Yoon Suk Yeol साउथ कोरिया में एक बार फिर से सियासी उथल-पुथल मच गई है. देश के राष्ट्रपति को चार महीने पहले लिए गए एक फैसले के कारण अब पद से हटाने का फैसला हो गया है. देश की संवैधानिक कोर्ट ने राष्ट्रपति यून सुक येओल को 'मार्शल लॉ' लागू करने के कारण पद से हटाने का आदेश दिया है. यून ने चार महीने पहले पूरे देश में 'मॉर्शल लॉ' लागू करने का आदेश दिया था. उस फैसले के चलते संसद में सेना घुस गई थी, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा था.
यून के खिलाफ बीते चार माह से विरोध हो रहा था. फैसला आते ही प्रदर्शनकारियों में खुशी की लहर दौड़ गई. लोग सड़कों पर जश्न मना रहे हैं. यून ने अब जनता से माफी मांगी है. इधर कोर्ट के फैसले के बाद अब दक्षिण कोरिया को नया राष्ट्रपति चुनने के लिए दो माह के भीतर चुनाव कराना होगा. देश में फिलहाल मुख्य विपक्षी 'डेमोक्रेटिक पार्टी' के सत्ता में आने की संभावना जताई जा रही है. लोकल सर्वे भी डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता ली जे-म्यांग के अगले राष्ट्रपति बनने की बात सामने आ रही है.
न्यायालय के कार्यवाहक प्रमुख मून ह्युंग-बे ने फैसला सुनाते हुए कहा कि 8 सदस्यीय पीठ ने यून के खिलाफ महाभियोग को बरकरार रखा है, क्योंकि 'मार्शल लॉ' संबंधी उनके आदेश ने संविधान और अन्य कानूनों का उल्लंघन किया है. न्यायमूर्ति मून ने कहा कि प्रतिवादी ने न केवल 'मार्शल लॉ' की घोषणा की, बल्कि विधायी अधिकार के इस्तेमाल में बाधा डालने के लिए सैन्य एवं पुलिस बलों को जुटाकर संविधान और कानूनों का भी उल्लंघन किया.
मून ने कहा कि इसके बड़े प्रभावों को देखते हुए हमें लगता है कि यून को पद से हटाकर संविधान को बनाए रखने के लाभ राष्ट्रपति को हटाने से होने वाले राष्ट्रीय नुकसान से कहीं अधिक हैं. कोर्ट के फैसले के बाद यून ने एक बयान में कहा कि उन्हें जनता की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने का मलाल है. उन्होंने कहा कि वह देश और उसके लोगों के लिए प्रार्थना करेंगे. यून ने कहा कि देश के लिए काम करना मेरे लिए बहुत सम्मान की बात रही है.
इससे पहले दिसंबर में मार्शल लॉ के बाद संसद में सेना घुस गई थी. उस समय संसद के अंदर विपक्ष के 70 सांसद मौजूद थे. साल 2022 में राष्ट्रपति बनने के बाद से यून को लगातार विपक्ष का तगड़ा विरोध झेलना पड़ रहा था. विपक्षी दलों ने मार्शल लॉ की घोषणा को असंवैधानिक करार देते हुए विरोध शुरू कर दिया था. उनका कहना था कि यह फैसला देश के संविधान के खिलाफ है जो कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर करने का काम करता है.