Sheikh Hasina: लोकतंत्र समर्थक जो बन गई 'तानाशाह', कैसे अर्श से फर्श पर पहुंची शेख हसीना

1 month ago

Bangladesh Coup 2024: बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद ने कई सप्ताह तक छात्रों के नेतृत्व में चले विरोध प्रदर्शनों के बाद देश छोड़ दिया है. यह विरोध प्रदर्शन देश भर में घातक अशांति का रूप ले चुका है. रिपोर्ट के अनुसार, 76 वर्षीय वाजेद सोमवार को हेलीकॉप्टर से भारत भाग गईं. हजारों प्रदर्शनकारियों ने राजधानी ढाका में उनके आधिकारिक आवास पर धावा बोल दिया. इसके साथ ही बांग्लादेश की सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रही शेख हसीना के शासनकाल का अप्रत्याशित अंत हो गया. 2009 में उन्होंने सत्ता संभाली थी और कुल मिलाकर 20 साल से अधिक समय तक देश पर शासन किया है.

हाल के वर्षों में दक्षिण एशियाई देश की आर्थिक प्रगति का श्रेय हसीना को दिया जाता है. वह अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत एक लोकतंत्र समर्थक के रूप में पहचानी गईं लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उन पर निरंकुश होने और अपने शासन के किसी भी विरोध को दबाने का आरोप लगाया गया है.

बीबीसी की मुताबिक हसीना के शासन में राजनीतिक रूप से प्रेरित गिरफ्तारियां, लोगों का गायब होना, न्यायेतर हत्याएँ और अन्य दुर्व्यवहार सभी बढ़े हैं.

जनवरी में उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अभूतपूर्व चौथा कार्यकाल जीता. हालांकि इस चुनाव की आलोचकों ने व्यापक रूप से निंदा की और मुख्य विपक्ष द्वारा इसका बहिष्कार किया गया.

शेख हसीना सत्ता में कैसे आईं?
1947 में पूर्वी बंगाल में एक मुस्लिम परिवार में जन्मी हसीना के खून में राजनीति थी. उनके पिता राष्ट्रवादी नेता शेख मुजीबुर रहमान थे, जो बांग्लादेश के 'राष्ट्रपिता' माने जाते हैं. उन्होंने 1971 में पाकिस्तान से देश की स्वतंत्रता का नेतृत्व किया और इसके पहले राष्ट्रपति बने. उस समय, हसीना ने ढाका विश्वविद्यालय में एक छात्र नेता के रूप में अपनी ख्याति स्थापित कर ली थी.

1975 में एक सैन्य तख्तापलट में उनके पिता और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या कर दी गई थी. सिर्फ हसीना और उनकी छोटी बहन ही बच पाईं, क्योंकि उस समय वे विदेश यात्रा पर थीं.

भारत में निर्वासन में रहने के बाद, हसीना 1981 में बांग्लादेश लौट आईं और अपने पिता की राजनीतिक पार्टी, अवामी लीग की नेता बन गईं.

हसीना ने जनरल हुसैन मुहम्मद इरशाद के सैन्य शासन के दौरान लोकतंत्र समर्थक सड़कों पर विरोध करने के लिए अन्य राजनीतिक दलों के साथ हाथ मिलाया. लोकप्रिय विद्रोह से प्रेरित होकर,  हसीना जल्द ही एक राष्ट्रीय प्रतीक बन गईं.

1996 में पहली बार मिली सत्ता लेकिन...
हसीना को पहली बार 1996 में सत्ता में चुना गया था. उन्होंने भारत के साथ जल-बंटवारे के समझौते और देश के दक्षिण-पूर्व में आदिवासी विद्रोहियों के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने का श्रेय हासिल किया.  लेकिन उसी समय, उनकी सरकार की कई कथित भ्रष्ट व्यापारिक सौदों और भारत के प्रति अत्यधिक नरमी के लिए आलोचना की गई. बाद में वह 2001 में बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की अपनी पूर्व सहयोगी से दुश्मन बनी बेगम खालिदा जिया से हार गईं.

राजनीतिक वंशों की वारिस के रूप में, इन दोनों महिलाओं ने तीन दशकों से अधिक समय तक बांग्लादेश की राजनीति पर अपना दबदबा बनाए रखा और उन्हें 'लड़ाकू बेगम' के रूप में जाना जाता था.

जानकारों का कहना है कि उनकी कटु प्रतिद्वंद्विता के कारण बम विस्फोट, लोगों का गायब होना और न्यायेतर हत्याएं नियमित घटनाएं बन गई हैं.

हसीना आखिरकार 2009 में कार्यवाहक सरकार के तहत हुए चुनावों में सत्ता में वापस आईं. उन्होंने विपक्ष में रहते हुए कई गिरफ्तारियां झेलीं और कई हत्या के प्रयास भी झेले, जिनमें से एक 2004 में उनकी सुनने की क्षमता को नुकसान पहुँचाने वाली कोशिश भी शामिल है. उन्हें निर्वासन में जाने के लिए मजबूर करने के प्रयासों और कई अदालती मामलों से भी वे बच गई हैं, जिनमें उन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाया गया है.

