के सीजफायर उल्लंघन से नाराज तालिबान ने ख्वाजा आसिफ की धमकी के बाद अब सीधे पंजाब पर कब्जा करने की चेतावनी दे दी है. और इसकी तैयारियों की लेटेस्ट तस्वीरें भी जारी कर दी हैं. 

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच 3 दौर की वार्ता फेल होने के बाद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने चौथे दौर की वार्ता की उम्मीद को सिरे से खारिज कर दिया. ये वही ख्वाजा आसिफ हैं, जिन्होंने धमकी दी थी कि अगर वार्ता नाकाम हुई तो तालिबान से सीधी जंग होगी. पाकिस्तान अफगानिस्तान पर हमला करेगा. जिस तरह वार्ता के बीच में पाकिस्तान की सेना ने अफगानिस्तान पर सीजफायर तोड़ते हुए हमला किया था. उससे पूरी दुनिया में यही संदेश गया कि मुनीर की फौज खुद इस वार्ता को तोड़ना चाहती था.

हुआ भी वैसा ही. अब ख्वाजा आसिफ के मुताबिक पाकिस्तान की आतंकी सेना अफगानिस्तान पर हमला शुरू कर सकती है. लेकिन इससे पहले कि पाकिस्तान हमला करे. अफगानिस्तानियों के तेवर बता रहे हैं कि इस जंग की शुरुआत काबुल करेगा. 

तालिबान ने इशारों में समझा दिया अंजाम

पाकिस्तान को साफ शब्दों में तालिबान ने समझा दिया है. जिस अफगानिस्तान ने अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों को परास्त किया है, उसके सामने पाकिस्तान की क्या हैसियत है. सरहद पर मौजूद पाकिस्तान की पिटाई उनके लिए महाशक्तियों से लड़ने के मुकाबले काफी आसान काम है. वो भी उस वक्त जब पाकिस्तान कई मोर्चों पर घिरा हुआ है . आज आपको ये भी जानना चाहिए परमाणु बम रखने वाले पाकिस्तान को क्यों अफगानिस्तान के मंत्री की बात को बहुत गंभीरता से लेना चाहिए . इसके लिए आपको समझना होगा जिस वक्त अफगान तालिबान ने रूस और अमेरिका जैसी शक्तियों को घुटने टेकने पर मजबूर किया उस वक्त दोनों की शक्तियों में कितना अंतर था.

सोवियत संघ और अफगान मुजाहिदीन जिनसे बाद में तालिबान बने, उनके बीच वर्ष 1979 से 1989 के बीच यानि 10 साल तक टकराव चला और आखिर में उस वक्त की महाशक्ति यानि सोवियत सेनाओं को अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा. आज आपको उस दौर में सोवियत संघ और अफगान मुजाहिदीन की शक्ति के अंतर को बहुत ध्यान से देखना चाहिए 

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— Zee News (@ZeeNews) November 8, 2025

सोवियत संघ को क्यों झेलनी पड़ी थी हार?

1980 के दशक में सोवियत संघ का सालाना रक्षा बजट 40 अरब डॉलर था जबकि इनसे लड़ने वाले अफगान मुजाहिदीन अमेरिका, सऊदी अरब और पाकिस्तान से मिलने वाले फंड पर निर्भर थे. सोवियत संघ की सेना एरियल बमबारी करती थी..आधुनिक तोपों से गोले बरसाती थी, इन्फ्रारेड हथियार से हमला करती थी तो बाद में अफगान मुजाहि​दीनों के पास भी स्टिंगर मिसाइलें आ गईं.

सोवियत संघ की सेना अफगानिस्तान में एक बाहरी सेना थी जिसे यहां के भूगोल के बारे में कुछ नहीं पता था. जबकि मुजाहिदीन इलाके के भूगोल..गुफाओं और घाटियों से वाकिफ थे. 

10 साल तक अफगानों से जूझने के बाद आखिरकार 1989 में महान सोवियत सेना को पीछे हटना पड़ा. अफगानिस्तान की कम्युनिस्ट सरकार गिर गई और मुजाहिदीन को "विजेता" माना गया. जो बाद में तालिबान के तौर पर सामने आए. अफगान मंत्री आज पाकिस्तान को अफगान तालिबान की यही ताकत याद दिला रहे हैं.

अमेरिका ने भी समझौता कर बचाई नाक

सिर्फ रूस ही क्यों, अमेरिका को भी इसी तालिबान से समझौता करके अफगानिस्तान छोड़ना पड़ा. जबकि दोनों की ताकत और हथियारों में जमीन आसमान का अंतर था. अमेरिका और NATO लगभग ढाई लाख सैनिकों के साथ नाइन इलेवन आतंकी हमले का बदला लेने अफगानिस्तान में आए. जबकि शुरूआती लड़ाई में अफगान तालिबान के पास सिर्फ 15 से 20 हजार लड़ाके थे.

अमेरिका के पास अत्याधुनिक ड्रोन, F-16 जेट, Apache हेलिकॉप्टर, उपग्रह निगरानी की तकनीक और हमवी जैसे बख़्तरबंद वाहन थे. जबकि तालिबान के पास बड़े हथियार मौजूद नहीं थे. अमेरिकी सेना का वार्षिक खर्च 100 अरब डॉलर था तो तालिबान के पास बहुत सीमित फंड था जो अफ़ीम व्यापार और स्थानीय टैक्स वसूली से आता था.

अमेरिका के पास आधुनिकतम हथियार थे लेकिन अफगान तालिबान सोवियत रूस काल के छोड़े हुए ह​थियारों से लड़ता रहा. अमेरिकी सेना स्थानीय भूगोल से अनजान थी. अफगान सरकार की सेनाएं तालिबान से युद्ध लड़ती रहीं. जबकि तालिबान गुरिल्ला रणनीति से युद्ध करते रहे. अमेरिका की सेना बड़े हवाई हमले और ड्रोन स्ट्राइक करती थी . जबकि तालिबान आत्मघाती हमले करके भाग जाते थे.

आखिरकार 2021 में अमेरिका ने तालिबान से समझौता किया. अगस्त 2021 में सेना वापस बुला ली. और उसके बाद तालिबान ने पूरे अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया.अमेरिका के आधुनिक हथियारों पर भी कब्जा कर ​लिया. इस इतिहास को पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ भी जानते हैं. फिर भी कहते हैं कि वो तालिबान से युद्ध करेंगे...और तालिबान को सबक सिखाएंगे.

पाकिस्तान में मुनीर सेना के खिलाफ भड़क रहा गुस्सा

आज के तालिबान के पास तो पाकिस्तान से भी ज्यादा आधुनिक हथियार और ट्रेंड सेना है. अगर पाकिस्तान और अफगानिस्तान का युद्ध शुरू हुआ तो पाकिस्तान की स्थिति कितनी खराब हो जाएगी. समझना मुश्किल नहीं, इस बार पाकिस्तान के लिए हालात कितने खराब होंगे. उसका अंदाजा आप एक और अफगान मंत्री के बयान से लगा सकते हैं.

अफगान तालिबान सरकार के आंतरिक मामलों के उप मंत्री ने कहा है पाकिस्तान से अपनी जमीन वापस लेने का वक्त आ गया है. यानि अब पाकिस्तान नहीं बल्कि अफगानिस्तान सीधे पाकिस्तान पर पहले ही हमला कर सकता है. अफगानिस्तान के लड़ाके पाकिस्तान के भूगोल से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं और उनके समर्थन के लिए पाकिस्तान के अंदर बड़ी संख्या में लड़ाके भी मौजूद हैं. 

पाकिस्तान के अंदर भी मुनीर की आतंकी सेना के खिलाफ गुस्सा भड़क रहा है. तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने भी कहा कि टीटीपी को बनाने में अफगानिस्तान का कोई रोल नहीं है. टीटीपी पाकिस्तान की गलत नीतियों की वजह से बना है और आज भी पाकिस्तान में मुनीर की आतंकी फौज पश्तूनों पर वैसा ही जुल्म कर रही है जिसकी वजह से उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ हथियार उठाए.