एक पीएम के रूप में हसीना की कामयाबी
हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश की कहानी बेहद प्रभावशाली रही. मुस्लिम बहुल राष्ट्र, जो कभी दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक था, ने 2009 से उनके नेतृत्व में विश्वसनीय आर्थिक सफलता हासिल की. बांग्लादेश अब क्षेत्र में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, यहां तक कि अपने विशाल पड़ोसी भारत से भी आगे निकल गया है.

बीबीसी के मुताबिक पिछले दशक में इसकी प्रति व्यक्ति आय तीन गुनी हो गई है और विश्व बैंक का अनुमान है कि पिछले 20 वर्षों में 25 मिलियन से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकाला गया है.

इस वृद्धि का अधिकांश हिस्सा गार्मेंट इंडस्ट्री से आता है, जो बांग्लादेश से कुल निर्यात का बड़ा हिस्सा है और हाल के दशकों में तेजी से फैली है, जिससे यूरोप, उत्तरी अमेरिका और एशिया के बाजारों में सप्लाई होती है.

देश के अपने धन, ऋण और मदद का उपयोग करते हुए, हसीना की सरकार ने विशाल बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू की हैं, जिनमें गंगा पर 2.9 बिलियन डॉलर की लागत से बनने वाला पद्मा पुल भी शामिल है.

हसीना के इर्द-गिर्द विवाद
हालिया विरोध प्रदर्शन हसीना के लिए पदभार ग्रहण करने के बाद से सबसे गंभीर चुनौती थी. यह चुनौती एक अत्यधिक विवादास्पद चुनाव के बाद आई जिसमें उनकी पार्टी को लगातार चौथे संसदीय कार्यकाल के लिए फिर से चुना गया था.

इस्तीफ़ा देने की बढ़ती मांग के बावजूद, वह अपनी बात पर अड़ी रहीं. उन्होंने आंदोलनकारियों की निंदा करते हुए उन्हें 'आतंकवादी' बताया और 'इन आतंकवादियों को सख्ती से दबाने' के लिए समर्थन की अपील की.

ढाका और अन्य जगहों पर हाल ही में हुई अशांति सिविल सेवा नौकरियों में कोटा खत्म करने की मांग से शुरू हुई, लेकिन यह एक व्यापक सरकार विरोधी आंदोलन में बदल गई. प्रदर्शनकारी विवादास्पद आरक्षण प्रणाली को समाप्त करने की मांग कर रहे थे जिसके तहत 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिस्सा लेने वाले लड़ाकों के रिश्तेदारों को सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत आरक्षण देने का प्रावधान है.

महामारी के मद्देनजर, बांग्लादेश बढ़ती महंगाई से जूझ रहा है. मुद्रास्फीति आसमान छू रही है, इसके विदेशी मुद्रा भंडार में तेजी से गिरावट आई है और 2016 के बाद से इसका विदेशी ऋण दोगुना हो गया है.

आलोचकों ने इसके लिए हसीना की सरकार के कुप्रबंधन को दोषी ठहराया है. आलोचकों का कहना है कि बांग्लादेश की पिछली आर्थिक सफलता ने केवल हसीना की अवामी लीग के करीबी लोगों की मदद की, क्योंकि इसमें भ्रष्टाचार शामिल था.

आलोचक यह भी कहते हैं कि देश की प्रगति लोकतंत्र और मानवाधिकारों की कीमत पर हुई है. वे आरोप लगाते हैं कि हसीना के शासन में उनके राजनीतिक विरोधियों, आलोचकों और मीडिया के खिलाफ दमनकारी सत्तावादी उपाय किए गए हैं. सरकार और हसीना ने ऐसे आरोपों से इनकार किया है.

अधिकार राइट्स ग्रुप्स ने 2009 से सुरक्षा बलों द्वारा जबरन गायब किए जाने और न्यायेतर हत्याओं के सैकड़ों मामलों का दस्तावेजीकरण किया है. पिछले वर्ष ह्यूमन राइट्स वॉच ने उन पर विपक्षी समर्थकों पर 'हिंसक निरंकुश कार्रवाई' का आरोप लगाया था.

हाल के महीनों में, सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद बीएनपी के कई वरिष्ठ नेताओं को गिरफ्तार किया गया, साथ ही उनके हजारों समर्थकों को भी गिरफ़्तार किया गया. एक ऐसे नेता के लिए यह एक उल्लेखनीय बदलाव था, जो कभी बहुदलीय लोकतंत्र के लिए लड़ता था.

हसीना की सरकार ने तमाम आरोपों से साफ इनकार किया कि वह दुर्व्यवहारों के पीछे थी. लेकिन इसने ऐसे आरोपों की जांच करने के इच्छुक विदेशी पत्रकारों के दौरे पर भी कड़ी पाबंदी लगा दी.

Read Full Article at Source