किस बात पर बिगड़ी पाकिस्तान-तालिबान में बात?

पाकिस्तान पर अफगानिस्तान के बॉर्डर से बड़ी मुसीबत टूटने वाली है. पाकिस्तान इससे बच सकता था..लेकिन इस्तांबुल में अफगान तालिबान के साथ वार्ता नाकाम होने के बाद पाकिस्तान के हाथ से आखिरी मौका भी निकल गया. आज आपको इस वार्ता के नाकाम होने की इनसाइड स्टोरी भी जाननी चाहिए. किस तरह पाकिस्तान ने बड़ी बड़ी बेवकूफियां करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली.  

इस्तांबुल में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से अपनी सुरक्षा की गारंटी मांगी. बिल्कुल ठीक सुन रहे हैं आप. पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान इस बात की गारंटी ले कि पाकिस्तान की जमीन पर मौजूद टीटीपी पाकिस्तान पर हमला ना करे. अफगानिस्तान ने साफ साफ कहा कि वो ये गारंटी नहीं ले सकता है.

अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को भरोसा दिया कि वह अपनी धरती का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ नहीं होने देगा. लेकिन बदले में इस्लामाबाद... अफगान हवाई क्षेत्र का उल्लंघन बंद करे और अमेरिकी ड्रोनों की उड़ानों पर रोक लगाए. पाकिस्तान पहले इस पर राजी होता हुआ दिख रहा था. लेकिन तभी इस्लामाबाद से इस्तांबुल आए एक 'अज्ञात कॉल' ने सारी कहानी बदल दी.

संप्रभुत्ता से समझौता नहीं चाहता तालिबान

इसके बाद पाकिस्तान ने अमेरिका की ओर इशारा करते हुए पहली बार इस बात का खुलासा भी किया कि इस्लामाबाद का एक विदेशी देश के साथ ड्रोन उड़ान की अनुमति देने वाला समझौता है. ये एक ऐसी व्यवस्था है जिसे रद्द नहीं किया जा सकता है . अफगानिस्तान ने इस पर नाराजगी जाहिर की. 

पाकिस्तान चाहता था कि उसे अफगानिस्तान की जमीन से टीटीपी पर हमला करने की अनुमति दी जाए. अफगानिस्तान ने इस मांग को भी अस्वीकार कर दिया और इसे अपनी संप्रभुता का उल्लंघन कहा. पाकिस्तान इस्तांबुल में सिर्फ टीटीपी के मुद्दे पर बातचीत करना चाहता था. लेकिन अफगानिस्तान पाकिस्तान की तरफ से पैदा की जा रही कई समस्याओं के मुद्दे को उठाना चाह रहा था, जिससे पाकिस्तान भाग रहा था.

यानी पाकिस्तान अफगानिस्तान से ऐसी बेसिर पैर की मांगें कर रहा था. जिनको अफगानिस्तान पूरा ही नहीं कर सकता. इसके अलावा इस्लामाबाद से अचानक वार्ता के बीच में इस्तांबुल आया फोन भी संदेह के घेरे में हैं . इस फोन कॉल को भी अमेरिका से ही जोड़ा जा रहा है. यानी इस विवाद में अमेरिका भी पाकिस्तान के साथ खड़ा है और पाकिस्तान को चला रहा आसिम मुनीर आजकल किसके इशारे पर चल रहा है. ये सारी दुनिया जानती है. 

इसी कॉल के बाद पाकिस्तान की तरफ से वार्ता करने आए ISI चीफ असीम मलिक के सुर ही बदल गए और अफगानिस्तान की वो मांगें भी अस्वीकार कर दी गईं, जो बिल्कुल सही थीं. वैसे आज ही रूस ने भी अफगानिस्तान की संप्रभुता को लेकर चिंता जाहिर की है. यानी पाकिस्तान और अफगानिस्तान विवाद में महाशक्तियों की दिलचस्पी भी बढ़ रही है . ऐसे में पाकिस्तान की विवाद बढ़ाने वाली नीतियां खुद उसके और इस पूरे क्षेत्र के लिए खतरनाक साबित हो सकती हैं.

अफगानिस्तान को अस्थिर करने में जुटा पाकिस्तान

आपको इस्तांबुल में पाकिस्तान की उन चालबाजियों के बारे में भी जानना चाहिए. जिनकी वजह से अफगानिस्तान और पाकिस्तान युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं. तालिबान के प्रतिनिधियों ने वार्ता के दौरान पाकिस्तान पर अफगानिस्तान के शरणार्थी संकट को हथियार की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया.

काबुल ने अफगान शरणार्थियों को पाकिस्तान से बाहर निकालने के फैसले को अफगानिस्तान को अस्थिर करने की सुनियोजित रणनीति बताया. अफगानिस्तान का आरोप है कि पाकिस्तान..अफगान शरणार्थियों की आड़ में इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत यानि ISKP के आतंकियों को काबुल भेज रहा है.

कई ISKP आतंकी पाकिस्तान से निर्वासित शरणार्थियों के भेष में अफगान सीमा पार करते हुए पकड़े भी गए हैं. तालिबान के अधिकारियों ने मध्यस्थों के सामने ही पाकिस्तानी अधिकारियों को इसके सबूत सौंप दिए. चोरी पकड़ी गई तो पाकिस्तान के अधिकारी तिलमिला गए.

तालिबान ने पाकिस्तान पर आर्थिक युद्ध छेड़ने का भी आरोप लगाया. अफगान वार्ताकारों के मुताबिक पाकिस्तान तोर्खम और स्पिन बोल्डक जैसे व्यापारिक मार्गों को बार-बार बंद करके अफगान अर्थव्यवस्था पर दबाव बना रहा है.

पाकिस्तान की साजिश को आप इस तरह भी समझ सकते हैं कि साल 2023 से 2025 के बीच पाकिस्तान ने लगभग 8 लाख अफगान शरणाथियों को वापस भेजा है और 2025 अप्रैल से अब तक 60 हजार से ज्यादा अफगान शरणार्थियों को जबरन अफगानिस्तान भेजा गया. जिसमें बड़ी संख्या ISKP आतंकियों की है. जो काबुल में आईएसआई के मोहरे के तौर पर काम कर रहे हैं और अफगान तालिबान पर हमले कर रहे हैं.

कतर और तुर्किए के रवैये से पाकिस्तान क्यों नाराज?

पाकिस्तान अफगानिस्तान की ऐसी बेहद वाजिब मांगों को सुनना ही नहीं चाहता था. जबकि अफगान प्रतिनिधिमंडल ने इस्लामाबाद की कुछ गैर व्यावहारिक मांगों का विरोध किया. इसके बाद, पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल वार्ता की मेज से उठकर चला गया, जिससे वार्ता बिना किसी नतीजे के रुक गई. पाकिस्तान ने इससे पहले कतर और तुर्किए पर अफगानिस्तान का पक्ष लेने का आरोप भी लगाया. 

इस रवैए से कतर और तुर्किए भी पाकिस्तान से नाराज हैं. फिलहाल अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच शांति वार्ता रुक गई है. पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ने बयान दिया है अब आगे वार्ता होने की उम्मीद भी कम है. जबकि अफगानिस्तान के मंत्रियों ने साफ साफ कह दिया है कि जिस मुल्क ने पाकिस्तान के मालिक कहे जाने वाले देशों को हरा दिया. आज उसका बच्चा बच्चा पाकिस्तान से युद्ध शुरू होने का इंतजार कर रहा है. यानी पाकिस्तान एक और टूट या फिर पूरी तरह से तालिबान के कब्जे में आने के संकट में फंसने वाला है.

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